नई दिल्ली: ओलंपिक पहलवान विनेश फोगाट ने शुक्रवार को एक मार्मिक बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने अपने संघर्षों के बारे में बताया और पेरिस ओलंपिक की तैयारी में मदद करने के लिए अपनी टीम का आभार व्यक्त किया. यह बयान फोगाट की संयुक्त रजत पदक की अपील के बाद आया है, जिसे कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट (सीएएस) ने खारिज कर दिया था.
29 वर्षीय विनेश ने अलग परिस्थितियों में खेल में वापसी करने का भी संकेत दिया.
उन्होंने लिखा, ‘कहने को बहुत कुछ है और बताने को भी बहुत कुछ है, लेकिन शब्द कभी पर्याप्त नहीं होंगे और शायद मैं सही समय आने पर फिर बोलूंगी. 6 अगस्त की रात और 7 अगस्त की सुबह, मैं बस इतना कहना चाहती हूं कि हमने हार नहीं मानी, हमारे प्रयास नहीं रुके और हमने आत्मसमर्पण नहीं किया, लेकिन घड़ी रुक गई और समय ठीक नहीं था.
पेरिस से लौटने के बाद पत्रकारों से बातचीत में फोगाट ने कहा, ‘मैं देश के लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहती हूं जो हमारी लड़ाई में हमारा साथ दे रहे थे. हमारी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है.’
VIDEO | “I want to thank the people of the country who were supporting us in our fight. Our fight is not over yet,” says wrestler Vinesh Phogat (@Phogat_Vinesh) after arriving at #Delhi‘s IGI airport following the heartbreak in #Paris Olympics.
(Full video available on PTI… pic.twitter.com/uHWry6i6yI
— Press Trust of India (@PTI_News) August 17, 2024
उनका संपादित बयान निम्नलिखित है.
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ओलंपिक रिंग्स: एक छोटे-से गांव की छोटी सी लड़की के रूप में मुझे नहीं पता था कि ओलंपिक क्या है या इन रिंग्स का क्या मतलब है. एक छोटी-सी लड़की के रूप में, मैं लंबे बाल, अपने हाथ में मोबाइल फोन दिखाना और वो सभी चीजें करने के सपने देखती थी जो कोई भी कम उम्र की लड़की आमतौर पर देखती है.
मेरे पिता एक आम बस चालक थे, जो मुझसे कहा करते थे कि एक दिन वह अपनी बेटी को विमान में ऊंची उड़ान भरते देखेंगे और वह नीचे सड़क पर गाड़ी चला रहे होंगे, अपने पिता का केवल वही सपना मैं हकीकत में बदल पाई. मैं यह कहना नहीं चाहती लेकिन मुझे लगता है तीनों भाई-बहनों में वह सबसे ज्यादा मुझे पसंद करते थे, क्योंकि मैं सबसे छोटी थी.
मेरी मां, जिनके जीवन की कठिनाइयों पर एक पूरी कहानी लिखी जा सकती है, केवल यही सपना देखती थीं कि एक दिन उनके सभी बच्चे उनसे बेहतर जीवन जिएंगे. आज़ाद होना और अपने बच्चों को अपने पैरों पर खड़े देखना, उनका बस यह सपना था. उनकी इच्छाएं और सपने मेरे पिता की तुलना में बहुत सादा और सरल थे.
लेकिन जिस दिन मेरे पिता हमें छोड़कर चले गए, मेरे पास उस विमान में उड़ने के बारे में उनके शब्द ही बचे थे. मैं तब इसके अर्थ को लेकर उलझन में थी, लेकिन फिर भी उस सपने को अपने करीब रखा. मेरी मां का सपना अब और दूर हो गया था क्योंकि मेरे पिता की मौत के कुछ महीने बाद उन्हें स्टेज-3 कैंसर का पता चला. यहां से तीन बच्चों की यात्रा शुरू हुई, जिन्होंने अपनी अकेली मां को सहारा देने के लिए अपना बचपन खो दिया. जल्द ही मेरे लंबे बाल, मोबाइल फोन के सपने फीके पड़ गए, क्योंकि मैंने जीवन की वास्तविकता का सामना किया और जिंदगी की दौड़ में शामिल हो गई.
