नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार (16 अगस्त) को भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) की तदर्थ (एडहॉक) समिति के पुनर्गठन का निर्देश दिया है.
इस समिति को भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के कामकाज की देखरेख और पर्यवेक्षण का काम सौंपा गया था.
मालूम हो कि बीते साल दिसंबर 2023 में खेल मंत्रालय ने भारतीय कुश्ती संघ को भंग कर तदर्थ कमेटी का गठन किया था, जिसे इस साल मार्च में भारतीय ओलंपिक संघ ने भंग कर दिया था. अदालत इसी को लेकर पहलवानों की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, डब्ल्यूएफआई को निलंबित करने की मांग करने वाले पहलवान बजरंग पुनिया, विनेश फोगाट और साक्षी मलिक की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सचिन दत्ता की पीठ ने कहा कि आईओए द्वारा नियुक्त तदर्थ समिति को रद्द करना ‘अनुचित’ था.
अदालत ने यह भी कहा कि जब आईओए द्वारा तदर्थ समिति को भंग किया गया, तब खेल मंत्रालय ने कोई आपत्ति या विरोध व्यक्त नहीं किया. इससे ऐसा लगता है कि मंत्रालय द्वारा समिति को भंग किए जाने में उसकी मौन सहमति शामिल थी.
ज्ञात को विनेश फोगाट सहित कई महिला पहलवानों द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोपों के बाद कुश्ती महासंघ के पूर्व प्रमुख और पूर्व भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह को अपने पद से हटना पड़ा था. इसे लेकर पहलवानों का एक लंबा संघर्ष देखने को मिला था.
इसके बाद डब्ल्यूएफआई ने एक नई कार्यकारी समिति का चुनाव किया था, जिसमें बृजभूषण के करीबी माने जाने वाले संजय सिंह की जीत हुई थी. हालांकि, इसे लेकर चौतरफा आलोचना और दबाव के बीच खेल मंत्रालय ने 24 दिसंबर, 2023 को इस नवनिर्वाचित निकाय को भी निलंबित कर दिया था.
इस संबंध में कार्रवाई करते हुए यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग (यूडब्ल्यूडब्ल्यू) ने भी अगस्त 2023 में चुनाव न कराने के कारण भारतीय कुश्ती संघ को निलंबित कर दिया था. लेकिन इस साल फरवरी में यूडब्ल्यूडब्ल्यू ने ये निलंबन हटा दिया, जबकि मंत्रालय का निलंबन अभी भी जारी है.
यूडब्ल्यूडब्ल्यू के निलंबन रद्द करने के बाद इस साल 18 मार्च को आईओए ने एक कार्यालय आदेश जारी किया, जिसमें कुश्ती संघ के मामलों के प्रबंधन के लिए नियुक्त तदर्थ समिति को तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया गया.
आईओए ने इसके पीछे तर्क दिया कि यह निर्णय यूडब्लूडब्लू द्वारा कुश्ती संघ से प्रतिबंध हटाने और तदर्थ समिति द्वारा चयन परीक्षणों (सलेक्शन ट्रायल) के सफल समापन को देखते हुए लिया गया है. अब किसी तदस्थ समिति को संघ की गतिविधियां चलाने की कोई आवश्यकता नहीं है.
अपने 30 पन्नों के फैसले में जस्टिस दत्ता ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि खेल मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि डब्ल्यूएफआई का निलंबन जारी है और मंत्रालय ने आईओए से तदर्थ समिति के गठन के अपने अनुरोध को वापस नहीं लिया है. समिति को भंग भी मंत्रालय की मंजूरी के बिना किया गया था.
अदालत ने कहा कि आईओए के कार्यालय आदेश में समिति को भंग करने के लिए जिन कारणों का उल्लेख किया गया है, उनका बीते साल दिसंबर में दिए मंत्रालय के निलंबन आदेश से कोई संबंध नहीं था.
अदालत ने माना कि तदर्थ समिति को भंग करना खेल मंत्रालय के उस आदेश के लिए ‘असंगत’ है, जिसके तहत डब्ल्यूएफआई की नवनिर्वाचित कार्यकारी समिति को दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों के प्रशासन और प्रबंधन से दूर रहने का निर्देश दिया गया है.
अदालत ने आगे कहा, ‘चूंकि पेरिस ओलंपिक 2024 पहले ही खत्म हो चुका है, इसलिए कोई कारण नहीं है कि खेल मंत्रालय को डब्ल्यूएफआई के निलंबन के बारे में अपेक्षित निर्णय लेने में कोई बाधा महसूस हो.
अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि ‘देश के कानून के अनुपालन’ पर जोर देने को ‘सरकारी हस्तक्षेप’ या ‘तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप’ नहीं माना जा सकता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय निकाय से कोई प्रतिकूल कार्रवाई की जाए.