अनुच्छेद 370 हटाने से कमजोर हुई लद्दाख की हिल काउंसिल, निवासी मायूस

निवासियों का कहना है कि संविधान की छठी अनुसूची में जोड़े बिना लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने से कोई लाभ नहीं मिला है. लद्दाख के भाजपा नेता भी यह मांग उठा रहे हैं.

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लद्दाख. (सभी फोटो: रोहिण कुमार)

लेह/कारगिल: लेह के पोलो ग्राउंड चौक पर मजदूरों की भीड़ अपने ‘मालिक’ का इंतज़ार कर रही थी. ‘आठ बज गइल भाई, अब आज बेला ही बइठे के पड़ी हो (आठ बज गए हैं. आज खाली ही बैठना पड़ेगा),’ एक मज़दूर को कहते सुना. भीड़ को देखकर मुझे अंदाज़ा हो गया था कि यहां ज्यादातर मजदूर उत्तर भारत से ही हैं. भोजपुरी सुनकर मेरा अंदाज़ा यकीन में बदल गया.

मैंने एक से पूछा, ‘कहंवा से बानी रउआ? (कहां से हैं आप)’

‘बेतिया जिला,’ एक ने जबाव दिया.

‘सब जना बेतिया से? (सभी लोग बेतिया से),’ मैंने चार-पांच लोगों की ओर इशारा करते हुए पूछा.

‘जी,’ जवाब मिला.

‘आज पांच अगस्त बा नू, हो सकेला कि आज बंदी होई (पांच अगस्त है आज, शायद शहर बंद हो),’ मैंने उनकी संभावित बेकारी को एक कारण देना चाहा.

मेरी इस बात पर उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. शायद ‘पांच अगस्त’ सुनकर किसी के भीतर कुछ नहीं कौंधा.

5 अगस्त को जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 (ए) के खात्मे की पांच बरसी थी. लद्दाख और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बने पांच बरस हो गए. इन पांच बरसों में मैं तीन बार 5 अगस्त के दिन कश्मीर में था. कश्मीर में लोग इस दिन को ‘काला दिन’ कहते हैं.

जहां कश्मीरी विरोध दर्ज करने के लिए दुकानें बंद करते हैं, सुरक्षाबल हालात को सामान्य दिखाने की भरसक कोशिश में जुटे रहते हैं. 5 अगस्त, 2022 को श्रीनगर के लाल चौक में पुलिस का एक जवान दुकान का ताला तोड़ने की कोशिश कर रहा था, दुकानों के शटर जबरन उठाए जा रहे थे.

इस बार लेह का अनुभव एकदम अलहदा था. शहर अपनी रफ्तार के साथ दिन में ढल रहा था. सब्जियों-फलों, शॉल-कंबल की दुकानें सज रहीं थी. सड़कों पर झाड़ू लग रही थी. ढाबों के बाहर कहीं बर्तनें धुल रहे थे तो कहीं चूल्हा सुलगाने की तैयारी. चहवास (चाय की चुस्कियां) बिना सिगरेट यहां भी अधूरी थी. महिलाएं हाथ देकर गाड़ी वालों से लिफ़्ट मांगती थीं. टूर एंड ट्रेवल एजेंसी के एजेंट सैलानियों को खारदूंगला, नुबरा, पैंगॉन्ग आदि की टैक्सी में बिठा देने को व्याकुल थे. कैमरा लटकाए कुछ पर्यटक हिमालय में बसे शहर के दृश्य क़ैद कर रहे थे.

हिल काउंसिल परिसर के बाहर पार्किंग पर एक नीले शर्ट और स्लेटी पैंट पहने लद्दाखी लड़की ऊंची आवाज़ में सिद्धू मूसेवाला के गाने सुन रही थी. उसके पास कुछ ए4 साइज़ के पोस्टर थे. एक पोस्टर पर फ़ौजी टोपी सी दिखाई दे रही थी. मैंने वह पोस्टर बंडल से बाहर खींचा. उसपर लिखा था — ‘dPal नंगम दस्तो: सेलेब्रटिंग फिफ्टी इयर्स ऑफ टूरिज्म.’