लेकिन जिंदगी की इस दौड़ से मुझे बहुत कुछ सीखने मिला. अपनी मां के कष्टों को देखना, उनके कभी हार न मानने वाले रवैये को देखना और उनकी लड़ने की भावना ने मुझे ऐसा बनाया जो आज मैं हूं. उन्होंने मुझे अपने हक के लिए लड़ना सिखाया. जब मैं साहस के बारे में सोचती हूं, तो उनके बारे में सोचती हूं और यही साहस मुझे परिणाम के बारे में सोचे बिना हर लड़ाई लड़ने में मदद करता है.
आगे की राह कठिन होने के बावजूद, हमने एक परिवार के रूप में कभी भी भगवान पर अपना विश्वास नहीं खोया और हमेशा भरोसा किया कि उन्होंने हमारे लिए कुछ अच्छा ही सोचा होगा. मां हमेशा कहती थी कि भगवान अच्छे लोगों के साथ कभी बुरा नहीं होने देंगे. जब मेरी मुलाकात सोमवीर से हुई जो मेरे पति, हमसफ़र, साथी और जीवन के सबसे अच्छे दोस्त हैं, तो मुझे इस बात पर और भी यकीन हो गया. सोमवीर के साथ ने मेरे जीवन की हर जगह ले ली और उन्होंने हर भूमिका में मेरा साथ दिया है.
यह कहना गलत होगा कि जब हम चुनौतियों का सामना कर रहे थे तो हम बराबर के भागीदार थे, क्योंकि उन्होंने हर कदम पर त्याग किया और मेरी मुश्किलों को झेला, हमेशा मेरी रक्षा की. उन्होंने मेरी यात्रा को अपने से ऊपर रखा और पूरी निष्ठा, समर्पण और ईमानदारी के साथ मुझे अपना साथ दिया. अगर वह न होते तो मैं यहां होने की, अपनी लड़ाई जारी रखने और हर दिन इसका डटकर सामना करने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी. यह सिर्फ़ इसलिए संभव है क्योंकि मुझे पता है कि वह मेरे साथ, मेरे पीछे और ज़रूरत पड़ने पर मेरे सामने खड़े हैं, हमेशा मेरी रक्षा करने के लिए.
पिछले 1.5-2 सालों में मैदान के अंदर और बाहर बहुत कुछ हुआ है. मेरे जीवन ने कई मोड़ लिए, ऐसा लगा कि जीवन हमेशा के लिए रुक गया है और हम जिस गड्ढे में फंसे थे, उससे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था. लेकिन मेरे आस-पास के लोगों में ईमानदारी थी, उनमें मेरे लिए सद्भावना और भरपूर समर्थन था. ये लोग और मुझ पर उनका विश्वास जमीनी मजबूत था, यह उनके कारण ही था कि मैं चुनौतियों का सामना करते हुए पिछले 2 वर्षों में सफल हो सकी.
मैट पर मेरी यात्रा में पिछले दो वर्षों से मेरी सपोर्ट टीम ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है.
डॉ. दिनशॉ पारदीवाला. भारतीय खेलों में यह कोई नया नाम नहीं है. मेरे लिए, और मुझे लगता है कि कई अन्य भारतीय एथलीटों के लिए, वह सिर्फ़ एक डॉक्टर नहीं बल्कि भगवान के भेजे गए फरिश्ते हैं. जब मैं चोटों का सामना करने के बाद खुद पर विश्वास करना बंद कर चुकी थी, तो यह उनका विश्वास, काम और मुझ पर भरोसा ही था जिसने मुझे फिर से अपने पैरों पर खड़ा किया. उन्होंने मेरा एक बार नहीं बल्कि तीन बार ऑपरेशन किया है (दोनों घुटने और एक कोहनी का) और मुझे दिखाया है कि इंसान का शरीर कितना मजबूत हो सकता है. मैं उनके और उनकी पूरी टीम के काम और समर्पण के लिए हमेशा उनका आभारी रहूंगी. पेरिस ओलंपिक में भारतीय दल के एक हिस्से के रूप में उनका उपस्थित होना सभी साथी एथलीटों के लिए ऊपरवाले का तोहफा था.
