कोलकाता रेप केस: वो पांच सवाल जिनके जवाब अभी भी ममता सरकार द्वारा देना बाकी हैं

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सवाल उठाया है कि सरकारी अस्पताल में इतना हिंसक अपराध कैसे हो सकता है. यही सवाल प्रदर्शनकारी उनसे पूछ रहे हैं, क्योंकि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और गृहमंत्री के दोनों ही पद वह स्वयं संभालती हैं.

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(फोटो साभार: एक्स)

नई दिल्ली: शुक्रवार (16 अगस्त) को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पिछले सप्ताह आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार के बाद हत्या के मामले में न्याय की मांग करते हुए एक रैली का नेतृत्व किया. स्वास्थ्य मंत्री होने के नाते इस संस्थान की देख-रेख का जिम्मा ममता बनर्जी के ऊपर ही है, जबकि कानून और व्यवस्था भी उनके दायरे में आती है क्योंकि वह राज्य की गृहमंत्री भी हैं. 

बनर्जी ने सवाल उठाया है कि सरकारी अस्पताल में इतना हिंसक अपराध कैसे हो सकता है और सुबह तक डॉक्टर की अनुपस्थिति पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया?  ये वही सवाल हैं जो घटना के दिन से सड़कों पर प्रदर्शनकारी पूछ रहे हैं. ऐसे और भी कई गंभीर सवाल हैं जो राज्य सरकार, स्वास्थ्य विभाग और पुलिस से जवाब मांगते हैं, और यह सभी सीधे ममता के दायरे में आते हैं. 

प्रश्न 1: डॉक्टर के शरीर पर ग्यारह घाव थे, और उसके शरीर का निचला हिस्सा निर्वस्त्र था. फिर अस्पताल अधिकारियों ने उसके माता-पिता को यह क्यों बताया कि यह आत्महत्या थी?

ये सवाल हर किसी को हैरान कर देने वाला है. लल्लनटॉप के साथ एक वीडियो साक्षात्कार में, डॉक्टर के माता-पिता के साथ अस्पताल गए एक रिश्तेदार ने दावा किया कि पीड़िता के पैर 90 डिग्री पर अजीब तरीके से फैले हुए मिले थे.  द वायर के पास अपराध स्थल की तस्वीरें हैं, और वह परिजनों के इस दावे के सच होने की पुष्टि कर सकता है. 

घटना के बाद पीड़िता के माता-पिता को आरजी कर अस्पताल के सहायक अधीक्षक के दो फोन आए. पहले फोन कॉल में, उनकी बेटी के अचानक बीमारी हो जाने के बहाने उन्हें तत्काल अस्पताल परिसर बुलाया गया. इसके बाद उन्हें बताया गया कि उसकी मौत आत्महत्या से हुई है.

प्रश्न 2: परिवार को अपनी बच्ची का शव देखने के लिए पुलिस से मिन्नत क्यों करनी पड़ी?

एक स्थानीय चैनल को दिए इंटरव्यू में पीड़िता की मां ने खुलासा किया कि उन्हें अपनी बेटी का चेहरा देखने के लिए पुलिस से गुहार लगानी पड़ी थी. हालांकि पुलिस ने इस दावे का खंडन किया है. 

पीड़ित की मां और एक रिश्तेदार दोनों ने जोर देकर कहा है कि शव देखने की अनुमति देने से पहले उन्हें अस्पताल में घंटों इंतजार कराया गया था. पीड़िता की मां के अनुसार, जब वे अस्पताल में बैठे इंतजार कर रहे थे, तो अस्पताल का कोई भी वरिष्ठ अधिकारी उनसे नहीं मिला.  कोलकाता पुलिस ने घटना से एक दिन पहले पीड़िता की कार क्षतिग्रस्त किए जाने का दावा करने वाले कई सोशल मीडिया यूजर्स के खिलाफ कार्रवाई की है. लेकिन उन्होंने डॉक्टर की मां के उस दावे का जवाब नहीं दिया है जिसमे उन्होंने कहा था कि पुलिस ने उन्हें परिसर से बाहर निकालने के दौरान कार को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी.

प्रश्न 3: क्या पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पीड़िता के नाम का उल्लेख करने के लिए तत्कालीन प्रिंसिपल संदीप घोष को कोई नोटिस भेजा है?

