नई दिल्ली: विपक्ष के विरोध के बाद केंद्र सरकार ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) से अपने उस विज्ञापन को वापस लेने के लिए कहा है, जो 24 मंत्रालयों की 45 पदों पर ‘लैटरल एंट्री’ के लिए निकाली गई थी.
मंगलवार (20 अगस्त) को केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी की चेयरमैन प्रीति सूदन को पत्र लिखकर विज्ञापन को रद्द करने के लिए कहा.
सिंह ने लिखा है, ‘यह महत्वपूर्ण है कि सामाजिक न्याय के प्रति संवैधानिक जनादेश को बरकरार रखा जाए ताकि हाशिए पर पड़े समुदायों के योग्य उम्मीदवारों को सरकारी सेवाओं में उनका उचित प्रतिनिधित्व मिल सके.’
सिंह ने पत्र में आगे लिखा है, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण सामाजिक न्याय ढांचे की आधारशिला है, जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना और समावेशिता को बढ़ावा देना है. …मैं यूपीएससी से 17 अगस्त, 2024 को जारी भर्ती विज्ञापन को रद्द करने का आग्रह करता हूं. यह कदम सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति होगी.’
अब सरकार लैटरल एंट्री में भी आरक्षण लाने जा रही है. केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक्स पर लिखा है, ‘माननीय प्रधानमंत्री जी का हमेशा से सामाजिक न्याय में दृढ़ विश्वास रहा है. उनकी योजनाओं ने हमारे समाज के सबसे कमज़ोर वर्गों के कल्याण को बढ़ावा दिया है. आरक्षण के सिद्धांतों के साथ लैटरल एंट्री को जोड़ने का फ़ैसला प्रधानमंत्री जी की सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है.’
17 अगस्त को यूपीएससी ने एक विज्ञापन जारी कर 24 केंद्रीय मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव के पदों पर ‘लैटरल भर्ती के लिए प्रतिभाशाली भारतीय नागरिकों’ से आवेदन मांगे थे.
इस विज्ञापन से राजनीतिक हंगामा खड़ा हो गया था. विपक्ष के साथ-साथ भाजपा के प्रमुख सहयोगी दलों, जैसे- जदयू और लोजपा ने भी इस कदम का विरोध किया था.
विज्ञापन रद्द करने के सरकार के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए राहुल गांधी ने एक्स पर लिखा, ‘हम किसी भी कीमत पर भाजपा की ‘लैटरल एंट्री’ जैसी साजिशों को नाकाम करेंगे… मैं फिर कह रहा हूँ – 50% आरक्षण की सीमा को तोड़कर हम जाति के आधार पर सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेंगे. जय हिंद.’
हो रहा था लगातार विरोध
सोमवार (19 अगस्त) को लैटरल एंट्री के मुद्दे पर अपनी पार्टी के रुख स्पष्ट करते हुए एनडीए गठबंधन में शामिल लोजपा (रामविलास) के अध्यक्ष और केंद्र सरकार में मंत्री चिराग पासवान ने कहा था कि लोजपा (रामविलास) ऐसी नियुक्तियों के ‘बिल्कुल पक्ष में नहीं है.’
उन्होंने कहा था, ‘जहां भी सरकारी नियुक्तियां होती हैं, वहां आरक्षण के प्रावधानों का पालन किया जाना चाहिए.’
उन्होंने आगे कहा कि जिस तरह से यह मामला सामने आया है, वह उनके लिए ‘चिंता का विषय’ है, क्योंकि उनकी पार्टी सरकार का हिस्सा है.
इससे पहले सोमवार को ही कांग्रेस ने लैटरल एंट्री का विरोध किया था. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इसे ‘दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों पर हमला’ बताया था.
उन्होंने कहा था, ‘भाजपा के रामराज्य का विकृत संस्करण संविधान को नष्ट करने और बहुजनों से आरक्षण छीनने का प्रयास करता है.’
इस कदम का विरोध करते हुए समाजवादी पार्टी के सांसद अखिलेश यादव ने देशव्यापी आंदोलन का आह्वान किया था.
उन्होंने एक एक्स पोस्ट में लिखा था, ‘भाजपा अपनी विचारधारा के संगी-साथियों को पिछले दरवाज़े से यूपीएससी के उच्च सरकारी पदों पर बैठाने की जो साज़िश कर रही है, उसके ख़िलाफ़ एक देशव्यापी आंदोलन खड़ा करने का समय आ गया है.’
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने भी केंद्र की आलोचना करते हुए इस प्रक्रिया को देश की आरक्षण प्रणाली और संविधान के साथ एक क्रूर मजाक करार दिया था.
उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा था, ‘केंद्र की मोदी सरकार बाबा साहेब के लिखे संविधान और आरक्षण के साथ कैसा घिनौना मजाक एवं खिलवाड़ कर रही है, यह विज्ञापन उसकी एक छोटी सी बानगी है. यूपीएससी ने लैटरल एंट्री के ज़रिये सीधे 45 संयुक्त सचिव, उपसचिव और निदेशक स्तर की नौकरियां निकाली हैं लेकिन इनमें आरक्षण का प्रावधान नहीं है. अगर यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से 45 आईएएस की नियुक्ति करती तो उसे एससी/एसटी और ओबीसी को आरक्षण देना पड़ता यानी 45 में से 22-23 अभ्यर्थी दलित, पिछड़ा और आदिवासी वर्गों से चयनित होते.’
24 केंद्रीय मंत्रालयों में 45 पदों पर लैटरल एंट्री का विज्ञापन
संघ लोक सेवा आयोग ने 17 अगस्त को 24 केंद्रीय मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, उप सचिव और निदेशक के 45 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था.
विज्ञापन के मुताबिक, अनुबंध की इस नौकरी के लिए लैटरल एंट्री के माध्यम से भर्ती होनी थी. कुल 45 पदों में से 10 संयुक्त सचिव और शेष 35 उप सचिव एवं निदेशक के लिए थे. विज्ञापन के लिए अनुसार, इन पदों को 17 सितंबर तक भरा जाना था.
विपक्षी दलों का कहना था कि लैटरल एंट्री के माध्यम से भर्ती कर केंद्र सरकार आरक्षण को दरकिनार करने की कोशिश कर रही है.