यूपी: दो लोगों को धर्मांतरण केस में फंसाने वाले पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई के लिए कोर्ट का आदेश

उत्तर प्रदेश के बरेली की एक अदालत ने किसी दबाव में एक निराधार, मनगढ़ंत और काल्पनिक कहानी के आधार पर एफआईआर दर्ज करने के लिए तत्कालीन स्टेशन हाउस ऑफिसर, मामले के दो जांच अधिकारियों और सर्कल ऑफिसर के ख़िलाफ़ उचित कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश दिया है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: अनस्प्लैश)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के बरेली की एक अदालत ने राज्य पुलिस को झटका देते हुए दो हिंदुओं को गैरकानूनी धर्मांतरण के आरोपों से बरी करते हुए जिले के कुछ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का आदेश दिया है, जिन्होंने एक हिंदूवादी स्वयंभू गोरक्षा कार्यकर्ता की निराधार शिकायत के आधार पर दोनों को झूठा फंसाया था.

द वायर के पास कोर्ट का फैसला और मामले की एफआईआर मौजूद है. आरोपियों में से एक अभिषेक गुप्ता 2007 से बरेली के रोहिलखंड मेडिकल कॉलेज में सीटी स्कैन तकनीशियन के तौर पर काम करता था. 2022 में गिरफ्तारी के बाद उसे अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा था.

बरेली की अदालत ने जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को दोनों लोगों के खिलाफ ‘किसी दबाव में’ एक ‘निराधार, मनगढ़ंत और काल्पनिक’ कहानी के आधार पर एफआईआर दर्ज करने के लिए तत्कालीन स्टेशन हाउस ऑफिसर, मामले के दो जांच अधिकारियों और सर्कल ऑफिसर (पुलिस उपाधीक्षक) के खिलाफ ‘उचित कानूनी कार्रवाई’ करने का निर्देश दिया है.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने पुलिस को मनगढ़ंत कहानी को ‘कानूनी रूप’ देने के ‘असफल प्रयास’ का दोषी ठहराया.

जज त्रिपाठी ने कहा कि अवैध धर्मांतरण मामले में ‘वास्तविक अपराधी’ शिकायतकर्ता, उससे जुड़े गवाह, एफआईआर को अधिकृत करने वाले एसएचओ, जांचकर्ता और मामले में आरोप पत्र को मंजूरी देने वाले सर्कल अधिकारी हैं.

गौरतलब है कि अदालत ने दोनों बरी किए गए लोगों को ‘दोषी’ पुलिसकर्मियों, शिकायतकर्ता और गवाहों के खिलाफ सिविल मुकदमा दायर करने और ‘दुर्भावनापूर्ण अभियोजन’ के लिए उचित मुआवजे की मांग करने का विकल्प दिया.

‘पुलिस ने किसी दबाव में आकर एफआईआर दर्ज की’

अदालत ने एफआईआर को ‘अमान्य और अप्रभावी’ घोषित करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता हिमांशु पटेल, जो सोशल मीडिया पर खुद को हिंदू जागरण मंच युवा वाहिनी का कार्यकर्ता बताता है, के पास प्रथम दृष्टया एफआईआर दर्ज करवाने का कोई अधिकार नहीं था, क्योंकि वह न तो गैरकानूनी धर्मांतरण का शिकार था और न ही किसी पीड़ित का रिश्तेदार.

जस्टिस त्रिपाठी ने 27 पन्नों के आदेश में कहा कि पुलिस ने पटेल की शिकायत पर ‘किसी दबाव में’ एफआईआर दर्ज की थी, जबकि पटेल ने ‘प्रचार की लालसा’ में इसे दर्ज कराया था.

अदालत ने आरोपी अभिषेक गुप्ता और कुंदन लाल कोरी को उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन रोकथाम अधिनियम 2021 की धारा 3 और 5 (1) के तहत आरोपों से बरी कर दिया. यह फैसला 30 जुलाई को सुनाया गया था, लेकिन द वायर के माध्यम से अब सामने आया है.

एफआईआर 30 मई 2022 को बरेली के रोहिलखंड मेडिकल कॉलेज में कार्यरत गुप्ता और आठ अज्ञात लोगों के खिलाफ बिथरी चैनपुर थाने में दर्ज की गई थी.

अपनी एफआईआर में, जिसकी एक कॉपी द वायर के पास है, पटेल ने आरोप लगाया था कि मूल रूप से गोरखपुर निवासी गुप्ता आठ अन्य लोगों के साथ बिचपुरी गांव में एक धर्मांतरण प्रोजेक्ट चला रहे थे. पटेल ने आरोप लगाया कि 29 मई 2022 को सुबह 7 बजे गुप्ता ने ममता नामक व्यक्ति के घर पर प्रार्थना सभा का आयोजन किया था और वहां एकत्रित हिंदुओं को विभिन्न प्रलोभनों के माध्यम से धर्मांतरित कर रहे थे. पटेल ने दावा किया कि मौके पर ऐसे 40 लोग पाए गए, जिनका कथित तौर पर अवैध रूप से धर्मांतरण किया जा रहा था.

उन्होंने बताया कि उनके मामला उठाने के बाद स्थानीय हिंदुत्व समूहों के 10-15 सदस्यों का एक दल पुलिस के साथ गांव में पहुंचा. पटेल ने आरोप लगाया कि गुप्ता और अन्य लोगों से बाइबिल की प्रतियां बरामद की गईं. बाद में कुंदन लाल को इस मामले में आरोपी बनाया गया, जबकि शिकायतकर्ता ने उनकी पहचान नहीं की थी.