एक नाटकीय प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरजी कर के तत्कालीन प्रिंसिपल संदीप घोष ने कानून द्वारा निषिद्ध होने के बावजूद डॉक्टर के नाम का नौ बार उल्लेख किया था. कोलकाता पुलिस ने 200 से अधिक लोगों को उनके सोशल मीडिया पोस्ट के लिए नोटिस जारी किए हैं और कई एफआईआर दर्ज की हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि घोष को पीड़िता की पहचान का खुलासा करने के लिए कोई परिणाम भुगतना पड़ा है या नहीं.

प्रश्न 4: कार्यस्थल पर हिंसा और भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद डॉ. संदीप घोष को राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत क्यों किया गया?

इस सवाल ने कोलकाता हाईकोर्ट को भी उलझन में डाल दिया है. व्यापक भ्रष्टाचार, कदाचार और प्रतिकूल कार्य वातावरण बनाने के आरोपी घोष, सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के साथ अपने कथित करीबी संबंधों के कारण एक शक्तिशाली व्यक्तित्व हैं. वित्तीय कदाचार सहित गंभीर अनियमितताओं के बारे में राज्य सतर्कता आयोग को एक पूर्व सहयोगी द्वारा विस्तृत शिकायत करने के बावजूद, उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. इसके बजाय, व्हिसलब्लोअर अख्तर अली को अस्पताल से स्थानांतरित कर दिया गया था. 

घोष को ‘माफिया डॉन’ बताते हुए अली ने अब सार्वजनिक रूप से दावा किया है कि घोष ने छात्रों से पैसे वसूले, निविदा प्रक्रियाओं में हेरफेर किया और डराने-धमकाने की संस्कृति को बढ़ावा दिया. 

घोष को पहले भी दो बार स्थानांतरित किया गया था, लेकिन फिर भी चमत्कारिक ढंग से उन्हें आरजी कर अस्पताल के प्रिंसिपल के रूप में बहाल कर दिया गया.  

घोष ने हाल ही में जब आरजी कर अस्पताल से इस्तीफा दिया, तो उन्हें नेशनल मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के रूप में नियुक्त कर दिया गया. उस नियुक्ति पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने रोक लगा दी. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने घोष को सरकार द्वारा दिए जा रहे संरक्षण की खुले तौर पर आलोचना करते हुए कहा, ‘आपका मुवक्किल एक शक्तिशाली व्यक्ति है. सरकार उनके साथ है. जब भी वह सुरक्षा मांगेंगे, पुलिस सुरक्षा मुहैया कराएगी. अगर उन्हें 500 लोगों का सुरक्षा बल चाहिए तो उनकी सुरक्षा के लिए 500 पुलिसकर्मी उनके आवास पर पहुंचेंगे. इसलिए, उनसे कहें कि वह पुलिस से सुरक्षा मांगें.’

प्रश्न 5: जांच चलने के बावजूद भी अस्पताल के छाती रोग विभाग में नवीनीकरण कार्य क्यों शुरू किया गया?

जैसे ही बुधवार (14 अगस्त) को सीबीआई ने मामले को अपने हाथ में लिया, ऑनलाइन ऐसी तस्वीरें सामने आईं जिनमें उसी विभाग में नवीनीकरण का कार्य होते देखा जा सकता था, जहां युवा डॉक्टर का शव मिला था. एक नया विश्राम क्षेत्र बनाने के लिए अपराध स्थल के नजदीक स्थित एक कमरे और पास के महिला शौचालय को गिरा दिया गया. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कमरे और शौचालय को तोड़ने का आदेश घटना के बमुश्किल दो दिन बाद शनिवार को जारी किया गया था. एक तरफ अस्पताल छात्रों की मांगों का जवाब देने का दावा करता है, वहीं दूसरी तरफ नवीनीकरण का समय अत्यधिक संदिग्ध प्रतीत होता है. 

‘रिक्लेम द नाइट’ विरोध प्रदर्शन के दौरान आरजी कर अस्पताल पर भीड़ के हमले के पीछे के लोगों की पहचान भी रहस्य में डूबी हुई है. जहां ममता बनर्जी ने भीड़ की बर्बरता के लिए भारतीय जनता पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) को दोषी ठहराया है, वहीं मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि सीसीटीवी फुटेज में पहचाने गए कुछ हमलावरों का संबंध तृणमूल कांग्रेस के पार्षदों से है.

