नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव को लेकर अभी से राजनीति तेज़ हो गई है. इस संबंध में शुक्रवार (16 अगस्त) को समाजवादी पार्टी (सपा) ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश की कुंदरकी विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए मुस्लिम और यादव उपनाम वाले चुनाव संबंधी अधिकारियों और पर्यवेक्षकों को हटाया जा रहा है और उनकी जगह अन्य समुदायों के सदस्यों को तैनात किया जा रहा है.
मालूम हो कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की योगी आदित्यनाथ सरकार सत्ता में है.
कुंदरकी राज्य की उन दस विधानसभा सीटों में शामिल है, जहां जल्द ही उपचुनाव होने वाले हैं. इनमें से नौ सीटें विधायकों के अपने-अपने लोकसभा क्षेत्रों में जीत हासिल करने के चलते खाली हुई हैं, जबकि एक सीट पर सपा के मौजूदा विधायक को अयोग्य घोषित कर दिया गया था.
ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश में यादव और मुस्लिम आबादी करीब 28-30% है और इसे सपा का मुख्य वोट बैंक माना जाता है. यह धारणा प्रदेश में मौजूद है और इसे मीडिया द्वारा न केवल आम मतदाताओं के बीच, बल्कि उन अधिकारियों के बीच भी और मजबूत कर दिया गया है, जो इन समुदायों से आते हैं.
1996 से कुंदरकी के सभी विधायक मुसलमान ही रहे हैं. बीते विधानसभा चुनाव में कुंदरकी विधानसभा सीट से सपा की टिकट पर जिया-उर रहमान बर्क ने जीत हासिल की थी. वे यहां 2022 से जून 2024 तक विधायक रहे, लेकिन अब उनके संभल से सांसद चुने जाने के बाद ये सीट खाली हो गई है. भाजपा इस सीट पर लंबे समय से जीत नहीं हासिल कर पाई है. आखिरी बार भाजपा ने यह सीट 1993 में जीती थी.
उपचुनाव नजदीक आने के साथ ही सपा के यूपी अध्यक्ष श्याम लाल पाल ने प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को एक पत्र लिखकर आरोप लगाया कि कुंदरकी में यादव और मुस्लिम बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) और पर्यवेक्षकों को हटाया जा रहा है और उनकी जगह गैर-यादव और ग़ैर-मुस्लिम बीएलओ और पर्यवेक्षकों को नियुक्त किया जा रहा है.
इस संबंध में सपा नेता श्याम लाल पाल ने 12 बीएलओ और पर्यवेक्षकों की एक सूची भी सौंपी, जिन्हें हाल ही में बदला गया है. इनमें सुपरवाइजर फिरोज हैदर सहित दस अन्य मुस्लिम अधिकारियों के नाम शामिल हैं. फिरोज हैदर की जगह कथित तौर पर सुंदर लाल शर्मा को नियुक्ति मिली है.
हालांकि, सपा नेता ने ये भी कहा कि सूची अभी पूरी नहीं है और आरोप लगाया कि कई अन्य बदलाव भी किए गए हैं.
उन्होंने आगे ये भी कहा कि उपचुनाव से पहले जाति और धर्म के आधार पर बीएलओ और पर्यवेक्षकों को बदलना ‘अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक’ है. ये स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया पर सवालिया निशान खड़े करता है.
गौरतलब है कि इस साल हाल ही में संपन्न हुए आम चुनावों में उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 43 पर विपक्ष यानी समाजवादी पार्टी के नेतृत्व में ‘इंडिया’ गठबंधन ने जीत हासिल की थी.
अब इस उपचुनाव के मद्देनज़र विपक्ष ने इस पूरे मामले की जांच और कथित तौर पर बीएलओ और पर्यवेक्षकों को बदलने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त दंडात्मक कार्रवाई की मांग की है.
इस संबंध में राज्य सरकार और मुरादाबाद प्रशासन ने अभी तक सपा के आरोपों का जवाब नहीं दिया है. यूपी के मुख्य चुनाव अधिकारी का जवाब प्राप्त होते ही ये खबर अपडेट की जाएगी.
मालूम हो कि बीएलओ एक स्थानीय सरकारी या अर्ध-सरकारी अधिकारी होते हैं, जो स्थानीय मतदाताओं से परिचित होते हैं. बीएलओ अपने स्थानीय ज्ञान का उपयोग करके मतदाता सूची को अपडेट करने में सहायता करते हैं. वे आम तौर पर उसी मतदान क्षेत्र में मतदाता होते हैं, जिसमें वे काम करते हैं और चुनाव आयोग के जमीनी स्तर के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं.
चुनाव आयोग की हैंडबुक के अनुसार, बीएलओ मतदाता सूची (roll) संशोधन की प्रक्रिया में एक ‘महत्वपूर्ण भूमिका’ निभाते हैं और इस संबंध में वास्तविक क्षेत्र की जानकारी एकत्र करते हैं.
प्रत्येक बीएलओ के अधिकार क्षेत्र में एक या दो मतदान केंद्र होते हैं. जिन सरकारी और अर्ध-सरकारी अधिकारियों को बीएलओ के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, उनमें शिक्षक, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, पंचायत सचिव, डाक कर्मचारी, बिजली बिल रीडर, ग्राम स्तर के कार्यकर्ता, लेखपाल, सहायक नर्स और दाई और स्वास्थ्य कार्यकर्ता शामिल हैं.
बीएलओ के कर्तव्यों में से एक ये भी है कि ये लोग अपने अधिकार क्षेत्र के तहत आने वाले गांवों और बस्तियों का दौरा कर मृत या जाली मतदाताओं के नामों की पहचान करते हैं. ये उन लोगों की भी पहचान करते हैं, जो क्षेत्र से बाहर चले गए हैं.
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