डॉ. वेन पैट्रिक लोम्बार्ड. उन्होंने एक एथलीट के तौर पर सबसे कठिन यात्रा से गुजरने में मेरी मदद की है, और एक बार नहीं, दो बार. विज्ञान एक तरफ है, उनकी विशेषज्ञता पर कोई संदेह नहीं है, लेकिन जटिल चोटों से निपटने के प्रति उनके दयालु, धैर्यवान और रचनात्मक दृष्टिकोण ने मुझे यहां तक पहुंचाया है. दोनों बार जब मैं घायल हई और ऑपरेशन किया गया, तो यह उनके काम और प्रयासों का ही नतीजा था कि मैं वापस खड़ी हो सकी. उन्होंने मुझे सिखाया कि एक समय में एक दिन को कैसे जीना चाहिए और उनके साथ हर सत्र एक प्राकृतिक तनाव निवारक की तरह महसूस हुआ. मैं उन्हें एक बड़े भाई के रूप में देखती हूं, जो हमेशा मेरा ख्याल रखते हैं, तब भी जब हम साथ काम नहीं कर रहे होते हैं.
वोलर अकोस. उनके बारे में जो लिखूं, कम ही होगा. महिला कुश्ती की दुनिया में, मैंने उन्हें सबसे अच्छा कोच, सबसे अच्छा मार्गदर्शक और सबसे अच्छा इंसान पाया है. उनके शब्दकोष में असंभव शब्द नहीं है और जब भी हम मैट पर या उसके बाहर किसी कठिन परिस्थिति का सामना करते हैं, तो वे हमेशा एक योजना के साथ तैयार रहते हैं. कई बार ऐसा हुआ कि मुझे खुद पर संदेह हुआ और मैं खुद को भटकता महसूस कर रही थी और वह अच्छी तरह जानते थे कि मुझे क्या कहना है और मुझे कैसे वापस मेरे रास्ते पर लाना है. वह एक कोच से कहीं बढ़कर थे, कुश्ती में मेरा परिवार. वह कभी भी मेरी जीत और सफलता का श्रेय लेने के लिए भूखे नहीं रहे, हमेशा विनम्र रहे और मैट पर अपना काम पूरा होते ही एक कदम पीछे हट गए… आज मैं बस दुनिया को यह बता सकती हूं कि अगर आप नहीं होते तो मैं मैट पर वह नहीं कर पाती जो मैंने किया है.
अश्विनी जीवन पाटिल. पिछले 2.5 सालों में वह मेरे साथ इस यात्रा से ऐसे गुज़रीं जैसे यह उनकी अपनी हो. हर प्रतियोगिता, जीत और हार, हर चोट और उससे वापस लौटने की यात्रा उतनी ही उनकी थी जितनी मेरी. यह पहली बार है जब मैं किसी फिजियोथेरेपिस्ट से मिली हूं जिसने मेरे और मेरी यात्रा के प्रति इतना समर्पण और सम्मान दिखाया है. केवल हम दोनों ही जानते हैं कि हर ट्रेनिंग से पहले, उसके बाद और प्रशिक्षण के बीच में हमें क्या-क्या सहना पड़ता था.
तजिंदर कौर. पिछले एक साल में सर्जरी के बाद मेरा वजन कम करने का सफ़र चोट के भरने जितना ही चुनौतीपूर्ण था. चोट का इलाज करते हुए और ओलंपिक की तैयारी करते हुए 10 किलो से ज़्यादा वजन कम करना कोई आसान काम नहीं है. मुझे याद है जब मैंने आपको पहली बार 50 किलो वर्ग में खेलने के बारे में बताया था और आपने मुझे कैसे आश्वस्त किया था कि हम चोट का इलाज करते हुए भी इसे हासिल कर लेंगे. यह आपका लगातार प्रोत्साहन और हमारे लक्ष्य, ओलंपिक स्वर्ण पदक, के बारे में आपका बार-बार याद दिलाना था जिससे मुझे वजन कम करने में मदद मिली.