उसने बिना मेरे पूछे कहा- ‘आज शाम को सिक्स पीएम हमारा परफॉर्मेंस है. डांस करेगा हमलोग.’

‘295 (सिद्धू मूसावाला का लोकप्रिय गाना जो वह सुन रहीं थी) पर परफॉर्म करोगे आप?’

हंसते हुए उसने कहा, ‘नहीं, नहीं. हमारा फोक सॉन्ग (लोकगीत) पर करेगा.’

अब मैं लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल के कार्यालय पहुंचा. सामने पद्म भूषण कुशोक बाकुला रिनपोचे की प्रतिमा दिखाई दी. शिलापट्ट के मुताबिक, इस परिसर का उद्धाटन जून 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था.

लेह हिल काउंसिल परिसर में कुशोक बाकुला रिनपोचे की प्रतिमा.

कार्यालय परिसर में दो मज़दूर घास काट रहे थे कि एक व्यक्ति चीफ एक्ज़ीक्यूटिव काउंसलर (सीईसी) के केबिन के बाहर दिखाई दिया.

‘ऑफिस बंद है क्या?’

‘आज नंगम दस्तो (rNgam Duston) है. सब उधर ही गया है,’ उसने कहा.

‘सीईसी भी? उनसे मुलाक़ात कैसे हो सकती है?’

‘आज मुश्किल है. सीईसी साहब तो पूरे दिन यूटी (UT) फाउंडेशन डे में बिजी होंगे. कल आना आप,’ कहकर वह दलाई लामा की तस्वीर को कपड़े से साफ़ करने लगा.

‘यूटी (UT) फाउंडेशन डे को ही नंगम दस्तो कह रहे हैं आप?’

उसने मेरी ओर देखा और कहा, ‘अभी लेह पैलेस में हो रहा है एक कार्यक्रम. एक शाम को होगा एनडीएस ग्राउंड में.’

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पहाड़ी सड़कों पर मेरे फेफड़ों की तगड़ी परीक्षा हो चुकी थी. पास में एक बेकरी दिख रही थी, ‘फाउंडेशन डे स्पेशल खिलाइए कुछ,’ मैंने काउंटर पर खड़े शख्स से कहा. उनके चेहरे पर मद्धिम-सी हंसी पसर गई, ‘मैं आपको नंगम दस्तो स्पेशल खिलाता है.’ उन्होंने एक चॉकलेट डोनट मेरी तरफ बढ़ाया.

‘फाउंडेशन डे को ही नंगम दस्तो कहते हैं क्या?’

‘नहीं, नंगम दस्तो लद्दाख के हीरोज़ को सेलिब्रेट करने का फेस्टिवल है. फाउंडेशन डे 5 अगस्त को होता है.’ उन्होंने जबाव दिया.

लेकिन नंगम दस्तो अगर फेस्टिवल है तो उसकी तारीख किसी कैलेंडर से तय होती होगी. या नंगम दस्तो और लद्दाख फाउंडेशन डे एक ही दिन पड़ते हैं?

इस शख़्स का नाम था तेस्रिंग. उम्र कुछ चालीस वर्ष के करीब. पिछले बारह साल से सोनम नुबरो हॉस्पिटल के नजदीक दुकान हैं. सबसे पहले शॉल की दुकान की थी, पिछले तीन वर्षों से बेकरी की दुकान हैं.

तेस्रिंग ने मेरे असमंजस को पढ़ लिया था.

‘लद्दाख में बहुत सारे वॉर हीरो हैं. फोक सिंगर हैं. आर्टिस्ट हैं. राइटर्स हैं. अलग-अलग क्षेत्रों में बढ़िया काम किया. उन्हें लेह ऑटोनॉमस हिल डेवपलमेंट काउंसिल अवॉर्ड देता है. उसे हम नंगम दस्तो कहते हैं.’

