हिंडनबर्ग का ख़ुलासा: सेबी प्रमुख, उनके पति की अडानी समूह से जुड़े विदेशी फंडों में हिस्सेदारी

अमेरिकी वित्तीय शोध संस्थान हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी नई रिपोर्ट में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) प्रमुख माधबी बुच पर अपनी आय छिपाने और अपने पति की कंपनी को लाभ पहुंचाने के भी आरोप लगाए हैं. साथ ही, अडानी समूह के स्टॉक हेरफेर और वित्तीय अनियमितताओं से जुड़े मामले में सेबी की जांच की निष्पक्षता पर संदेह व्यक्ति किया है.

हिंडनबर्ग रिसर्च लोगो, गौतम अडानी, सेबी अध्यक्ष माधबी बुच और मुंबई स्थित सेबी मुख्यालय. (फोटो साभार: विकिमीडिया)

नई दिल्ली: अमेरिकी वित्तीय शोध कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च – जिसने पिछले साल अपनी रिपोर्ट में अडानी समूह पर कंपनी के शेयरों की कीमत में हेराफेरी करने का आरोप लगाया था – ने एक नए खुलासे में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की प्रमुख माधबी बुच और उनके पति पर अडानी समूह पर कार्रवाई करने के मामले में ‘हितों के टकराव’ के आरोप लगाए हैं. व्हिसल ब्लोअर दस्तावेजों का हवाला देते हुए हिंडनबर्ग ने कहा है कि सेबी अध्यक्ष माधबी बुच और उनके पति धवल बुच की ‘अडानी धन हेराफेरी घोटाले में इस्तेमाल दोनों ऑफशोर (विदेशी) फंड में हिस्सेदारी है.’

बता दें कि 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में अडानी समूह पर लगाए गए आरोपों के बाद समूह द्वारा की गईं कथित अनियमितताओं को लेकर कई जांच शुरू हुई थीं, लेकिन ऐसी कोई खास विनियामक कार्रवाई होते नहीं देखी गई. हिंडनबर्ग के नवीनतम खुलासे में इसने सेबी अध्यक्ष बुच और उनके पति पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि भारत के शेयर बाजार नियामक की अध्यक्ष के रूप में माधबी बुच द्वारा दिए गए कुछ बयानों से उन्हें और उनके पति को व्यक्तिगत लाभ होने की संभावना है.

इसमें यह भी कहा गया है कि उन्होंने अगोरा कंसल्टिंग का स्वामित्व होने के चलते ‘परामर्श’ के माध्यम से उन्हें हुई कुल आय का खुलासा नहीं किया, जो सेबी प्रमुख के तौर पर उनके वेतन से ‘4.4 गुना’ अधिक हो सकती है.

हिंडनबर्ग ने आरोप लगाया कि ‘मुख्यधारा के हजारों प्रतिष्ठित ऑनशोर भारतीय म्यूचुअल फंड उत्पादों के अस्तित्व के बावजूद, मौजूद दस्तावेजों से पता चलता है कि माधबी बुच और उनके पति के पास एक बहुस्तरीय विदेशी (ऑफशोर) फंड में हिस्सेदारी थी – जिसकी देखरेख एक ऐसी कंपनी द्वारा की जाती थी जिसके वायरकार्ड घोटाले से तार जुड़े थे – कथित अडानी धन हेरफेर घोटाले में विनोद अडानी द्वारा इस फंड का काफी इस्तेमाल किया गया था.’

हिंडनबर्ग ने जिन दस्तावेजों का हवाला दिया है, उनके मुताबिक ‘माधबी बुच और उनके पति धवल बुच ने पहली बार 5 जून, 2015 को सिंगापुर में आईपीई प्लस फंड 1 में अपना खाता खोला.’ हिंडनबर्ग का कहना है कि बरमूडा और मॉरीशस के ये ऑफशोर फंड गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी द्वारा भी इस्तेमाल किए गए थे.

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट कहती है कि व्हिसलब्लोअर से प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, सेबी प्रमुख के रूप में बुच की नियुक्ति से 2 सप्ताह पहले, माधबी के पति धवल बुच ने मॉरीशस के फंड प्रशासक ट्राइडेंट ट्रस्ट को पत्र लिखा था. यह ईमेल ग्लोबल डायनेमिक ऑपर्च्युनिटीज फंड (जीडीओएफ) में उनके और उनकी पत्नी के निवेश को लेकर था. अपने पत्र में धवल ने खातों को संचालित करने के लिए उन्हें एकमात्र अधिकृत व्यक्त बनाए जाने का अनुरोध किया था.

