नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल के कोलकाता में एक महिला ट्रेनी डॉक्टर की बलात्कार के बाद हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए इस मामले की सुनवाई मंगलवार (20 अगस्त) को सुचीबद्ध की है. फिलहाल, इस घटना की जांच सीबीआई द्वारा की जा रही है.
रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल सरकार ने इस बीच डॉक्टरों के प्रदर्शन और दबाव के चलते शनिवार (17 अगस्त) शाम 42 वरिष्ठ डॉक्टरों के स्थानांतरण (ट्रांसफर) आदेश को रद्द कर दिया है.
इससे पहले शुक्रवार (16 अगस्त) की रात को राज्य चिकित्सा शिक्षा सेवा ने कम से कम 42 डॉक्टरों का तबादला नोटिस जारी किया था, जिनमें से ज्यादातर एसोसिएट प्रोफेसर और उससे ऊपर के पदाधिकारी डॉक्टर हैं. इनमें से 12 का तबादला कोलकाता से बाहर किया गया था.
डॉक्टरों के संगठन यूनाटेड डॉक्टर्स फ्रंट एसोसिएशन ने इस तबादले को अनुचित बताते हुए राज्य की ममता बनर्जी सरकार पर निशाना साधा था.
संगठन का कहना था कि ये तबादले उन फैकल्टी सदस्यों के हैं, जो आरजी कर की महिला ट्रेनी डॉक्टर के लिए इंसाफ की लड़ाई में खड़े हैं.
We strongly condemns @MamataOfficial @BengalGovernor unjust transfer of faculty members who supported our protest.These punitive measures will not silence our demands for justice and security.We stand united and resolute in our fight.@ANI @PTI_News @HMOIndia @PMOIndia @AmitShah pic.twitter.com/Ueklz8P7pb
— UNITED DOCTORS FRONT ASSOCIATION (@udfaindia) August 16, 2024
संगठन ने डॉक्टरों के साथ ही 190 महिला स्वास्थ्य सहायकों के तबादले के लिए भी राज्य सरकार के फैसले की भी निंदा की और उन्हें बहाल (reinstate) करने की मांग की.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, अब इस मामले पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ सुनवाई करेगी, जिसमें चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल हैं.
मालूम हो कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से पहले कलकत्ता हाईकोर्ट ने सुनवाई की थी और बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस सरकार को फटकार लगाते हुए इसे सरकारी मशीनरी की नाकामी करार दिया था. उच्च न्यायालय ने ये भी कहा था वह जांच की निगरानी करेगा और सीबीआई को तीन सप्ताह में अदालत को एक रिपोर्ट सौंपनी होगी.
कलकत्ता हाईकोर्ट की 13 अगस्त को की गई सुनवाई में चीफ जस्टिस टीएस शिवगणम और जस्टिस हिरण्मय भट्टाचार्य ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा था कि इस मामले की जांच में कोई महत्तवपूर्ण प्रगति नहीं हुई है, इसलिए जांच को सीबीआई से कराने का निर्देश दिया जाता है.
इस मामले में हाईकोर्ट में कई जनहित याचिकाएं दायर की गई थीं, जिनमें राज्य पुलिस जांच को सीबीआई या किसी अन्य स्वतंत्र एजेंसी को सौंपने की मांग की गई थी. याचिकाकर्ताओं में पीड़िता के माता-पिता और भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी भी शामिल थे.
अदालत के आदेश में कहा गया कि याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि पीड़िता के शरीर पर चोट के निशान थे. माता-पिता ने हाईकोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी सबूत के साथ छेड़छाड़ या उसे नष्ट न किया जाए. माता-पिता ने खुद, गवाहों और मामले से संबंधित जानकारी रखने वाले किसी भी अन्य व्यक्ति के लिए सुरक्षा की भी मांग की.
अदालत की इस सुनवाई के ठीक एक दिन बाद 14 और 15 अगस्त की दरम्यानी रात पश्चिम बंगाल सहित देशभर में को महिला संगठनों और सिविल सोसाइटी के आह्वान पर ‘रीक्लेम द नाइट’ प्रदर्शन का आयोजन किया गया. ऐसे में आरजी कर अस्पताल में चल रहे डॉक्टरों के विरोध प्रदर्शन को अज्ञात लोगों की भीड़ द्वारा निशाना बनाया गया. इस भीड़ ने अस्पताल में भी तोड़फोड़ की.
इस हिंसा को लेकर पहले से आलोचना का सामना कर रही पुलिस पर और दबाव बन गया. इसके बाद पुलिस ने कथित तौर पर इस भीड़ में शामिल लोगों की 76 तस्वीरें जारी की और 30 लोगों को गिरफ्तार भी किया है.
इंडियन एक्सप्रेस ने रविवार (18 अगस्त) की अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि इस हिंसा के पीछे भीड़ में शामिल लोगों में कुछ की पहचान हुई है, जिसमें दो टीएमसी कार्यकर्ता, कुछ युवा, जिनकी आयु करीब 20 वर्ष के आर-पास होगी और कुछ महिलाएं शामिल थीं.
हालांकि, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसके पिछे विपक्ष का हाथ बताया है, उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (सीपीएम) पर अस्पताल में तोड़फोड़ करने और सोशल मीडिया पर फर्जी खबरें फैलाने का आरोप लगाया है.
गौरतलब है कि कलकत्ता हाईकोर्ट ने 16 अगस्त को भीड़ की हिंसा और अस्पताल के कुछ हिस्सों में तोड़फोड़ पर पुलिस की आलोचना करते हुए इसे राज्य मशीनरी की पूर्ण विफलता बताया था.
राज्य के वकील ने अदालत को बताया था कि करीब सात हजार की संख्या में भीड़ अस्पताल में इकट्ठा हुई थी. इस पर पीठ ने कहा कि यह विश्वास करना कठिन है कि पुलिस खुफिया विभाग के पास 7,000 लोगों के जमा होने की जानकारी नहीं थी.
इसके बाद उच्च न्यायालय ने पुलिस और अस्पताल प्राधिकरण को अस्पताल में ‘मामले की सही स्थिति’ बताने के लिए अलग-अलग हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया. इससे सभी जुड़े मामलों की सुनवाई अब 21 अगस्त को होगी.
ज्ञात हो कि इस मामले को लेकर देश के कई शहरों में डॉक्टरों का विरोध प्रदर्शन जारी है.
जूनियर डॉक्टर के बलात्कार और हत्या मामले में पुलिस ने मुख्य आरोपी के रूप में एक नागरिक स्वयंसेवक संजय रॉय को गिरफ्तार किया है. वहीं मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष से भी सीबीआई ने तीसरे दौर की पूछताछ की है.