‘ये 5 अगस्त को होता है?’ मैंने पूछा.

‘जरूरी नहीं. किसी भी दिन हो सकता है.’

लेह के एनडीएस ग्राउंड में हुआ सांस्कृतिक कार्यक्रम.

वर्ष 2016 में हिल काउंसिल ने dpal-नंगम दस्तो की शुरुआत की थी. यह लद्दाख की प्रख्यात हस्तियों को श्रद्धाजंलि अर्पित करने और सम्मानित करने का एक वार्षिक आयोजन है. यह कार्यक्रम किसी भी दिन हो सकता है लेकिन सरकार वर्ष 2022 से 5 अगस्त के दिन इसका वार्षिक आयोजन करती आ रही है.

वर्ष 2019 से 2021 तक 31 अक्टूबर को लद्दाख सरकार ने नंगम दस्तो मनाया था. 31 अक्टूबर को ही लद्दाख यूटी फाउंडेशन डे कहा जाता रहा है, लेकिन लोगों की स्मृतियों में 5 अगस्त को फाउंडेशन डे और नंगम दस्तो के तौर पर दर्ज कराने की कोशिश 2022 से शुरू हो गयी.

लद्दाख और संविधान की छठी अनुसूची

लेह और कारगिल के लोगों से बातचीत करते हुए महसूस हुआ कि उन्हें नंगम दस्तो को फाउंडेशन डे के साथ जोड़ देना पसंद नहीं आया है.

लोगों के अनुसार लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में जोड़े बिना केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने का कोई लाभ नहीं है. पिछले एक वर्ष से लद्दाख के लोग सड़कों पर हैं. लद्दाख के भाजपा नेताओं ने भी छठी अनुसूची की मांग को बुलंद किया है.

‘नंगम दस्तो हमारे लिए सांस्कृतिक आयोजन है. जबकि लद्दाख का केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाना एक राजनीतिक फैसला है,’ तेंजिन दंदुल ने कहा. पेशे से बिजनेसमैन तेंजिन ने छठी अनुसूची की मांग करती रैलियों में भाग लिया है. ‘हमें जम्मू और कश्मीर से अलग करके अपनी नई पहचान दी गई, हमें इसकी खुशी है. लेकिन पहचान देकर शक्तिहीन कर देने के खिलाफ हमारा गुस्सा और नाराज़गी है,’ वे कहते हैं.

कांग्रेस नेता और तिमिसगम सीट से हिल काउंसिल के सदस्य ताशी तुंडूप के मुताबिक, ‘फाउंडेशन डे के कार्यक्रमों में शायद ही लद्दाख के लोग शामिल होंगे. यहां बच्चा-बच्चा जागरूक है और वह जानता है कि लद्दाख की मांग पूरी नहीं हुई है. बल्कि पिछले पांच वर्षों में हमारा नुकसान ज्यादा हुआ है. नौकरियों में कमी आ गई है. आउटसोर्स की जा रही है ज्यादातर नौकरियां. लद्दाख के युवाओं के लिए लद्दाख स्काउट्स (आर्मी की एक टुकड़ी) में शामिल होना शान की बात होती थी. उसकी बहाली ही नहीं हो रही है.’

दरअसल, लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल एक्ट, 1995 के जरिये लेह और कारगिल में ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल की स्थापना की गई थी. उसी वर्ष 1995 में पहली बार हिल काउंसिल के चुनाव भी करवाए गए. हिल काउंसिल का बजट जम्मू और कश्मीर राज्य के बजट से ही दिया जाता था. हिल काउंसिल एक तरीके से लद्दाख में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की शुरुआत थी.

