नई दिल्ली: संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने शनिवार (18 अगस्त) को 24 केंद्रीय मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, उप सचिव और निदेशक के 45 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला. विज्ञापन के मुताबिक, अनुबंध की इस नौकरी के लिए लैटरल एंट्री के माध्यम से भर्ती होनी है.
द हिंदू के मुताबिक, विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि लैटरल एंट्री के माध्यम से भर्ती कर केंद्र सरकार आरक्षण को दरकिनार करने की कोशिश कर रही है. कुल 45 पदों में से 10 संयुक्त सचिव और शेष 35 उप सचिव एवं निदेशक के लिए हैं. विज्ञापन के लिए अनुसार, इन पदों को 17 सितंबर तक भरा जाना है.
संविधान की धज्जियां उड़ा रही है भाजपा- कांग्रेस
भर्ती प्रक्रिया को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर संविधान की धज्जियां उड़ाने का आरोप लगाया है और इसे ‘आरक्षण पर दोहरा हमला’ बताया है. उन्होंने पूछा है कि क्या इन लैटरल एंट्री पदों में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए कोई आरक्षण है?
खरगे ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा है, ‘एक सुनियोजित साजिश के तहत भाजपा जानबूझकर नौकरियों में ऐसी भर्तियां कर रही है, ताकि एससी, एसटी, ओबीसी वर्ग को आरक्षण से दूर रखा जा सके. उत्तर प्रदेश में 69,000 सहायक शिक्षकों की नियुक्ति में हुआ आरक्षण घोटाला अब हाईकोर्ट के फैसले से उजागर हो गया है.’ उन्होंने कहा है कि मार्च 2024 में राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश के मुद्दे पर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था.
खरगे ने कहा, ‘भारत के संविधान में निहित आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक न्याय के प्रावधानों को पूरी तरह लागू करना आवश्यक है. इसीलिए कांग्रेस पार्टी सामाजिक न्याय के लिए जातिगत जनगणना की मांग कर रही है.’
राजद ने बताया अधिकारों की लूट
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने भी केंद्र की आलोचना करते हुए इस प्रक्रिया को देश की आरक्षण प्रणाली और संविधान के साथ एक क्रूर मजाक करार दिया है.
उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा है, ‘केंद्र की मोदी सरकार बाबा साहेब के लिखे संविधान और आरक्षण के साथ कैसा घिनौना मजाक एवं खिलवाड़ कर रही है, यह विज्ञापन उसकी एक छोटी सी बानगी है. यूपीएससी ने लैटरल एंट्री के ज़रिए सीधे 45 संयुक्त सचिव, उपसचिव और निदेशक स्तर की नौकरियां निकाली हैं लेकिन इनमें आरक्षण का प्रावधान नहीं है. अगर यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से 45 आईएएस की नियुक्ति करती तो उसे एससी/एसटी और ओबीसी को आरक्षण देना पड़ता यानी 45 में से 22-23 अभ्यर्थी दलित, पिछड़ा और आदिवासी वर्गों से चयनित होते.’
उन्होंने आगे लिखा, ‘मोदी सरकार बहुत ही व्यवस्थित, पद्धतिबद्ध, योजनाबद्ध और शातिराना तरीके से आरक्षण को समाप्त कर रही है. विगत चुनाव में प्रधानमंत्री समेत बिहार में उनकी पिछलग्गू पार्टियां और उनके नेता छाती पीट-पीटकर दावा करते थे कि आरक्षण को समाप्त कर कोई उनका हक-अधिकार नहीं खा सकता लेकिन उनकी आंखों के सामने, उनके समर्थन व सहयोग के बल पर वंचित, उपेक्षित और गरीब वर्गों के अधिकारों पर डाका डाला जा रहा है तथा कथित स्वयंभू ओबीसी पीएम समेत उनके साथ यूपी-बिहार-झारखंड के एससी/एसटी और ओबीसी नेता दुर्भाग्यपूर्ण रूप से ताली पीट ठहाके लगा रहे है. देश की 90 फ़ीसदी आबादी का हक़ खाने वालों को जनता माफ़ नहीं करेगी.’
बता दें कि लैटरल एंट्री योजना की शुरुआत वर्ष 2018 की गई थी, जिसके तहत सरकारी विभागों में अनुबंध के आधार पर विशेषज्ञों की नियुक्ति इंटरव्यू के जरिए सीधी भर्ती के माध्यम से की जाती है. इन्हें वेतन और सुविधाएं आईएएस अधिकारियों के स्तर की मिलती हैं