2021 का अधिनियम स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है कि गैरकानूनी धर्मांतरण के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए कौन पात्र है. कानून की धारा 4 में कहा गया है कि ‘कोई भी पीड़ित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई, बहन या खून के रिश्ते वाला, विवाह या गोद लेने से उससे संबंधित कोई अन्य व्यक्ति’ इसके तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए सक्षम माना जाएगा.

अदालत ने गिरफ़्तारी और आरोपियों से जब्ती को ‘संदिग्ध’ माना

साक्ष्यों की जांच के दौरान, अदालत ने कई मोर्चों पर पुलिस की खिंचाई की, जिसमें कथित तौर पर आरोपी गुप्ता को चार महीने से अधिक समय तक अवैध हिरासत में रखना भी शामिल है. पुलिस किसी ऐसे व्यक्ति को भी पेश नहीं कर सकी, जिसका कथित तौर पर आरोपियों द्वारा अवैध रूप से धर्मांतरण किया गया हो.

हालांकि कथित अपराध 29 मई को किया गया था, लेकिन एफआईआर एक दिन बाद ही दर्ज की गई. पुलिस ने इस देरी को ठीक से स्पष्ट नहीं किया. अदालत ने इसे कानूनी रूप से संदिग्ध माना. अदालत ने यह भी माना कि गुप्ता की गिरफ्तारी और उनके पास से बाइबिल की कथित बरामदगी ‘पूरी तरह से संदिग्ध’ थी.

गुप्ता को पुलिस ने 29 मई 2022 को गिरफ्तार किया था, यानी एफआईआर दर्ज होने से पहले ही. मामले के विभिन्न गवाहों ने अदालत में इसकी गवाही भी दी. लेकिन पुलिस की केस डायरी दिखाती है कि उन्हें 7 अक्टूबर 2022 को गिरफ्तार किया गया था, जो कि गिरफ्तारी में चार महीने से अधिक का अंतराल दर्शाता है.

गुप्ता के वकील ने आरोप लगाया कि उन्हें पुलिस ने चार महीने से ज़्यादा समय तक अवैध हिरासत में रखा था. जस्टिस त्रिपाठी ने इसे अजीब पाया और कहा कि 7 अक्टूबर को गुप्ता की कथित गिरफ़्तारी और उनसे बरामदगी ‘पूरी तरह से संदिग्ध’ थी.

अदालत ने पुलिस की खिंचाई की और कहा कि एफआईआर दर्ज करने से पहले बिथरी चैनपुर के एसएचओ को यह जांच करनी चाहिए थी कि पटेल को कानून के तहत शिकायत दर्ज करने का अधिकार है भी या नहीं. अदालत ने कहा कि मामले के सभी गवाह कथित अपराध स्थल से कम से कम 10 किलोमीटर दूर रहते थे और पुलिस ने किसी स्थानीय या पड़ोसी का जिक्र करना भी जरूरी नहीं समझा.

पुलिस ने मामले में आठ गवाह पेश किए थे – शिकायतकर्ता और उनके तीन सहयोगी, मामले के जांच अधिकारी दो सब-इंस्पेक्टर, रोहिलखंड मेडिकल कॉलेज के चिकित्सा अधिकारी और एफआईआर का मसौदा तैयार करने वाले एक हेड कांस्टेबल.

जस्टिस त्रिपाठी ने कहा कि यह मामला ‘सभ्य समाज के लिए चिंताजनक’ है. साथ ही, कहा कि गुप्ता ने न केवल अपनी नौकरी खो दी, बल्कि उन्हें आर्थिक और सामाजिक नुकसान भी हुआ.

‘नौकरी चली गई, बेटी सदमे के कारण बोलने की क्षमता खो बैठी’

अपने गृहनगर गोरखपुर से द वायर से बात करते हुए गुप्ता ने कहा कि इस पूरी घटना ने उन्हें और उनके बच्चों, जिनकी उम्र सात और नौ साल है, को बहुत आघात पहुंचाया. बच्चों को अपना स्कूल बदलना पड़ा क्योंकि परिवार को बरेली में आवंटित दो कमरों वाले सरकारी अपार्टमेंट से बेदखल कर दिया गया था.

गुप्ता ने कहा कि मामला दर्ज होने के बाद उन्हें 24 घंटे के भीतर अस्पताल परिसर में उनके आवास से निकाल दिया गया, जिसके बाद वे गोरखपुर में अपने गांव लौट आए.

गुप्ता ने कहा कि हालांकि उन्होंने कभी कानूनी रूप से ईसाई धर्म नहीं अपनाया, लेकिन 2004 से वे नियमित रूप से ईसा मसीह की प्रार्थना सभाओं में भाग लेते रहे हैं, क्योंकि इससे उन्हें ‘मानसिक शांति’ मिलती है.

गुप्ता अभी भी बेरोजगार हैं और आपराधिक मामले से जुड़ी यादों को भुलाने का प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘एक तरफ आर्थिक नुकसान सहना पड़ा और नौकरी भी छूट गई, दूसरी तरफ इस घटना ने मेरी बेटी (जो वर्तमान में 9 साल की है) को इतना गहरा सदमा पहुंचाया कि उसने अपनी बोलने की क्षमता खो दी.’

गुप्ता ने उनकी गिरफ्तारी को सनसनीखेज बनाने और उनके बारे में अपुष्ट खबरें चलाने के लिए स्थानीय मीडिया की भी आलोचना की, जिसने कथित तौर पर 5 लाख रुपये तक के मौद्रिक प्रलोभन के माध्यम से लोगों का धर्म परिवर्तन कराने की खबरें चलाई थीं.

द वायर ने शिकायतकर्ता पटेल से बात करने की कोशिश की, लेकिन उनका फोन बंद था.

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