नई दिल्ली: इस्लाम की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए गठित हुए इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर (आईआईसीसी) में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रवेश करने की तैयारी में है. आरएसएस द्वारा समर्थित मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) के राष्ट्रीय संयोजक डॉक्टर माजिद अहमद तालिकोटी आईआईसीसी की गवर्निंग बॉडी के चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए खड़े हुए हैं.
डॉक्टर माजिद की उम्मीदवारी से कई सदस्यों में असंतोष है. उनके विपक्षी उनके चुनाव लड़ने को आईआईसीसी में संघ के प्रवेश के तौर पर देख रहे हैं और आईआईसीसी की मूल विचारधारा पर संकट बता रहे हैं. इस चुनाव को आईआईसीसी को बचाने का चुनाव कहा जाने लगा है.
दिल्ली स्थित आईआईसीसी एक प्रमुख इस्लामिक केंद्र है. इसकी गवर्निंग बॉडी का हर पांच साल में चुनाव होता है. इस बार अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के अलावा सात बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज और एग्जीक्यूटिव कमेटी के चार सदस्यों को चुना जाना है. मतदान 11 अगस्त को है. परिणाम 14 अगस्त को आएंगे.
गौरतलब है कि उद्योगपति सिराजुद्दीन कुरैशी, जो पिछले चार चुनावों से अध्यक्ष पद पर जीतते आ रहे हैं, डॉक्टर माजिद के समर्थन में आ गये हैं. वह अध्यक्ष पद के बजाय डॉक्टर माजिद के पैनल में बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज के पद पर चुनाव लड़ रहे हैं. 2019 के पिछले चुनाव में कुरैशी ने केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को हराया था. कुरैशी के समर्थन के बाद डॉक्टर माजिद की स्थिति मजबूत दिखाई दे रही है.
आईआईसीसी चुनाव
अध्यक्ष पद के लिए सात सदस्य मैदान में हैं. मुकाबला कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, एमआरएम के राष्ट्रीय संयोजक और जाने-माने कैंसर सर्जन डॉक्टर माजिद, सेवानिवृत्त आईआरएस अधिकारी अबरार अहमद और उद्यमी आसिफ हबीब के बीच बताया जा रहा है.
आईआईसीसी के मेमोरेंडम ऑफ आर्टिकल्स (एमओए) के मुताबिक, 75 साल की उम्र के बाद कोई पद पर बना नहीं रह सकता. इसलिए सलमान खुर्शीद का चुनाव कमजोर हो गया है. सलमान खुर्शीद तीन साल में 75 साल के हो जाएंगे. ऐसे में मध्यावधि चुनाव कराने पड़ेंगे, जिससे सदस्य बचना चाहते हैं.
इस चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री मोहसिना किदवई, कांग्रेस नेता कर्ण सिंह, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, गुलाम नबी आजाद, सांसद तारिक अनवर, स्तंभकार शाहिद सिद्दीकी के साथ-साथ विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की हस्तियां, नौकरशाह, बुद्धिजीवी और उद्योगपति समेत कुल 2,054 सदस्य (हालांकि, सदस्य 4000 से ज्यादा हैं लेकिन कई वरिष्ठ आजीवन सदस्यों समेत कई सदस्यों को वार्षिक सदस्यता शुल्क न चुकाने के कारण मतदान से वंचित कर दिया गया है) मतदान करेंगे. चूंकि कई अप्रवासी भारतीय भी आईआईसीसी के सदस्य हैं, कुल 461 सदस्य ई-वोटिंग का इस्तेमाल करने वाले हैं.
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच और डॉ. माजिद
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) की स्थापना साल 2002 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन प्रमुख केएस सुदर्शन की मदद से हुई थी. एमआरएम की गतिविधियों में आरएसएस के लोग सक्रिय रूप से दिखाई देते हैं. वरिष्ठ आरएसएस प्रचारक इंद्रेश कुमार एमआरएम के मार्गदर्शक हैं.
एमआरएम संघ के दृष्टिकोण का विस्तार करता है. हाल में जब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानदारों को नेम प्लेट लगाने का फरमान जारी किया था, तो एमआरएम ने उसका समर्थन किया था.
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच पर दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान पढ़ा चुके प्रोफेसर शमसुल इसलाम कहते हैं, ‘संघ ने आधिकारिक तौर पर जो 43 संगठन बनाए, इसका जिक्र उन्होंने 1999 में छपी किताब अपनी किताब ‘परम वैभव के पथ पर’ में किया था. बाद में संघ ने इस किताब को वापस ले लिया था. उन संगठनों में बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद, हिंदू जागरण मंच जैसे संगठन भी हैं, जो मुसलमानों को बाहर (देश से) करने और हिंदू राष्ट्र बनाने की बात करते हैं. इसी सूची में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का भी नाम था.’
प्रोफेसर इस्लाम आगे कहते हैं, ‘इस संगठन के माध्यम से इंद्रेश कुमार ने जिन 10-12 मुस्लिम बुद्धिजीवी जोड़े, वे सब कहीं न कहीं प्रोफेसर, वाइस चांसलर, चांसलर, राज्यपाल बन गए. यह मुसलमानों के छोटे से गुट का इस्तेमाल करता है.’
डॉक्टर माजिद के आईआईसीसी का चुनाव लड़ने पर प्रोफेसर इस्लाम कहते हैं, ‘ये लोग आरएसएस के साथ इसलिए हैं क्योंकि फायदा उठाने चाहते हैं. इन लोगों में कई बिजनेसमेन हैं…वह (आईआईसीसी) पहले से ही आरएसएस के कब्जे में हैं. वे लोग वहां पर अजीत डोभाल और इंद्रेश कुमार को बुलाते रहते हैं.’