हिल काउंसिल एक स्वायत्त संस्था है जो अपनी स्थानीयता को केंद्र में रखकर नियम और कानून बना सकती है, साथ ही वह विधानसभा के बनाए कानून पर पुर्नविचार की मांग कर सकती है. हिल काउंसिल के पारित किए नियम एवं कानून को कार्यपालिका मानने को बाध्य है.

लेकिन ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल के काउंसलरों के मुताबिक, लद्दाख को बिना छठी अनुसूची दिए केंद्र शासित प्रदेश बनाने से हिल काउंसिल की शक्तियां कम हो गई हैं. हिल काउंसिल नियम बना सकती है लेकिन यह उपराज्यपाल पर निर्भर करता है कि वह उसे मंजूरी देते हैं या नहीं. उनका कहना है कि केंद्र शासित प्रदेश होने से हिल काउंसिल जमीन और नौकरियों के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती. अब काउंसलरों का बचा हुआ बजट साल के अंत में सरकार को वापस चला जाता है और अगले साल के बजट में ट्रांसफर नहीं होता बल्कि पुर्नआवंटित होता है. यह स्थिति इसलिए विकट है क्योंकि लद्दाख में अमूमन आठ महीने ही काम होता है, चार महीने ठंड और बर्फ़ के कारण काम बंद हो जाता है.

2 अगस्त, 2024 को कांग्रस सांसद सप्तगिरी उलाका और तनुज पुनिया ने केंद्रीय राज्य जनजातीय कार्य मंत्री दुर्गादास उकेय से पूछा कि क्या सरकार भारतीय संविधान के छठे शेड्यूल का दायरा लद्दाख तक बढ़ा रही है और इसमें हो रही देरी की वजह क्या है. जवाब में केंद्रीय राज्यमंत्री ने कहा बताया कि अनुच्छेद 244(2) के अंतर्गत छठे शेड्यूल और केंद्र शासित प्रेदश लद्दाख दोनों ही गृह मंत्रालय के कार्यक्षेत्र के विषय हैं.

मंत्री ने गृह मंत्रालय के हवाले से बताया, ‘लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व और ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल की शक्तियां बहाल की जा चुकी हैं.’

दुर्गादास उकेय के मुताबिक, लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल एक्ट, 1997 के अंतर्गत लेह और कारगिल ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल डिस्ट्रिक्ट प्लानिंग और डेवलपमेंट बोर्ड की तरह काम करने को अधिकृत हैं. वे सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों और नीतियों के मद्देनज़र अपनी क्षेत्र की जरूरतों को केंद्र में रखकर स्वतंत्र योजनाएं बना सकते हैं. केंद्रीय राज्यमंत्री ने बताया कि वर्ष 2023-24 में हिल काउंसिल का बजट 2019-20 के 183 करोड़ से बढ़ाकर 600 करोड़ कर दिया गया है.

लद्दाख की एक सड़क.

लद्दाख की मायूसी

‘हमारी जनसंख्या से ज्यादा पर्यटक पहुंच रहे हैं. वह बुरा नहीं है जब तक हमारे लोगों के हक नहीं मारा जा रहा. आज बाहर के होटल आ रहे हैं लद्दाख में. वे डीप बोरिंग (भूजल निकालने के लिए जमीन में गहरी बोरिंग) कर रहे हैं, क्योंकि ब्यूरोक्रेसी से उनको समर्थन है. हिल काउंसिल के पास पावर नहीं है कुछ करने की. लद्दाख का पर्यावरण बेहद संवेदनशील है. यह या तो सिक्स्थ शेड्यूल से संभव होगा या हमें राज्य का दर्जा देना होगा,’ लेह मार्केट क्षेत्र में रेस्तरां एंड कैफे चलाने वाले नमगेल ने बताया.

