कोलकाता रेप-हत्या: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के रवैये पर सवाल उठाए, सीआईएसएफ को सुरक्षा का ज़िम्मा

सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर के रेप और हत्या के मामले का स्वतः संज्ञान लिया है. अदालत ने कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कहा कि कि अगर ये जगहें सुरक्षित नहीं होंगी, तो महिलाएं काम पर नहीं जा सकेंगी और समानता के अधिकार से वंचित रहेंगी.

(फोटो साभार: Wikimedia Commons)

नई दिल्ली: कोलकाता महिला ट्रेनी डॉक्टर के रेप और हत्या मामले में मंगलवार (20 अगस्त) को देश की सर्वोच्च अदालत ने सुनवाई की.

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं, जिसमें पश्चिम बंगाल शासन-प्रशासन के रवैये और महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर होने वाली हिंसा को लेकर भी चिंता जाहिर की गई.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने डॉक्टर्स की सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए नेशनल टास्क फोर्स का गठन करने की बात कही है. साथ ही सीबीआई को निर्देश दिया है कि वह गुरुवार (22 अगस्त) तक जांच को लेकर स्टेटस रिपोर्ट फाइल करे और छानबीन का स्तर बताए.

मालूम हो कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है और इसकी सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच कर रही है. अदालत ने सख्त शब्दों में कहा कि मौजूदा कानून डॉक्टरों और चिकित्साकर्मियों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं.

चीफ जस्टिस ने आगे ये भी कहा कि चिकित्सक प्रतिकूल परिस्थितियों में काम कर रहे हैं और उनके पास आराम करने तक के लिए भी जगह नहीं है. उनके बुनियादी स्वच्छता का ख्याल नहीं रखा जाता है. चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा इकाइयों में सुरक्षा की कमी है. डॉक्टरों को अनियंत्रित रोगियों को संभालने के लिए छोड़ दिया जाता है. अस्पताल में चिकित्सा पेशेवरों के लिए केवल एक सामान्य शौचालय है. पेशेवरों को शौचालय तक पहुंच के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, कोर्ट ने कोलकाता ट्रेनी डॉक्टर के मामले में राज्य सरकार और कॉलेज प्रशासन को फटकार लगाते हुए, ‘ऐसा लगता है कि अपराध का पता शुरुआती घंटों में ही चल गया था. लेकिन मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ने इसे आत्महत्या बताने की कोशिश की.’

कोर्ट ने आरजी कर मेजिकर कॉलेज और अस्पताल की सुरक्षा का जिम्मा सीआईएसएफ को सौंप दिया है, जिससे डॉक्टर अपना काम फिर से शुरू कर सकें.

अदालत ने डॉक्टरों के काम के घंटों को लेकर भी चिंता जाहिर की. अदालत ने कहा कि अधिकतर युवा डॉक्टर 36 घंटे तक काम करते हैं. इसलिए हमें इनके कामकाज के लिए सुरक्षित माहौल सुनिश्चित करने के लिए एक नेशनल प्रोटोकॉल विकसित करना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कहा कि कि अगर काम करने की जगह सुरक्षित नहीं होगी, तो महिलाएं काम पर नहीं जा पाएंगी और इस तरह वो समानता के अधिकार से वंचित हो जाएंगी.

अदालत ने आगे कहा, ‘आज महिलाएं तेजी से वर्कफोर्स में शामिल हो रही हैं. इनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने और बदलाव लाने के लिए एक और बलात्कार का इंतजार नहीं कर सकते.’

कोर्ट ने पीड़िता का नाम मीडिया में हर जगह छपने को लेकर भी चिंता ज़ाहिर की. इसके अलावा अदालत ने ये भी सवाल उठाया कि जब आरजी कर अस्पताल के प्रिंसिपल का आचरण जांच के दायरे में था, तो उन्हें तुरंत दूसरे कॉलेज में कैसे नियुक्त कर दिया गया.

इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता पुलिस की भूमिका को लेकर भी सवाल किया. अदालत ने कहा कि कैसे हज़ारों की भीड़ आरजी कर मेडिकल कॉलेज में घुस गई.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एफआईआर दर्ज करने में देरी को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार को फटकार लगाई है. कोर्ट ने पूछा कि अस्पताल प्रशासन क्या कर रहा था.

लाइव लॉ के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार से यह आग्रह किया कि वह शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले और मीडिया-सोशल मीडिया पर बोलने वाले लोगों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई न करे.

चीफ जस्टिस ने कहा, ‘शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा शक्ति का प्रयोग न किया जाे, उनसे संवेदनशीलता से निपटें, क्योंकि ये देश को झकझोरने वाला समय है.’

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने इससे पहले 16 अगस्त की रात को राज्य चिकित्सा शिक्षा सेवा ने कम से कम 42 डॉक्टरों का तबादला नोटिस जारी किया था, जिनमें से ज्यादातर एसोसिएट प्रोफेसर और उससे ऊपर के पदाधिकारी डॉक्टर हैं. इनमें से 12 का तबादला कोलकाता से बाहर किया गया था.

हालांकि, बाद में डॉक्टरों के प्रदर्शन और दबाव के चलते 17 अगस्त की शाम इन वरिष्ठ डॉक्टरों के ट्रांसफर आदेश को रद्द कर दिया था.