उन्होंने कहा कि दिल्ली की लोधी रोड पर आप ‘आरएसएस के साए में रहकर ही काम कर सकते हैं, नहीं तो आईआईसीसी का हाल भी वक्फ बोर्ड की तरह हो जाएगा.’
द वायर हिंदी से बातचीत में डॉ. माजिद ने सलमान खुर्शीद पर हमला बोला और सेंटर में आमूलचूल परिवर्तन अपना एंजेडा बताया.
डॉक्टर माजिद कर्नाटक के मूल निवासी हैं. ‘मुस्लिम राष्ट्रीय मंच तेलंगाना’ नामक फेसबुक पेज पर 25 जुलाई, 2022 को मंच के एक कार्यक्रम ‘आओ जड़ों से जुड़े, भारत को करें तिरंगामयी’ का वीडियो पोस्ट किया गया था. वीडियो में मंच पर इंद्रेश कुमार के बगल में डॉक्टर माजिद बैठे थे. वीडियो के कैप्शन में माजिद को एमआरएम का राष्ट्रीय संयोजक बताया गया है.
लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान मुस्लिम मंच ने माजिद को भाजपा के लिए वोट जुटाने का भी काम सौंपा था. 22 अप्रैल 2024 को न्यूज एजेंसी एएनआई पर प्रकाशित खबर में लिखा था, ‘पहले चरण का मतदान हो चुका है और राष्ट्रवादी मुस्लिम संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने बाकी छह चरणों के लिए अपनी ताकत झोंक दी है. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने 100 से ज्यादा मुस्लिम बहुल सीटों के लिए खास रणनीति बनाई है. इन सीटों पर मंच के राष्ट्रीय संयोजक, क्षेत्रीय व प्रांतीय संयोजक व सह संयोजक और जिला सह संयोजक व कार्यकर्ताओं समेत 40 टीमें खुशहाल और समृद्ध भारत के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में मजबूत सरकार बनाने के लिए चुनाव में जुटी हैं.’
खबर में आगे लिखा है, ‘मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी शाहिद सईद ने बताया कि 14 राष्ट्रीय समन्वयकों की देखरेख में विभिन्न राज्यों की कुल 40 टीमें बनाई गई हैं. …माजिद तालिकोटी और मोहम्मद इलियास को कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की जिम्मेदारी दी गई है. …सभी टीमें अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाने में जुटी हैं और हर हफ्ते ऑनलाइन मीटिंग के जरिए एक-दूसरे के साथ रणनीति और कार्यशैली की समीक्षा भी कर रही हैं.’ इस खबर को संघ से संबद्ध पत्रिका ऑर्गनाइजर की वेबसाइट ने भी छापा था.
डॉक्टर माजिद की उम्मीदवारी पर एमआरएम से जुड़े रहे डॉ गुलरेज़ शेख ने द वायर हिंदी से कहा, ‘मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता है. उनका चुनाव लड़ना तो बनता है…ये सही है कि एमआरएम संघ के विचारों से जुड़ा हुआ है. संघ मुसलमानों को मुख्यधारा में लाने का हिमायती रहा है. अगर एमआरएम ऐसा कर रहा है (मुसलमानों को मुख्यधारा से जोड़ने का काम) तो उन्हें शुभकामनाएं देना चाहिए.’
वर्तमान में मध्य प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता शेख आगे कहते हैं, ‘एमआरएम एक सामाजिक संगठन है लेकिन उसके बहुत से कैडर राजनीतिक रूप से भी सक्रिय रहते हैं. यह देश और मु्स्लिम समाज के लिए अच्छा है.’
आईआईसीसी में संघ के संभावित प्रवेश पर आसिफ़ हबीब कहते हैं, ‘कुछ लोग हैं, जिन्हें लगता है कि मुस्लिम भारत के लिए ठीक नहीं हैं. यह उनकी गलतफहमी हैं. यहीं पर सेंटर की भूमिका बढ़ जाती हैं कि अगर किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति को इस्लाम के बारे में गलत जानकारी है, तो उसे बातचीत और चर्चा के जरिए दूर किया जाए.’
आसिफ हबीब के पैनल में इंजीनियर, पूर्व नौकरशाह, डॉक्टर, शिक्षाविद्, चार्टेड आकाउंटेट, वकील, वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं. आसिफ की टीम आग्रह करती है कि आईआईसीसी को राजनीति का अड्डा नहीं बनने देना चाहिए.
आसिफ के पैनल से बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज के लिये चुनाव लड़ रहे पूर्व नौकरशाह ख्वाजा एम शाहिद आईआईसीसी में संघ की एंट्री को खतरा मान रहे हैं. ‘आईआईसीसी के अस्तित्व को खतरा है. संस्था पर कुछ खास सियासी दल और खास विचारधारा के लोग कब्जा करना चाहते हैं.’
इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर का इतिहास
दिल्ली स्थित इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर एक सांस्कृतिक संस्था है, जिसका उद्देश्य इस्लाम की शिक्षा और संस्कृति के प्रसार के साथ विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच आपसी समझ को मजबूत करना है. इसकी स्थापना जस्टिस हिदायतुल्ला अंसारी और बदरुद्दीन तैयबजी जैसी प्रमुख हस्तियों की मदद से हुई थी.
इंदिरा गांधी ने 24 अगस्त, 1984 को इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर की इमारत की आधारशिला रखी थी. 24 साल बाद (12 जून, 2006) दक्षिणी दिल्ली के लोधी रोड पर स्थित 16 करोड़ रुपये की लागत से तैयार केंद्र का तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उद्घाटन किया था.