लद्दाख भारत का सबसे ऊंचा पठार है. हिमालय और कुनलून पर्वत पर फैला यह क्षेत्र पर्यावरण की दृष्टि से बहुत नाजुक है. ‘उनके (गैर-लद्दाखी लोगों) लिए यह एक फोटोजेनिक पर्यटन स्थल मात्र है,’ लेह भाजपा से जुड़े सिंगे अंगचोक ने कहा, ‘बाहर के अधिकारी यहां आकर कोई फैसला करें, वह किसी लद्दाखी को मंजूर नहीं है. हमारे यहां हिल काउंसिल है. उसे वह शक्ति होनी चाहिए कि वह तय करें किस तरह का उद्योग आएगा लद्दाख में.’

उन्होंने कहा, ‘लद्दाखी औसतन रोज़ पांच से सात लीटर पानी में गुजारा कर लेता है. जबकि बाकी जगहों पर बीस से तीस लीटर पानी प्रति व्यक्ति खर्च है. लद्दाख को टूरिज्म स्पॉट की तरह डेवलप करना है, उसमें हमें दिक्कत नहीं है. हमें दिक्कत है कि लद्दाख का डेवलेपमेंट शहरी लेंस से नहीं तय किया जाए. यहां की भौगोलिक स्थितियों और संस्कृति को तवज्जो मिलनी चाहिए.’

‘हम नहीं चाहते कि यहां भी हर जगह पनीर दो प्याज़ा सिंड्रोम फैल जाए और लद्दाख के खानपान को ऑउटडेटेड बताया जाने लगे’, उनके साथी स्तेनज़िन नोरबू ने हंसते हुए जोड़ा.

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छठी अनुसूची और लद्दाख की अस्मिता के मसले पर लेह और कारगिल में आम सहमति दिखती है. हालांकि कारगिल के लोग लेह से बेहतर ‘राजनीतिक परिपक्वता’ का दावा करने से बाज़ नहीं आते.

लेह में हिल काउंसिल से पूर्व चेयरमैन रिगज़िन स्पेलबर जो लद्दाख की स्वायत्तता के आंदोलनों का हिस्सा रह चुके थे, ने कहा कि लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने पर ‘हमें खुशी हुई कि किसी सरकार ने आखिरकार हमारी बात सुनी. जम्मू और कश्मीर का हिस्सा रहने पर लद्दाख की अनदेखी होती थी… आज जो लोग सिक्स्थ शेड्यूल या राज्य की मांग कर रहे हैं, वह भी सही है. आज वे लड़ेंगे तो कल उन्हें जीत मिलेगी.’

हालांकि कारगिल के लोग छठी अनुसूची का जिक्र कम करते हैं क्योंकि कारगिल खुद को उपेक्षित मानता है.

‘हम लोगों को (कारगिल के लोगों) को जैसे लद्दाख में गायब कर दिया गया है. लद्दाख का मतलब लेह हो गया है. 2019 से ही हम लोग कह रहे हैं कि हिल काउंसिल की शक्तियां छीनने से परेशानियां बढ़ जाएंगीं. तब कहा जाता था कि कारगिल के मुसलमान जम्मू और कश्मीर से अलग होने पर मातम मना रहे हैं,’ कारगिल के मोहम्मद सलिम जान ने कहा. सलिम टूरिस्ट कैब चलाते हैं और उनके अनुसार लेह में उन्होंने धार्मिक भेदभाव का अनुभव किया है.

‘पिछले पांच वर्षों में लद्दाख में एक भी गजेटेड पोस्ट नहीं निकली है. हिल काउंसिल का नियम (हिल काउंसिल नौकरशाही के अधीन होंगी या वे हिल काउंसिल की सुनेंगे ) अभी तक स्पष्ट नहीं है. लद्दाख जब जम्मू और कश्मीर का हिस्सा था तो बजट बेशक छोटा था लेकिन आज बड़ा बजट होने के बावजूद हिल काउंसिल के पास वित्तीय शक्तियां नहीं है,’ राजनीतिक कार्यकर्ता सज्जाद कारगिली ने कहा.