ओजीक्यू (ओलंपिक गोल्ड क्वेस्ट) और टीम. मैं ओजीक्यू के योगदान के बिना भारतीय खेलों की तरक्की की कल्पना नहीं कर सकती. पिछले दशकों में इस पूरी टीम ने जो कुछ भी हासिल किया है, वह सब इस टीम के लोगों और खेलों के प्रति उनके ईमानदार जुनून की वजह से है. हाल के वर्षों में दो सबसे कठिन समय- एक – 2021 में टोक्यो ओलंपिक के बाद, और दूसरा – 2023 में पहलवानों के विरोध प्रदर्शन और एसीएल सर्जरी के बाद, यह उनके सहयोग और निरंतर समर्थन के कारण था कि मैं इससे उबर सकी. एक भी दिन ऐसा नहीं बीता जब वे मुझसे संपर्क न करते हों, यह सुनिश्चित करने के लिए कि मैं सुरक्षित हूं, प्रोग्रेस कर रही हूं और सही रास्ते पर हूं. मैं और इस पीढ़ी के मेरे कई साथी एथलीट बहुत भाग्यशाली हैं कि हमारे पास ओजीक्यू है, जो एक ऐसा संगठन है जो कुछ महान एथलीटों द्वारा स्थापित किया गया है और जो हमारा ख्याल रखते हैं.
पहलवानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान मैं भारत में महिलाओं की शुचिता, हमारे तिरंगे की पवित्रता और मूल्यों की रक्षा के लिए कड़ी लड़ाई लड़ रही थी. लेकिन जब मैं 28 मई 2023 की तिरंगे के साथ अपनी तस्वीरें देखती हूं, तो मुझे बहुत बुरा लगता है. मेरी इच्छा थी कि इस ओलंपिक में भारत का झंडा ऊंचा लहराए, मेरे पास तिरंगे की एक तस्वीर हो जो वास्तव में इसके मूल्य को दर्शाती हो और इसकी पवित्रता को वापस बनाती हो. मुझे लगा कि ऐसा करने से झंडे और कुश्ती के साथ जो कुछ हुआ, उसे सहीकिया जा सकेगा. मैं वास्तव में अपने साथी भारतीयों को यह दिखाने की उम्मीद कर रही थी.
कहने को बहुत कुछ है और बताने को भी बहुत कुछ है, लेकिन शब्द कभी भी पर्याप्त नहीं होंगे और शायद मैं सही समय आने पर फिर से बोलूंगी. 6 अगस्त की रात और 7 अगस्त की सुबह… मैं बस इतना ही कहना चाहती हूं कि हमने हार नहीं मानी, हमारे प्रयास नहीं रुके, और हमने सरेंडर नहीं किया, लेकिन घड़ी रुक गई और समय ने साथ नहीं दिया. यही मेरी किस्मत थी… जिस लक्ष्य के लिए हम काम कर रहे थे और जिसे हासिल करने की हमने योजना बनाई थी, वह अधूरा रह गया है, कुछ कमी हमेशा बनी रहेगी और शायद चीजें फिर कभी वैसी न हों.
शायद अलग परिस्थितियों में मैं खुद को 2032 तक खेलते हुए देख पाऊं, क्योंकि मेरे अंदर की लड़ाई और कुश्ती हमेशा बनी रहेगी. मैं यह अनुमान नहीं लगा सकती कि भविष्य में मेरे लिए क्या होगा, तथा इस सफर में आगे क्या होगा, लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि मैं हमेशा उस चीज के लिए लड़ी रहूंगी, जिस पर मेरा विश्वास है तथा जो सही है.