अत्यधिक मुनाफ़ाखोरी के आरोपों के बावजूद केंद्र ने सौर मॉड्यूल घरेलू उत्पादकों से खरीद अनिवार्य की

हाल के वर्षों में घरेलू और आयातित सौर मॉड्यूल के बीच मूल्य अंतर काफी बढ़ गया है. वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही में 6% की तुलना में, घरेलू मॉड्यूल वित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही में 50% अधिक महंगे हो गए,जबकि वित्तीय वर्ष 2025 की पहली तिमाही में लगभग दोगुने महंगे हो गए.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: भारत के सौर पीवी मॉड्यूल में बाजार के एकाधिकार और घरेलू बिजली दरों में वृद्धि की इसकी क्षमता के बारे में सरकार के उच्चतम स्तर पर चिंता व्यक्त किए जाने के बावजूद, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने 1 अप्रैल से सौर परियोजनाओं के लिए सरकार द्वारा अनुमोदित घरेलू निर्माताओं से ही मॉड्यूल खरीदने की अनिवार्यता पुनः लागू कर दी है.

आरटीआई अधिनियम के तहत इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, अनुमोदित मॉडल और निर्माताओं की सूची (एएलएमएम) के आदेश को फिर से लागू करने से पहले, पूर्व केंद्रीय ऊर्जा और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम एसजेवीएन लिमिटेड ने घरेलू निर्माताओं द्वारा ‘अत्यधिक मुनाफाखोरी’ में शामिल होने के बारे में स्पष्ट रूप से चिंता व्यक्त की थी और अधिक महंगे घरेलू मॉड्यूल से भविष्य की परियोजनाओं में उच्च बिजली दर की चेतावनी दी थी.

उल्लेखनीय रूप से, केवल पांच निर्माताओं से जुड़ी कंपनियां एएलएमएम- जिसे मंत्रालय द्वारा मार्च 2021 में पहली बार जारी किया गया था- में सूचीबद्ध वर्तमान क्षमता के लगभग आधे हिस्से को नियंत्रित करती हैं. ये कंपनियां हैं – वारी एनर्जीज, अडानी सोलर, नैस्डैक-सूचीबद्ध रिन्यू पावर, अमेरिकी कंपनी फर्स्ट सोलर और टाटा पावर.

हालिया अनुमानों के अनुसार, घरेलू निर्माता अब अपने विदेशी प्रतिस्पर्धियों की तुलना में सौर मॉड्यूल के लिए 90% अधिक शुल्क ले रहे हैं.

हाल के वर्षों में घरेलू और आयातित मॉड्यूल, मुख्य रूप से चीन से आयातित, के बीच मूल्य अंतर काफी बढ़ गया है.

क्रिसिल डेटा के विश्लेषण के अनुसार, वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही में 6% की तुलना में, घरेलू मॉड्यूल वित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही में 50% अधिक महंगे हो गए, जबकि वित्तीय वर्ष 2025 की पहली तिमाही में लगभग दोगुने महंगे हो गए.

एएलएमएम आदेश सभी सरकारी सहायता प्राप्त या संबद्ध सौर परियोजनाओं को केवल सूचीबद्ध मॉड्यूल का उपयोग करने का आदेश देता है, जिससे अधिकांश परियोजनाओं में आयातित मॉड्यूल के उपयोग पर प्रभावी रूप से रोक लग जाती है. इस आदेश का उद्देश्य घरेलू स्वच्छ प्रौद्योगिकी विनिर्माण को बढ़ावा देना और आयात निर्भरता को कम करके ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाना है.

इंडियन एक्सप्रेस ने सरकारी दस्तावेजों के हवाले से बताया है कि मार्च 2023 में मंत्रालय ने एएलएमएम आदेश को एक साल के लिए स्थगित कर दिया था. यह फैसला तत्कालीन केंद्रीय मंत्री आरके सिंह द्वारा यह कहने के बाद लिया गया था कि अपर्याप्त घरेलू विनिर्माण क्षमता के कारण इसे ‘समय से पहले लागू’ कर दिया गया था, जिसके कारण सौर क्षमता में वृद्धि धीमी हो रही थी.

सिंह ने यह भी कहा था कि यह आदेश ‘कुछ निर्माताओं को भारत के लोगों से अत्यधिक कीमत वसूलकर उनका शोषण करने में सक्षम बनाने के लिए नहीं लाया गया है’, जो ‘लोगों पर बोझ बन सकता है, क्योंकि लोगों को बिजली के लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी.’

वित्त वर्ष 2024 के अंतिम महीनों में, जब मंत्रालय वित्त वर्ष 2025 के लिए एएलएमएम की प्रयोज्यता (Applicability) की समीक्षा कर रहा था, घरेलू मॉड्यूल की उच्च लागत के बारे में चिंताएं बनी रहीं. इस साल फरवरी में भी सिंह ने यह मसला उठाया.

हालांकि, सिंह अकेले नहीं हैं जिन्होंने ये चिंताएं जताई हैं.

सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एसजेवीएन लिमिटेड, जिसमें केंद्र सरकार की 55% हिस्सेदारी है, ने भी मंत्रालय से स्थगन आदेश को नौ महीने के लिए बढ़ाने की औपचारिक अपील की है.

यह आदेश पुनः लागू किया गया क्योंकि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों का मानना ​​था कि आसियान देशों से सौर मॉड्यूलों का शुल्क मुक्त आयात घरेलू उत्पादकों के लिए हानिकारक है.

जून 2024 में, किसी भी स्थानीय कर या शुल्क के लागू होने से पहले लागत, बीमा और माल ढुलाई (सीआईएफ) के आधार पर आयातित मॉड्यूल की औसत लागत 9.1 सेंट प्रति वाट थी. इसके विपरीत, घरेलू मॉड्यूल की कीमत 18 सेंट प्रति वाट थी, जिससे वे आयातित मॉड्यूल की तुलना में कम से कम दोगुने महंगे थे.

मॉड्यूल लागत सौर परियोजना संबंधी इकोनॉमी का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो अक्सर किसी परियोजना के चालू होने की कुल लागत का 50% से 60% तक होता है.

यह तीन साल पहले की तुलना में बहुत ज़्यादा अंतर है. वित्त वर्ष 2022 में आयातित मॉड्यूल की औसत लागत 28.7 सेंट प्रति वाट थी, जबकि घरेलू मॉड्यूल की औसत लागत 26.9 सेंट प्रति वाट थी – लगभग बराबर.

जहां भारत सहित दुनिया भर में मॉड्यूल की कीमतों में गिरावट आई है, चीन में यह गिरावट कहीं ज़्यादा तेज़ी से हुई है, जो कि बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं और मैन्युफैक्चरिंग क्षमताओं के तेज़ विस्तार के कारण है. एक बड़े घरेलू मॉड्यूल निर्माता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि भारत में निर्मित मॉड्यूल को आयातित मॉड्यूल के मुक़ाबले ज़्यादा प्रतिस्पर्धी बनने में कम से कम 2-3 साल लग सकते हैं.