नई दिल्ली: बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफा देने और 5 अगस्त को बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के बीच देश छोड़ देने के बाद पिछले तीन दिनों में बांग्लादेश में विभिन्न हमलों और संघर्षों में कम से कम 232 लोगों की मौत हुई है.
हिंदुस्तान टाइम्स ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के हवाले से बताया कि पिछले तीन हफ्तों में बांग्लादेश में भयंकर और हिंसक सरकार विरोधी प्रदर्शनों के कारण शेख हसीना सरकार गिर गई और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने देश का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया. इस दौरान कुल 469 लोगों की मौत हो गई.
स्थानीय मीडिया ने पिछले कुछ दिनों में बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के साथ हो रही हिंसा के मद्देनजर गंभीर उत्पीड़न की खबर दी है. इस हिंसा के कारण घबराए बांग्लादेशियों ने अवैध रूप से भारत में घुसने की कई कोशिशें की हैं.
दैनिक अखबार प्रोथोम एलो ने गुरुवार को 232 लोगों की मौत की खबर दी. रिपोर्ट में कहा गया है कि ज़्यादातर मौतें मंगलवार को हुईं, जबकि कुछ लोगों की मौत इलाज के दौरान हुई.
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश की मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने कहा कि शेख हसीना को देश में आपराधिक आरोपों का सामना करना चाहिए, और चेतावनी दी कि भारत अपने पड़ोसी के साथ संबंधों को नुकसान पहुंचाने का जोखिम उठा रहा है क्योंकि वह पूर्व नेता को शरण दे रहा है.
ढाका ट्रिब्यून ने बताया कि 16 जुलाई से 4 अगस्त के बीच कोटा और भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलनों के दौरान कुल 328 मौतें हुईं. इस प्रकार पिछले 23 दिनों में कुल मौतों की संख्या 560 तक पहुंच गई है.
सोमवार को ढाका मेडिकल कॉलेज अस्पताल को हाल ही में हुई झड़पों में 10 शव मिले, जिनमें छह पुलिस अधिकारी और अंसार बल का एक सदस्य शामिल था.
मंगलवार को गाजीपुर में काशिमपुर हाई सिक्योरिटी जेल से भागने का प्रयास करने पर छह कैदियों की मौत हो गई, जिसके बाद जेल के गार्डों ने गोलीबारी शुरू कर दी. बुधवार को ढाका के सावर में इलाज के दौरान तीन और लोगों की मौत हो गई.
मेहरपुर जिले के गगनीबारी में मंगलवार रात को घर पर हमला और उसके बाद हुई झड़प में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी से जुड़े नाहरुल इस्लाम की मौत हो गई और सात अन्य घायल हो गए.
हिंसा के ख़िलाफ़ अल्पसंख्यकों का विरोध प्रदर्शन
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, शुक्रवार को सैकड़ों लोगों ने बांग्लादेश की राजधानी ढाका में प्रदर्शन किया, यह प्रदर्शन इस सप्ताह की शुरुआत में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के जाने के बाद देश के हिंदू अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर की गई हिंसा के विरोध में किया गया.
बीते 5 अगस्त को हसीना के इस्तीफा देने के बाद मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में हिंदू घरों, व्यवसायों और मंदिरों पर हमले में एक स्कूल शिक्षक की मौत हो गई और कम से कम 45 अन्य घायल हो गए.
प्रदर्शनकारियों – जिनमें से कुछ बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों को ‘बचाए जाने’ की मांग वाले पोस्टर लिए हुए थे- ने ‘हम कौन हैं, बंगाली बंगाली’ के नारे लगाए और शुक्रवार को राजधानी में एक चौराहे को अवरुद्ध करते हुए शांति की अपील की.
बांग्लादेश की 17 करोड़ आबादी में लगभग 8 प्रतिशत हिंदू पारंपरिक रूप से शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी का समर्थन करते रहे हैं, जो पिछले महीने आरक्षण विरोधी प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच हिंसक झड़पों के बाद जनता के गुस्से का केंद्र बन गई है.
बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद का अनुमान है कि देश के 64 जिलों में से कम से कम 52 जिले 5 अगस्त से सांप्रदायिक हिंसा से प्रभावित हैं और उन्होंने नोबेल शांति पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस से मदद मांगी है, जिन्होंने गुरुवार को कार्यवाहक प्रशासन के प्रमुख के रूप में कार्यभार संभाला है.
नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में गुरुवार को बांग्लादेश में एक अंतरिम सरकार नियुक्त की गई. संविधान के तहत 90 दिनों के भीतर चुनाव कराने की जरूरत होती है, हालांकि यूनुस, सेना – जो अंतरिम सरकार का समर्थन करती है- और राष्ट्रपति ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है कि चुनाव कब होंगे.
इसी बीच, बीएनपी के वरिष्ठ सदस्य अमीर खोसरू महमूद चौधरी ने शुक्रवार को कहा कि शेख हसीना पर हत्या, भागने, मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के आरोप हैं और उन्हें कानून का सामना करना चाहिए.
ब्लूमबर्ग ने बताया कि शेख हसीना को शरण देने में भारत की भूमिका नई दिल्ली और ढाका में अंतरिम सरकार के बीच संबंधों में एक फ्लैशपॉइंट के रूप में उभर सकती है, साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मानवाधिकारों के हनन और राजनीतिक दमन के बारे में बढ़ती चिंताओं के बावजूद वर्षों से हसीना का समर्थन किया है.