भारत बंद को विपक्षी दलों का मिला समर्थन, बिहार में लाठीचार्ज और गुजरात में ट्रेन रोकी

दलित एवं आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण के उप-वर्गीकरण को लेकर दिए गए फैसले के प्रति विरोधाभासी रुख़ अपनाया है. इसने मांग की है कि सरकार एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण पर एक नया क़ानून बनाए और इस क़ानून की सुरक्षा के लिए इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करे.

विरोध प्रदर्शन की एक तस्वीर. (फोटो साभार: एक्स/@samajwadiparty)

नई दिल्ली: अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए उपलब्ध आरक्षण के उप-वर्गीकरण के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के विरोध में विभिन्न दलित और आदिवासी संगठनों द्वारा बुधवार (21 अगस्त) को बुलाए गए ‘भारत बंद’ का विपक्ष के विभिन्न राजनीतिक दलों ने समर्थन किया. इनमें कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), झारखंड मुक्ति मोर्चा और वामपंथी दलों सहित कई विपक्षी दल शामिल रहे.

इस दौरान बिहार की राजधानी पटना से लाठीचार्ज की खबरें आईं, वहीं देश के विभिन्न हिस्सों में बाजारों और शिक्षण संस्थानों में तालाबंदी रही. इस दौरान गुजरात के सुरेंद्रनगर में महिलाओं ने ट्रेन को रोक दिया.

पटना में लाठीचार्ज के दौरान पुलिस ने गलती से एसडीएम को ही लाठी मार दी. पटना के पुलिस उपाधीक्षक अशोक कुमार सिंह ने एएनआई को बताया कि पुलिस को ‘हल्का बल’ प्रयोग करना पड़ा क्योंकि यह ‘शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन नहीं था’ और ‘आम लोगों की आवाजाही प्रभावित हो रही थी.’

गुजरात में सुरेंद्रनगर डिवीजन के पुलिस उपाधीक्षक विश्वराज सिंह जडेजा ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘सुबह करीब 10.30 बजे गणपति फतसर इलाके में एक लेवल क्रॉसिंग पर महिलाओं के एक समूह ने रेलवे ट्रैक पर कब्जा कर लिया. विरोध प्रदर्शन के कारण सुरेंद्रनगर से बोटाद जा रही एक मालगाड़ी को वधवान के एक स्टेशन के पास रोकना पड़ा.’ पश्चिमी रेलवे ने भी घटना की पुष्टि की है. सूरत में भी एससी/एसटी समुदाय के लोगों ने रैली निकाली और आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति द्वारा आहूत राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन के समर्थन में जिला कलेक्टर सौरभ पारधी को ज्ञापन सौंपा.

भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल), भारतीय किसान यूनियन (दकुंडा), भारतीय किसान यूनियन (लाखोवाल), भारतीय किसान यूनियन (कादियान) और कीर्ति किसान यूनियन समेत कई किसान संगठन भी बंद में शामिल हुए.

द हिंदू के मुताबिक, गुजरात के आदिवासी और दलित समुदायों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में बंद का असर साफ तौर पर देखा गया, जहां शहरों और अर्ध-शहरी इलाकों में बाजार बंद रहे. झारखंड और राजस्थान में दिन भर चले भारत बंद का मिला-जुला असर देखने को मिला, जहां कुछ समय के लिए वाहनों की आवाजाही बाधित रही, कई सार्वजनिक बसें सड़कों और स्कूलों से नदारद रहीं, बाजार बंद रहे.

वहीं, राजस्थान के बीकानेर में दो गुटों में झड़प के बाद तनाव की स्थिति देखी गई. देश के बाकी हिस्सों में विरोध प्रदर्शन अमूमन शांतिपूर्ण रहा.

पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के प्रमुख आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते ने विपक्ष पर अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण के बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया और कहा कि केंद्र ने पहले ही इस पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है.

बता दें कि दलित एवं आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ (एनएसीडीएओआर) ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा दिए गए फैसले के प्रति विरोधाभासी रुख अपनाया है.

एनएसीडीएओआर ने कहा है कि उसका मानना ​​है कि यह निर्णय ऐतिहासिक इंदिरा साहनी मामले में नौ न्यायाधीशों की पीठ के पहले के फैसले को कमजोर करता है, जिसने भारत में आरक्षण के लिए रूपरेखा स्थापित की थी.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एनएसीडीएओआर ने मांग की है कि सरकार एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण पर एक नया कानून बनाए और इस कानून की सुरक्षा के लिए इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करे.

सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम निर्णय ने 2005 के ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के निर्णय को पलट दिया है, जिसमें न्यायालय ने माना था कि अनुच्छेद 341 के अंतर्गत सभी अनुसूचित जाति समूह एक समरूप समूह हैं. अनुच्छेद 341 राष्ट्रपति को कुछ जातियों और वर्गों को अनुसूचित जाति घोषित करने का अधिकार देता है.