नई दिल्ली:पिछले पांच वर्षों में, बैंक बट्टे खाते में डाले गए ऋणों को वसूलने के लिए अनेक उपाय करने के बावजूद 81.30 प्रतिशत ऋणों की वसूली करने में विफल रहे हैं.
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, एक आरटीआई याचिका के माध्यम से खुलासा हुआ है कि बट्टे खाते में डाली गई राशि से 1,85,241 करोड़ रुपये की वसूली हुई है, जो कि बट्टे खाते में डाले गए ऋणों का केवल 18 प्रतिशत है.
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दी गई जानकारी से पता चलता है कि पिछले पांच वर्षों में बैंकों ने 9.90 लाख करोड़ रुपये के ऋणों की राशि बट्टे खाते में डाली है.
एक तरह से देखा जाए तो बट्टे खाते में डाली गई इस राशि से भारत का अनुमानित सकल राजकोषीय घाटा 59 फीसदी कम किया जा सकता था, जो कि 2023-24 में 16.54 लाख करोड़ रुपये था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बट्टे खाते में डाले गए ऋणों के परिणामस्वरूप अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (जीएनपीए) का अनुपात मार्च 2024 में घटकर 12 वर्षों के निम्नतम स्तर 2.8 प्रतिशत पर आ गया है.
ऋणों को बट्टे खाते में डालने में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा 63 फीसदी रही.
भारी मात्रा में ऋणों को बट्टे खाते में डाले जाने के बावजूद, आरबीआई ने अब तक उन शीर्ष कर्जदारों के नामों का खुलासा नहीं किया है जिनके ऋण बैंकों द्वारा बट्टे खाते में डाले गए हैं.
कोई भी ऋण गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) का दर्जा तब पाता है जब मूल राशि के ब्याज का भुगतान 90 दिनों तक लंबित रहता है.
बता दें कि जब कोई कंपनी जानबूझकर बैंक से लिया कर्ज नहीं चुकाती है तो उसे विलफुल डिफॉल्टर घोषित कर दिया जाता है और उसके कर्ज की राशि को बट्टे खाते में डाल दिया जाता है. एक बार जब बैंक द्वारा ऋण को बट्टे खाते में डाल दिया जाता है, तो वह बैंक के परिसंपत्ति खाते से बाहर हो जाता है. बैंक तब ऋण को बट्टे खाते में डाल देता है जब उधारकर्ता ऋण चुकाने में चूक करता है और वसूली की बहुत कम संभावना होती है.