कोलकाता पुलिस ने गुरुवार (15 अगस्त) को सोशल मीडिया पर स्पष्ट किया कि आरजी कर अस्पताल का सेमिनार हॉल क्षतिग्रस्त नहीं हुआ है और हालिया हमले के दौरान किसी भी सबूत के साथ छेड़छाड़ नहीं की गई है.

हालांकि, अस्पताल के मेडिकल छात्रों का तर्क है कि हमलावरों ने विशेष रूप से आपातकालीन भवन को निशाना बनाया, जिसमें छाती रोग विभाग भी है. 

ड्यूटी पर मौजूद नर्सों का दावा है कि हमले के दौरान उन्हें पुलिस या अस्पताल अधिकारियों से कोई सहायता नहीं मिली. हालांकि, कोलकाता पुलिस कमिश्नर ने इन दावों को दुर्भावनापूर्ण मीडिया अभियान बताकर खारिज कर दिया. 

बहरहाल, सीबीआई द्वारा मामले को अपने हाथ में लेने के बाद मुख्यमंत्री ने त्वरित जांच और रविवार तक दोषी को मौत की सजा- यानी कि मामले को केंद्रीय एजेंसी द्वारा हाथ में लेने के ठीक पांच दिन बाद- देने की मांग कर दी.

शुक्रवार (16 अगस्त) को जब सरकार को डॉक्टरों और नागरिकों के अभूतपूर्व विरोध का सामना करना पड़ा, बनर्जी ने ‘खेला होबे दिवस’ ​​​​को चिह्नित करने के लिए एक रैली का नेतृत्व किया. सेलिब्रिटी विधायकों और सांसदों से घिरी हुई इस रैली के दौरान उन्होंने अपने भाषण में दर्शकों को याद दिलाया कि डॉक्टरों को हर घंटे मरीजों को देखना होता है.  यह स्पष्ट नहीं है कि क्या वह 36 घंटे की शिफ्ट के बाद आराम करने के महिला डॉक्टर के फैसले पर निराशा व्यक्त कर रही थीं या अस्पताल के कर्मचारियों द्वारा नियमित रूप से उनकी निगरानी करने में विफलता पर निराशा व्यक्त कर रही थीं.  

सोशल मीडिया पर टीएमसी के प्रवक्ता आरजी कर घटना की आलोचना करने के लिए बॉलीवुड हस्तियों की आलोचना कर रहे हैं. हाथरस, कठुआ या बिलकिस बानो जैसे मामलों पर उनकी चुप्पी पर सवाल उठा रहे हैं. विडंबना यह है कि इनमें से कई मशहूर हस्तियों ने कठुआ के बारे में बात की थी और उन्हें दक्षिणपंथी ट्रोलर्स की आलोचना का सामना करना पड़ा था. 

अपने भाषण में बनर्जी ने भाजपा शासित राज्यों के साथ-साथ वाम शासन के दौरान हुए जघन्य अपराधों का भी जिक्र किया. 1990 के बंटाला बलात्कार मामले से लेकर 2023 की मणिपुर घटना और 2020 के हाथरस सामूहिक बलात्कार तक, उन्होंने कई मामलों का हवाला दिया, लेकिन कामदुनी मामले का उल्लेख करना भूल गईं, जहां साजिश साबित करने में राज्य की विफलता के कारण कई प्रमुख आरोपियों को बरी कर दिया गया था, और हंसखाली मामले का भी जिक्र करना भूल गईं, जहां उन्होंने सवाल किया था कि जिस नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर दी गई थी, क्या वह किसी प्रेम प्रसंग में शामिल थी

दिलचस्प बात यह है कि कामदुनी मामले में बचाव पक्ष के वकील ने आरजी कर मामले में सीबीआई जांच के लिए बहस करते हुए वर्तमान कोलकाता पुलिस आयुक्त विनीत गोयल, तत्कालीन आईजी (सीआईडी) पर जांच में गड़बड़ी करने का आरोप लगाया. 

इस बीच, राज्य सरकार ने शुक्रवार को 42 डॉक्टरों के स्थानांतरण के आदेश जारी किए. सरकार का कहना है कि ये नियमित स्थानांतरण हैं, वहीं जूनियर डॉक्टरों का आरोप है कि विरोध प्रदर्शन का समर्थन करने वाले सीनियर डॉक्टरों को प्रमुख संस्थानों से उत्तर बंगाल और झाड़ग्राम जैसे दूरदराज के क्षेत्रों में स्थानांतरित किया गया है, जिसे दंडात्मक पोस्टिंग माना जाता है. 

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