मुंबई: मुंबई के बाहरी इलाके में स्थित तलोजा केंद्रीय कारागार के अंदर कैंटीन सुविधा के कामकाज में कथित भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है. पुलिस और अदालत को दी गई एक विस्तृत शिकायत में एल्गार परिषद मामले में कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्ता सुरेंद्र गाडलिंग और सागर गोरखे ने आम और वीआईपी यानी विशेष कैदियों के बीच भेदभाव का आरोप लगाया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने अपनी शिकायत में दावा किया है कि विभिन्न सब्जियों से बनने वाले पकौड़े और अंडा भुर्जी जैसे बुनियादी खाने की जरूरी चीज़ें 500 और 1,000 रुपये की ऊंची कीमतों पर बेची जा रही हैं.
मालूम हो कि नागपुर के सुरेंद्र गाडलिंग एक जाने-माने मानवाधिकार अधिवक्ता हैं, जिन्होंने 75 महीने से अधिक समय जेल में बिताया है.
उन्होंने अपनी शिकायत में विस्तार से बताया है कि कैसे एक औसत या आम कैदी को जेल कैंटीन की पहुंच से दूर कर उनके हिस्से का अच्छा भोजन ‘वीआईपी कैदियों’ को दे दिया जाता है, जो उन सामानों के लिए अधिक कीमत चुकाने को तैयार हैं.
इससे पहले जुलाई में सागर गोरखे ने भी जेल में भ्रष्टाचार का मुद्दा भी उठाया था, लेकिन कारागार विभाग ने उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की.
इस महीने की शुरुआत में गाडलिंग ने जेल अधिकारियों और स्थानीय पनवेल थाने को अपनी शिकायत लिखकर भेजी थी. पनवेल पुलिस थाने के अधिकार क्षेत्र में ही तलोजा जेल आता है, जिसके वरिष्ठ जेलर सुनील पाटिल को भ्रष्टाचार के पीछे का प्रमुख व्यक्ति बताया गया है.
अपने पत्र में गाडलिंग ने कहा है कि एक किलो मटन 8,000 रुपये की ऊंची कीमत पर बेचा जाता है. इसी तरह एक किलो फ्राइड चिकन की क़ीमत 2,000 रुपये और मटन करी की क़ीमत 7,000 रुपये है.
जेल में बंद व्यक्तियों के ‘भोजन के अधिकार’ का उल्लंघन
गाडलिंग के अनुसार, कैंटीन के परिचालन से प्राप्त पैसा जेल विभाग को नहीं बल्कि ‘पाटिल और उनके लोगों द्वारा संचालित एक समानांतर प्रणाली’ में जाता है, जो सीधे तौर पर जेल में बंद व्यक्तियों के ‘भोजन के अधिकार’ का उल्लंघन है.
ज्ञात हो कि एक दशक पहले गृह मंत्रालय ने ‘मॉडल जेल मैनुअल’ जारी किया था, जिसमें पुरुष कैदियों के लिए प्रति दिन 2,320 किलो से 2,730 किलो कैलोरी और महिला कैदियों के लिए 1,900 किलो से 2,830 किलो कैलोरी का सेवन निर्धारित किया गया था.
जेल में बंद हर व्यक्ति, जेल में रहते हुए पर्याप्त और पौष्टिक भोजन का हकदार है. प्रत्येक राज्य के जेल मैनुअल में भी कम से कम एक अध्याय भोजन को लेकर होता है, जो भोजन के प्रकार, आवृत्ति और मात्रा के बारे में बताता है और कहता है कि जेल में बंद प्रत्येक व्यक्ति को ये मिलना चाहिए.
मैनुअल के हिसाब से ये भोजन पौष्टिक होना चाहिए और इसे कैदियों की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करना चाहिए. ये राज्य की जिम्मेदारी है कि उसकी हिरासत में रहने वालों को पर्याप्त भोजन और उचित पोषण दिया जाए. हालांकि, जमीनी हकीकत इससे बहुत अलग है.
कैदी अक्सर शिकायत करते हैं कि भोजन की गुणवत्ता खाने लायक नहीं हैं और वे कैंटीन सेवाओं पर निर्भर हैं. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों में कई याचिकाएं दायर की गई हैं.
तलोजा जेल में मिलने वाला भोजन ‘मानवीय मानकों के अनुरूप नहीं है
गाडलिंग का कहना है कि तलोजा जेल में उन्हें दिया जाने वाला भोजन ‘मानवीय मानकों के अनुरूप नहीं है, बेस्वाद, अधपका और स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है.’
मालूम हो कि जेलों के अंदर कैंटीन ‘न मुनाफे और न घाटे’ (नो प्रॉफिट – नो लॉस) के सिद्धांत पर चलती हैं. कैदी इसके जरिये खाने की कुछ निर्धारित वस्तुओं का ऑर्डर दे सकते हैं, जो वो खाना चाहते हैं. इन उत्पादों में ज्यादातर सूखे स्नैक्स, साबुन, शैंपू, पोल्ट्री आइटम और मांसाहारी चीज़े शामिल हैं. इन वस्तुओं को मनीऑर्डर के माध्यम से खरीदा जाता है, जो कैदियों के परिवार हर महीने उन्हें भेजते हैं.
हालांकि इसका लाभ भी वही कुछ कैदी ही उठा सकते हैं, जो अपेक्षाकृत संपन्न घरों से हैं.