इससे मुझे लेह में होमस्टे चलाने वाली यांगदोल की याद आई. यांगदोल का बेटा पिछले कई वर्षों से सिविल सर्विसेज़ की तैयारी कर रहा था. उनसे इस बार फिर मुलाक़ात हुई. ‘पिछले पांच वर्षों से पब्लिक सर्विस कमीशन की वैकेंसी ही नहीं आई है. पहले जम्मू और कश्मीर पब्लिक सर्विस कमीशन के तहत वैकेंसियां निकलती थी. मेरा काबिल लड़का अब होमस्टे में हाथ बंटा रहा है,’ यांगदोल ने लेह में मुझसे कहा था.

कारगिल के पूर्व विधायक और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस के सदस्य असगर अली करबलाई बीते पांच वर्षों में केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ पांच बैठकें कर चुके हैं. उनके अनुसार, ‘मार्च 2024 की बैठक में गृह मंत्रालय ने आश्वस्त किया कि लद्दाख को कुछ संवैधानिक सुरक्षाएं दी जाएंगी लेकिन छठी अनुसूची का लाभ नहीं दिया जाएगा. न लद्दाख को राज्य का दर्जा दिया जाए.’

करबलाई लद्दाख में छठे अनुसूची बहाल करने के आंदोलन में अग्रणी नेता हैं. उन्होंने इस बाबत भूख हड़ताल भी की हैं.

कारगिल के लोगों में जम्मू और कश्मीर के प्रति सहानुभूति का भाव दिखाई देता है. जबकि जम्मू और कश्मीर में कारगिल के प्रति यह भावना नहीं है. दरअसल, कारगिल शिया मुसलमान बहुल क्षेत्र है. लेह बौद्ध बहुल है. ऐसे में कारगिल की आबादी खुद को जम्मू और कश्मीर के करीब पाती है. लेह के बौद्ध जम्मू और कश्मीर से अलग होना चाहते थे, हालांकि उनके शब्दों में मुसलमानों के प्रति भेदभाव की झलक मिलती है.

पांच अगस्त की शाम नंगम दस्तो कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे लद्दाख के दूसरे उपराज्यपाल बीडी मिश्रा. लेह हिल काउंसिल के काउंसर्स भी मौजूद थे. एनडीएस ग्राउंड में भीड़ थी, लेकिन सैलानियों की संख्या स्थानीय लोगों से अधिक थी. दिल्ली के एक सैलानी जोड़े के लिए यह कार्यक्रम लद्दाख का ‘स्वतंत्रता दिवस’ कार्यक्रम था. उनके अनुसार , ‘इस तरह का कार्यक्रम अनुच्छेद 370 हटने के बाद ही संभव हो सकता था.’

‘मेरी बहन ने नंगम दस्तो के कार्यक्रम में भाग लिया है. मैं उसको चीयर करने आई हूं. फाउंडेशन डे का हमलोग को नहीं पता,’ भीड़ में मौजूद लेह ओल्ड टाउन क्षेत्र की एक लड़की ने कहा.

उपराज्यपाल बीडी मिश्रा ने अपने संबोधन में नंगम दस्तो के बारे में कम और मोदी सरकार के कामों का ज़िक्र ज्यादा किया.

उन्होंने कहा, ‘भगवान की कृपा से मोदी सरकार मेरी सुनती है. मैं जब भी लद्दाख के बारे उनसे बात करता हूं, प्रधानमंत्री जी बहुत दिलचस्पी से सुनते हैं.’ छठी अनुसूची पर उपराज्यपाल ने सीधे तौर पर तो कुछ नहीं कहा लेकिन लोगों को आश्वस्त किया कि वे कोशिश करेंगे कि ‘लद्दाख के लोगों को भी दूसरे राज्यों के बराबर आरक्षण का लाभ प्राप्त हो.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)