नई दिल्ली: बीते 9 अगस्त को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में हत्या से पहले यौन उत्पीड़न का शिकार हुई डॉक्टर की पहचान उजागर करने और शव के कथित वीडियो क्लिप प्रसारित करने को सख्त तौर पर आलोचना करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सोशल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से ऐसे पोस्ट को तत्काल हटाने का आदेश दिया.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने वकील किन्नोरी घोष और अन्य द्वारा दायर जनहित याचिका पर यह आदेश पारित किया, जिन्होंने तर्क दिया कि यौन उत्पीड़न पीड़िता के नाम का खुलासा और शव के वीडियो क्लिप प्रसारित करना निपुण सक्सेना मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले और भारतीय न्याय संहिता की धारा 72 का उल्लंघन है.
सीजेआई की अध्यक्षता वाली बेंच ने इन पोस्ट को हटाने के लिए एकपक्षीय निर्देश पारित किया क्योंकि उसने पाया कि सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर पोस्ट करने वाले व्यक्तियों की ओर से इस तरह की चूक न केवल कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है बल्कि पीड़िता की गरिमा और निजता का अपमान भी है.
सुबह के सत्र में पहले की सुनवाई के दौरान उसी बेंच ने कहा, ‘हम इस बात से बहुत चिंतित हैं कि मृतका का नाम और पहचान पूरे मीडिया में उजागर हुए. तस्वीरें पूरे मीडिया में हैं. पोस्टमॉर्टम से पहले या बाद में उसके शरीर की वीडियो क्लिप प्रकाशित की गई हैं.’
पीठ ने आगे कहा, ‘यह बेहद चिंताजनक है. हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता देने वाले पहले व्यक्ति हैं. लेकिन नए आपराधिक कोड में अच्छी तरह से स्थापित मापदंड निर्धारित किए गए हैं. ऐसे निर्णय हैं जिनमें कहा गया है कि यौन उत्पीड़न से बचे लोगों के नाम उजागर नहीं किए जा सकते.’
पश्चिम बंगाल की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि वह बेंच से पूरी तरह सहमत हैं और उन्होंने अदालत को बताया कि राज्य पुलिस ने सोशल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा इस उल्लंघन पर अब तक 50 एफआईआर दर्ज की हैं.
उन्होंने कहा, ‘ये तस्वीरें पुलिस के घटनास्थल पर पहुंचने से पहले ली गई थीं. हमने उसके बाद ऐसा कुछ नहीं होने दिया.’
सीजेआई ने कहा, ‘क्या इस तरह से हम यौन उत्पीड़न की शिकार हुई मृतक को सम्मान दे रहे हैं? जिस व्यक्ति ने अपनी जान गंवाई, वह एक युवा डॉक्टर थी. ऐसे मामलों में सभी को संयम बरतना चाहिए.’
ज्ञात हो कि 11 दिसंबर, 2018 को निपुण सक्सेना के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘कोई भी व्यक्ति प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, सोशल मीडिया आदि में पीड़िता का नाम नहीं छाप सकता या प्रकाशित नहीं कर सकता या किसी भी ऐसे तथ्य का खुलासा नहीं कर सकता जिससे पीड़िता की पहचान हो सके और जिससे उसकी पहचान आम जनता को पता चले.’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘ऐसे मामलों में जहां पीड़िता गुजर चुकी है या मानसिक रूप से अस्वस्थ है, पीड़िता का नाम या उसकी पहचान का खुलासा उसके निकटतम रिश्तेदार की अनुमति के बिना भी नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि उसकी पहचान के खुलासे को उचित ठहराने वाली परिस्थितियां मौजूद न हों, जिसका फैसला सक्षम प्राधिकारी द्वारा किया जाएगा, जो वर्तमान में सत्र न्यायाधीश है.’
इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त फैसले को शामिल करते हुए सामान्य निर्देश जारी किए थे.