नई दिल्ली: एक सर्वेक्षण में सामने आया है कि इसमें शामिल हुए आधे से अधिक भारतीयों ने अपने या अपने परिवार के सदस्यों के अस्पताल में भर्ती होने के खर्च का भुगतान अपनी जेब से किया,जबकि एक चौथाई से कुछ ही अधिक लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिला.
अर्थ ग्लोबल पॉलिसी संगठन के सेंटर फॉर रैपिड इनसाइट्स (सीआरआई) द्वारा किए गए और हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित सर्वेक्षण के अनुसार, जिन उत्तरदाताओं के पास वाहन नहीं थे, उनके अस्पताल में भर्ती होने का खर्च अपनी जेब से चुकाने की संभावना उन लोगों की तुलना में अधिक थी, जिनके पास वाहन थे.
सीआरआई ने बताया कि उसके सर्वेक्षण में 421 लोकसभा क्षेत्रों के 6,755 लोगों के जवाब शामिल हैं.
सर्वेक्षण के नतीजों के अनुसार, जब उत्तरदाताओं से पूछा गया कि पिछली बार जब वे या उनके परिवार का कोई सदस्य अस्पताल में भर्ती हुआ था तो उन्होंने भुगतान का मुख्य तरीका क्या अपनाया था, तो 53% ने कहा कि उन्होंने अपनी जेब से भुगतान किया था.
सर्वे में शामिल 29 फीसदी उत्तरदाताओं ने बताया कि उन्हें भुगतान करने में सरकारी योजना का लाभ मिला, जबकि 10 फीसदी और 9 फीसदी ने कहा कि वे क्रमश: निजी और उनके नियोक्ता द्वारा कराए गए बीमा पर निर्भर थे.
जिन उत्तरदाताओं के पास वाहन नहीं था, उनमें से 60 प्रतिशत ने कहा कि उन्होंने अस्पताल के खर्चों का भुगतान मुख्य रूप से अपनी जेब से किया. लेकिन दोपहिया वाहन रखने वाले उत्तरदाताओं के लिए यह आंकड़ा 48 प्रतिशत था और चार पहिया वाहन रखने वालों के लिए 40 प्रतिशत.
जिनके पास दोपहिया या चार पहिया वाहन थे, उनमें निजी बीमा या नियोक्ता द्वारा कराए गए बीमा से अस्पताल में इलाज की लागत का खर्च उठाने की अधिक संभावना पाई गई. वहीं, सर्वे में सामने आया कि सरकारी योजना का लाभ उठाने वालों का अनुपात (24% से 31% के बीच) सभी आर्थिक वर्गों में अपेक्षाकृत समान रहता है.
सीआरआई के निदेशक नीलांजन सरकार ने हिंदुस्तान टाइम्स में लिखा, ‘सरकारी योजनाओं की अपेक्षाकृत सार्वभौमिक प्रकृति और बाजार की अक्षमताएं मिलकर एक ऐसा ढांचा खड़ा करती हैं, जिसमें लक्षित जनसंख्या (सबसे अधिक जरूरतमंद गरीब) सबसे कम संरक्षित होते हैं.’
सरकार ने बताया कि आयुष्मान भारत जैसी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के संदर्भ में कुछ अक्षमताएं यह हैं कि वे निवारक स्वास्थ्य देखभाल में निवेश को प्रोत्साहित नहीं करती हैं, और इलाज के कवरेज की कम राशि और इसके वितरण में देरी का मतलब है कि स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को उच्च गुणवत्ता वाली सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता है.
आयुष्मान भारत की एक और सीमा यह है कि इसका कवरेज अस्पताल में भर्ती होने के दौरान मरीज को मिलने वाली सेवाओं तक ही सीमित है. दूसरे शब्दों में, यह उन लोगों के लिए सहायता प्रदान नहीं करता है जो आउट-पेशेंट डिपार्टमेंट (ओपीडी) सेवाएं चाहते हैं यानी जिन्हें अस्पताल में रात भर भर्ती होने की जरूरत नहीं होती, जबकि ऐसे लोगों की संख्या 40 से 80 फीसदी तक होती है.
सरकार ने अपने लेख में लिखा है कि इन बाजारी अक्षमताओं के चलते ही नागरिकों को स्वास्थ्य व्य का भुगतान अपनी जेब से करना होता है, और इसे कम करना तभी संभव है जब नागरिकों के पास बीमा (निजी या नियोक्ता) जैसे किसी अन्य स्रोत का सहारा हो.
केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना में प्रत्येक पात्र परिवार प्रति वर्ष योजना के तहत पंजीबद्ध अस्पतालों में 5 लाख रुपये तक का इलाज पा सकता है.