अपने पत्र में गाडलिंग ने दावा किया है कि जेल का प्रत्येक कैदी अपने खाते के माध्यम से 10,000 रुपये तक की विशेष खाने की वस्तुएं खरीद सकता है, लेकिन तलोजा जेल के कैदी महज़ 6,000 रुपये का ही सामान खरीद सकते हैं, बाकी राशि जेलर पाटिल की जेब में जाती है.
पत्र में गाडलिंग सिस्टम के काम करने के तरीके को विस्तार में बताते हुए कहते हैं कि जेल में कैदियों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है. एक गरीब या साधारण कैदी दूसरे अमीर और वीआईपी कैदी. जब कोई कैदी अपनी जरूरत के सामान के लिए ऑर्डर देता है, तो उसका उल्लेख जेल के ‘वर्क ऑर्डर’ में किया जाना चाहिए, जिसके बारे में गाडलिंग का कहना है कि उसे पाटिल संभालते हैं.
गाडलिंग और गोरखे ने आरोप लगाया है कि हर महीने आम कैदियों का हिस्सा वीआईपी कैदियों को दे दिया जाता है.
शिकायत में आगे कहा गया है, ‘अमीर वीआईपी कैदियों के लिए विशेष खाद्य पदार्थों का राशन अन्य कैदियों के राशन से लिया जाता है, जिसे अच्छी गुणवत्ता और खराब गुणवत्ता वाले भोजन में बांट दिया जाता है. इसके बाद अच्छी गुणवत्ता वाला भोजन वीआईपी कैदियों को दिया जाता है और घटिया भोजन बाकी लोगों के बीच बांटा जाता है.
2,124 कैदियों के लिए बने तलोजा जेल क्षेत्र में 2,898 व्यक्ति बंद
गाडलिंग के बेटे सुमित गाडलिंग, जो एक वकील भी हैं, ने कहा कि इस तरह से विशेष भोजन उपलब्ध कराया जाना एक तरह का मजाक है. यदि आप आधा किलो चिकन मांगते हैं, तो जेल प्राधिकरण आपको 300 ग्राम पानी वाली ग्रेवी और चिकन के दो हड्डीदार टुकड़े देगा. ऐसा इसलिए नहीं है कि वे उचित सामान नहीं खरीद रहे हैं, बल्कि इसलिए कि चिकन के अच्छे टुकड़े वीआईपी कैदियों को दे दिए जाते हैं.
इस साल मई से महाराष्ट्र जेल की वेबसाइट पर अपडेट किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2,124 कैदियों के लिए बने तलोजा जेल क्षेत्र में 2,898 व्यक्ति बंद हैं. इनमें से अधिकांश कैदी गरीब पृष्ठभूमि के हैं, जिनकी क्रय (purchasing) क्षमता बहुत कम है, जबकि कुछ संपन्न और प्रभावशाली श्रेणी के कैदी हैं.
उदाहरण के लिए, कल्याण के एक भाजपा विधायक गणपत गायकवाड़, जिन्हें एक थाने के अंदर एक व्यापारिक और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पर गोली चलाने के लिए गिरफ्तार किया गया था, भी तलोजा में बंद हैं. कई अन्य सफेदपोश अपराधों के आरोपी और कई गिरोह के मालिक भी तलोजा में रखे गए हैं.
द वायर कई प्रयासों के बावजूद तलोजा जेल के अधिकारियों से संपर्क नहीं कर सका. हालांकि जेल उप निरीक्षक (दक्षिण डिवीजन), योगेश देसाई ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि जेल विभाग इन ‘आरोपों’ की जांच करेगा.
जेल अधिकारियों का दबाव
गौरतलब है कि जब गाडलिंग और गोरखे ने इस कथित भ्रष्टाचार पर बोलना शुरू किया, तो उन्होंने दावा किया कि जेल अधिकारियों ने उन्हें डराया. गाडलिंग ने एक अलग पत्र में जेलर पाटिल पर उनके नाम से एक फर्जी पत्र भेजने का भी आरोप लगाया है. इस पत्र में गाडलिंग बताते हैं कि अन्य जेल अधिकारियों के नामों का उल्लेख कैसे किया गया है.
उन्होंने कहा, ‘इस पत्र में मेरा नाम गलत लिखा गया है और मेरे नकली हस्ताक्षर भी हैं. दिलचस्प बात यह है कि इस पत्र में पाटिल के नाम का जिक्र नहीं है, लेकिन कुछ अन्य अधिकारियों का नाम शामिल है.
गाडलिंग ने दावा किया है कि जेलर पाटिल से ध्यान हटाने के लिए जानबूझकर ऐसा किया गया. इस कथित पत्र में गायकवाड़ जैसे ‘वीआईपी कैदियों’ के नाम भी शामिल हैं. गाडलिंग का कहना है कि इन नामों का जानबूझकर उल्लेख किया गया है, जिससे कैदियों के बीच दरार पैदा की जा सके और उनके और उनके जैसे अन्य मुखर कैदियों का जीवन खतरे में पड़ जाए.
मालूम हो कि इन आरोपों पर राज्य की जेलों और पुलिस विभाग दोनों ने चुप्पी साथ रखी है, तो ऐसे में मानवाधिकार की रक्षा करने वालों ने बॉम्बे उच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है.
सुमित गाडलिंग ने द वायर को बताया कि वे हाईकोर्ट जाने की प्रक्रिया में हैं. सुमित ने कहा, ‘पत्र में एक प्रासंगिक मुद्दा उठाया गया है, जो न केवल इन दो शिकायतकर्ताओं के जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि यहां बंद हजारों कैदियों को भी प्रभावित करता है.’