दिल्ली: कै़दियों को फोन करने से रोकने के आदेश पर कोर्ट ने दिल्ली सरकार, एनआईए से जवाब मांगा

बीते अप्रैल में दिल्ली जेल नियम के नियम 631 के अंतर्गत आने वाले कैदियों से जुड़ा एक परिपत्र जारी किया गया था, जिसमें उन पर अभियोजन एजेंसी की अनुमति के बिना अपने परिजनों को फोन करने पर रोक लगा दी गई थी.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने आतंकवाद के वित्तपोषण (टेरर फंडिंग) मामले के एक आरोपी की याचिका पर दिल्ली सरकार और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से जवाब मांगा है. इस याचिका में जांच एजेंसी से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) के बिना कैदियों को ई-मुलाकात और टेलीफोन सुविधा की अनुमति नहीं देने वाले परिपत्र को रद्द करने की मांग की गई है.

ऑडियो-कम-वीडियो ई-मुलाकात कैदियों को दी जाने वाली फोन कॉल सुविधा का ही एक विस्तार है.

द टेलीग्राफ के मुताबिक, इस साल अप्रैल में जेल अधिकरणों द्वारा जारी किया गया यह परिपत्र दिल्ली जेल नियम के नियम 631 के अंतर्गत आने वाले कैदियों से संबंधित है. इस नियम के अंतर्गत वे लोग आते हैं जिन पर राज्य के विरुद्ध अपराध (आतंकवादी गतिविधियों और जघन्य अपराधों के लिए) और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम तथा सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम जैसे कानूनों के तहत आरोप हों.

जस्टिस संजीव नरूला ने मसासासोंग एओ द्वारा दायर याचिका पर दिल्ली सरकार और एनआईए को नोटिस जारी किया, जिसमें परिपत्र को रद्द करने और प्राधिकारियों को याचिकाकर्ता के लिए ई-मुलाकात तथा टेलीफोन सुविधा बहाल करने या इसकी अनुमति देने का निर्देश देने की मांग की गई है.

मसासासोंग के वकील एमएस खान ने कहा कि फरवरी 2020 में गिरफ्तार और तिहाड़ जेल में बंद याचिकाकर्ता को जेल से हर दिन पांच मिनट के लिए अपने नाबालिग बेटे और बेटी को फोन करने की अनुमति दी गई थी.

उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के बुजुर्ग माता-पिता हैं जो अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं और उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे हैं. वह (मसासासोंग) अपने माता-पिता और बच्चों की देखभाल को लेकर बहुत चिंतित है और संचार सुविधाएं ही उसका एकमात्र सहारा हैं.

याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता की संचार सुविधाओं को बंद करना दिल्ली जेल नियम- 2018 का उल्लंघन है. साथ ही, याचिका में कहा गया है कि कैदियों को अपने प्रियजनों के साथ बातचीत करने की अनुमति देने के अच्छे उद्देश्य से शुरू की गईं इन सुविधाओं को वापस लेने का याचिकाकर्ता को कोई कारण नहीं बताया गया है.

याचिका में कहा गया है कि यह परिपत्र संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है, क्योंकि विचाराधीन कैदी का अपने परिवार और वकील से संवाद करने का अधिकार मौलिक अधिकारों का एक अनिवार्य घटक है.

याचिका में कहा गया है कि परिपत्र और उसके बाद अधिकारियों की ओर से की गई कार्रवाई कैदियों के साथ भेदभाव करती है.

जेल नियमों के अनुसार, नियम 631 के अंतर्गत आने वाले कैदी सार्वजनिक सुरक्षा और व्यवस्था के हित में संचार सुविधा के लिए पात्र नहीं हैं.

हालांकि, नियमों में कहा गया है कि जेल अधीक्षक को उप महानिरीक्षक (रेंज) की पूर्व स्वीकृति के साथ प्रत्येक मामले के आधार पर उचित निर्णय लेने का अधिकार होगा.

परिपत्र के अनुसार, दिल्ली जेल नियम- 2018 के नियम 631 के अंतर्गत आने वाले कैदियों और उच्च सुरक्षा वार्ड में बंद कैदियों को संबंधित अभियोजन एजेंसियों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) या अनुमोदन प्राप्त करने के बाद ही फोन कॉल सुविधा की अनुमति दी जा सकती है.

इसमें कहा गया है कि जेल अधीक्षक कैदी द्वारा दिए गए लैंडलाइन/मोबाइल नंबर अभियोजन एजेंसी को उसकी एनओसी/अनुमति के लिए उपलब्ध कराएंगे.

परिपत्र में कहा गया है कि ई-मुलाकात सुविधा कैदियों को दी जाने वाली फोन कॉल सुविधा का ही विस्तार है, जो इस मामले में उच्च स्तर की सुविधा है, इसलिए इसलिए सुरक्षा खतरे या कैदी या उसके आगंतुकों द्वारा ई-मुलाकात के माध्यम से ऐसी सुविधा के किसी अन्य दुरुपयोग को ध्यान में रखते हुए अधिक निगरानी या एहतियात की आवश्यकता है.

बाद में परिपत्र में एक परिशिष्ट जारी किया गया और इसमें कहा गया कि जो कैदी 22 अप्रैल, 2024 को या उससे पहले ई-मुलाकात/टेलीफोन सुविधा का लाभ उठा रहे हैं, उनके लिए यह सुविधा जांच एजेंसियों से एनओसी प्राप्त होने तक जारी रहेगी.

बता दें कि बीते माह इस संबंध में द वायर ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया था कि जेल में बंद कश्मीरियों पर विशेष रूप से निशाना साधते हुए उन्हें अपने परिवार के सदस्यों से हर हफ्ते फोन पर होने वाली बातचीत से रोक दिया गया है.

द वायर द्वारा कैदियों के परिवार से की गई बातचीत में निकलकर सामने आया था कि तिहाड़ जेल में बंद लगभग सभी कश्मीरी कैदी दिल्ली में एनआईए की अदालत में मुकदमे का सामना कर रहे हैं. जिन कैदियों ने प्रतिबंध लागू होने से पहले अपने परिवारों से अंतिम बार बात की थी, उन्होंने परिजनों को बताया था कि जेल अधिकारियों ने उन्हें निर्देश दिया है कि यदि वे अपने परिवारों से बात करना चाहते हैं तो उन्हें अदालत में एक नया आवेदन दायर करना होगा.