सुप्रीम कोर्ट की विशेषज्ञ समिति की 6 मई 2023 की रिपोर्ट में कहा गया था कि सेबी ने अडानी के विदेशी शेयरधारकों को फंड देने वालों की अपनी जांच में ‘कोई नतीजा नहीं निकाला.’ हिंडनबर्ग का कहना है कि उसे ‘यह आश्चर्यजनक नहीं लगता कि सेबी उस जांच के पीछे जाने में अनिच्छुक था जिसका एक सिरा उसके खुद के अध्यक्ष से जुड़ता था.’

जनवरी 2023 की अपनी रिपोर्ट में हिंडनबर्ग ने दावा किया था कि उसने अन्य फंडों के अलावा, ईएम रिसर्जेंट फंड और एमर्जिंग इंडिया फोकस फंड नामक मॉरीशस की दो इकाइयों की पहचान की है. ये दोनों इंडिया इंफोलाइन (जिसे अब 360 वन कहा जाता है) से जुड़ी थीं और इसके कर्मचारियों द्वारा इनकी देखरेख की जाती थी. इन फंडों के ट्रेडिंग पैटर्न के अनुसार आरोप यह थे कि इन्होंने अडानी की कंपनियों के शेयर को कृत्रिम रूप से बढ़ाया हो सकता है.

हिंडनबर्ग का कहना है कि उसके निष्कर्षों को फाइनेंशियल टाइम्स द्वारा अगस्त 2023 में की गई जांच से बल मिला, जिसमें ईएम रिसर्जेंट और इमर्जिंग इंडिया फोकस फंड्स के ‘गुप्त दस्तावेज’ हाथ लगे. इससे यह सवाल उठा कि क्या अडानी ने अपने व्यापारिक सहयोगियों को ‘मुखौटे’ के रूप में इस्तेमाल किया था ताकि ‘भारतीय कंपनियों के लिए उन नियमों को दरकिनार किया जा सके जो शेयर मूल्यों में हेरफेर को रोकते हैं.’

सेबी ने अभी तक इन फंडों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है. 27 जून 2024 को सेबी ने हिंडनबर्ग को ‘कारण बताओ’ नोटिस भी भेजा था. सेबी ने कहा था कि हिंडनबर्ग का खुलासा ‘अधूरा और अपर्याप्त’ है. सेबी ने हिंडनबर्ग को ‘लापरवाह’ करार दिया था क्योंकि उसने अपनी रिपोर्ट में एक ऐसे ब्रोकर को उद्धृत किया था जिसे इसलिए प्रतिबंधित कर दिया गया था क्योंकि उसने कहा था कि ‘सेबी अच्छी तरह जानता था कि अडानी जैसी कंपनियों ने नियमों का उल्लंघन करने के लिए जटिल विदेशी इकाइयों का इस्तेमाल किया है, और नियामक (सेबी) भी इन योजनाओं का हिस्सा है.

हिंडनबर्ग ने आरोप लगाया कि अप्रैल 2017 से मार्च 2022 तक, ‘जब माधबी बुच सेबी में पूर्णकालिक सदस्य और अध्यक्ष थीं, तो उनके पास अगोरा पार्टनर्स नामक सिंगापुर की एक ऑफशोर कंसल्टिंग फर्म में 100% हिस्सेदारी थी’ और 16 मार्च 2022 को, ‘सेबी अध्यक्ष के रूप में उनकी नियुक्ति के दो सप्ताह बाद उन्होंने चुपचाप अपने शेयर पति को हस्तांतरित कर दिए.’

हिंडनबर्ग ने यह भी आरोप लगाया है कि माधबी बुच के पास वर्तमान में अगोरा एडवाइजरी नामक एक भारतीय कंसल्टिंग कंपनी में 99% हिस्सेदारी है, जहां उनके पति निदेशक हैं और 2022 में इस कंपनी ने परामर्श से 2,61,000 डॉलर का राजस्व दर्ज किया था, जो ‘सेबी में उनके घोषित वेतन का 4.4 गुना है.’

धवल बुच और ब्लैकस्टोन

सेबी के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में माधबी बुच के कार्यकाल के दौरान ब्लैकस्टोन के सलाहकार के रूप में धवल बुच की नियुक्ति पर भी हिंडनबर्ग ने सवाल उठाए हैं. आरोप है कि माधबी बुच का सार्वजनिक रूप से यह कहना कि वे रियल एस्टेट इनवेस्टमेंट ट्रस्ट्स (आरईआईटी) का समर्थन करती हैं, इसने ब्लैकस्टोन को महत्वपूर्ण रूप से लाभ पहुंचाया. ब्लैकस्टोन ने माइंडस्पेस और नेक्सस सेलेक्ट ट्रस्ट – भारत के क्रमशः दूसरे और चौथे आरईआईटी – को प्रायोजित किया ताकि आईपीओ के लिए धन जुटाने के लिए सेबी की मंजूरी प्राप्त की जा सके.

