माधबी बुच का कंपनी में 99% शेयर रखना सेबी की ‘हितों के टकराव’ संहिता के ख़िलाफ़: रिपोर्ट

हिंडनबर्ग रिसर्च ने बताया है कि इस साल 31 मार्च तक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड की अध्यक्ष माधबी बुच के पास अगोरा एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड की 99% हिस्सेदारी थी. इस कंपनी ने बुच के सेबी में रहने के दौरान सात सालों में 3 करोड़ रुपये से ज़्यादा की कमाई की.

(इलस्ट्रेशन: द वायर/Canva)

नई दिल्ली: भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की पूर्णकालिक सदस्य बनने के बाद से सात वर्षों में 3.71 करोड़ रुपये कमाने वाली कंसल्टेंसी फर्म में माधबी पुरी बुच की 99% हिस्सेदारी संभावित रूप से बाजार नियामक की हितों के टकराव की नीति का उल्लंघन करती है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने अगोरा एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड की आय की रिपोर्ट भारत के रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के सार्वजनिक दस्तावेजों का हवाला देते हुए दी.

रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी वितीय शोध संस्थान हिंडनबर्ग रिसर्च ने बुच पर अडानी समूह की जांच में ‘बड़े पैमाने पर हितों के टकराव‘ का आरोप लगाया है, क्योंकि उनके और उनके पति ने एक विदेश फंड में निवेश किया था. हिंडनबर्ग ने उन दस्तावेजों का भी हवाला दिया है, जिनमें कहा गया है कि इस साल 31 मार्च तक बुच के पास अगोरा एडवाइजरी के 99% शेयर थे.

सेबी के बोर्ड के सदस्यों के लिए हितों के टकराव की संहिता– जिसमें सेबी अध्यक्ष के रूप में बुच भी शामिल हैं- कहती है कि इसके पूर्णकालिक सदस्य ‘किसी अन्य लाभ के पद पर नहीं रहेंगे’.

उन्हें ऐसी ‘किसी भी अन्य व्यावसायिक गतिविधि में शामिल होने से भी प्रतिबंधित किया गया है, जिसमें वेतन या पेशेवर शुल्क प्राप्त करना शामिल हो.’

10 अगस्त की अपनी रिपोर्ट में हिंडनबर्ग ने यह भी कहा कि बुच हाल ही में 16 मार्च 2022 तक सिंगापुर स्थित एक कंसल्टेंसी कंपनी अगोरा पार्टनर्स में 100% शेयरधारक थीं. दो हफ्ते बाद वह सेबी अध्यक्ष बन गईं और अपनी हिस्सेदारी अपने पति को हस्तांतरित कर दी.

हिंडनबर्ग ने कहा कि ह अज्ञात है कि अगोरा पार्टनर्स ने कितना राजस्व अर्जित किया, क्योंकि कंपनी को इस जानकारी खुलासा करने से छूट प्राप्त है.

बुच ने 2017 में सेबी में पूर्णकालिक सदस्य के रूप में शामिल होने से पहले अगोरा एडवाइजरी और अगोरा पार्टनर्स दोनों की स्थापना की थी.

रॉयटर्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि बुच का शेयरधारक होना संभवत: सेबी द्वारा अपने बोर्ड सदस्यों के लिए बनाई गई हितों के टकराव की आचार संहिता का उल्लंघन करता है.

आर्थिक मामलों के पूर्व सचिव सुभाष चंद्र गर्ग, जिन्होंने बुच के साथ सेबी बोर्ड के सदस्य के रूप में काम किया था, ने रॉयटर्स को बताया कि ‘बोर्ड में शामिल होने के बाद भी उनके लिए फर्म का स्वामित्व जारी रखना सही नहीं था. इसका खुलासा करने के बाद भी उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती थी.’

गर्ग ने समाचार एजेसी को यह भी बताया कि अगोरा एडवाइजरी में बुच की हिस्सेदारी और इससे होती निरंतर आय ‘बहुत गंभीर’ उल्लंघन है. उन्होंने यह भी कहा, ‘यह नियामक के रूप में उनकी स्थिति को पूरी तरह असमर्थनीय बनाता है.’

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया में बुच और उनके पति धवल ने कहा कि अगोरा एडवाइजरी और अगोरा पार्टनर्स दोनों ही ‘सेबी में उनकी नियुक्ति के तुरंत बाद निष्क्रिय हो गए थे.’

बुच और उनके पति ने 11 अगस्त को कहा था, ‘ये कंपनियां (और उनमें बुच दंपति की शेयरधारिता) सेबी के समक्ष उनके द्वारा किए गए खुलासे का स्पष्ट रूप से हिस्सा थीं.’

रॉयटर्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि बुच ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि अगोरा एडवाइजरी में अपनी शेयरधारिता बरकरार रखने के लिए क्या उन्हें छूट दी गई थी.

हिंडनबर्ग के अनुसार, बुच और उनके पति ने जिस विदेशी फंड में निवेश किया था, उसका इस्तेमाल ‘कथित अडानी धन हेराफेरी घोटाले में विनोद अडानी द्वारा किया गया था.’

सेबी ने 11 अगस्त को कहा था कि ‘प्रतिभूतिओं के स्वामित्व और उनके हस्तांतरण के संदर्भ में आवश्यक प्रासंगिक खुलासे समय-समय पर अध्यक्ष (बुच) द्वारा किए गए हैं’ और ‘उन्होंने “संभावित हितों के टकराव से जुड़े मामलों से भी खुद को अलग कर लिया है.’

स्क्रॉल की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अगोरा एडवाइजरी का पता वही है जो इसके ऑडिटर का है.