हिंडनबर्ग का कहना है कि सवाल यह है कि क्या इसे हितों के टकराव के रूप में देखा जाए या एक कब्जे के रूप में? लेकिन आगे इसने कहा है, ‘किसी भी तरह से, हमें नहीं लगता कि अडानी मामले में सेबी पर निष्पक्ष मध्यस्थ के रूप में भरोसा किया जा सकता है. हमें लगता है कि हमारे निष्कर्ष ऐसे सवाल उठाते हैं जिनकी आगे जांच की जानी चाहिए. हम अतिरिक्त पारदर्शिता का स्वागत करते हैं.’

माधबी बुच और धवल बुच ने किया आरोपों का खंडन

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, माधबी बुच और उनके पति धवल बुच ने एक बयान जारी कर कहा है कि वे रिपोर्ट में लगाए गए निराधार आरोपों और आक्षेपों का दृढ़ता से खंडन करते हैं. एक संयुक्त बयान में उन्होंने कहा, ‘इन सभी आरोपों में सत्यता नहीं है. हमारा जीवन और वित्तीय स्थिति एक खुली किताब है.’

उन्होंने कहा, ‘आवश्यक सभी दस्तावेज बीते वर्षों में वह सेबी के सामने प्रस्तुत कर चुके हैं. हमें किसी भी और सभी वित्तीय दस्तावेजों – जिनमें वे दस्तावेज भी शामिल हैं जो उस अवधि से संबंधित हैं जब हम पूरी तरह से आम नागरिक थे – को किसी भी अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिंडनबर्ग रिसर्च, जिसके खिलाफ सेबी ने प्रवर्तन कार्रवाई की है और कारण बताओ नोटिस जारी किया है, ने इसके जवाब में चरित्र हनन का प्रयास करने का विकल्प चुना है.’

इस ‘महाघोटाले’ की जांच जेपीसी से कराने की ज़रूरत: कांग्रेस

हिंडनबर्ग के इस खुलासे पर कांग्रेस ने कहा है कि यह ‘चौंकाने वाला’ है कि देश के प्रतिभूति बाजार नियामक को चलाने वाले व्यक्ति के पास ‘ऐसे फंड में वित्तीय हिस्सेदारी होगी’ जिनके बारे में माना जाता है कि उनका इस्तेमाल सेबी के नियमों का उल्लंघन करते हुए अडानी समूह की कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी हासिल करने के लिए किया गया था.’

एक बयान में, कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने नवीनतम खुलासे को ‘अडानी महाघोटाले की जांच करने में सेबी की आश्चर्यजनक अनिच्छा’ से जोड़ा.

उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट की विशेषज्ञ समिति ने इसका विशेष रूप से संज्ञान लिया था. समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि सेबी ने 2018 में विदेशी फंड्स के अंतिम लाभकारी (यानी वास्तविक स्वामित्व) से संबंधित रिपोर्टिंग की आवश्यकताओं को कमजोर कर दिया था और 2019 में इसे पूरी तरह से हटा दिया था.’

उन्होंने विशेषज्ञ समिति के हवाले से कहा, ‘ऐसा होने से सेबी के हाथ इस हद तक बंध गए कि उसे गलत कार्यों का संदेह तो है लेकिन उसे संबंधित विनियमों में विभिन्न शर्तों का अनुपालन भी दिखाई देता है… यह वह विरोधाभास है जिसके कारण सेबी इस मामले में किसी नतीजे तक नहीं पहुंचा है.’

रमेश ने कहा, ‘हिंडनबर्ग का नया खुलासा माधबी बुच के सेबी प्रमुख बनने के तुरंत बाद 2022 में गौतम अडानी की उनके साथ लगातार दो बैठकों को लेकर नए सवाल खड़े करता है. याद रखें कि उस समय सेबी कथित तौर पर अडानी के लेन-देन की जांच कर रहा था.’

उन्होंने सरकार से कार्रवाई की मांग करते हुए कहा, ‘सरकार को अडानी की सेबी जांच में सभी हितों के टकरावों को खत्म करने के लिए तुरंत कार्रवाई करना चाहिए. तथ्य यह है कि देश के सर्वोच्च अधिकारियों की जो कथित मिलीभगत दिख रही है, उसे अडानी महाघोटाले की व्यापक जांच के लिए एक जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) का गठन करके ही सुलझाया जा सकता है.’