क्या उत्तर प्रदेश में सरकार और भाजपा संगठन के बीच मची कलह खुलकर सामने आनी लगी है?

लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के 240 सीटों पर सिमटने और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी से भी पिछड़ने के बाद से राज्य में पार्टी के भीतर मतभेद की ख़बरें लगातार सामने आ रही हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के इशारे पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को निशाना बनाया जा रहा है.

योगी आदित्यनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने बुधवार (21 अगस्त) को पार्टी नेतृत्व को उस समय अजीब स्थिति में डाल दिया जब उन्होंने सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा कि उनकी समझ के अनुसारसरकार और संगठन के बीच कोई सम्मानजनक साझेदारी नहीं है.’ 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा सांसद ने जिस कार्यक्रम में सार्वजनिक रूप से यह बात कही, उसमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्य इकाई के प्रमुख भूपेंद्र चौधरी भी मौजूद थे.

पूर्व भाजपा मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में बोलते हुए उन्नाव सांसद ने कहा, ‘मुझे लगता हैसत्ता में और संगठन में सम्मानजनक साझेदारी नहीं हैदोनों मुखिया आगे बैठे हैं, आगे इसका ध्यान रखेंगे तो बड़ी कृपा होगी.’

साक्षी महाराज की यह टिप्पणी इस वर्ष जून में हुए लोकसभा चुनावों में राज्य में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई में मचे घमासान के बीच आई है. पिछले कुछ समय से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार और भूपेंद्र चौधरी के नेतृत्व वाली राज्य इकाई के बीच समन्वय की कमी की बात कही जा रही है.

योगी के ख़िलाफ़ भाजपा का असहयोग! 

लोकसभा चुनाव-2024 में भाजपा के 240 सीटों पर सिमटने और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) से भी कम सीटें लाने के बाद से पार्टी में तनाव की ख़बरें लगातार आ रही हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा नेतृत्व के इशारे पर योगी को निशाना बनाया जा रहा है. 

ग़ौरतलब है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 11 मई 2024 को एक चुनावी सभा में कहा था, ‘अगर ये चुनाव जीत गए तो मेरे से लिखवा लो, ये लोग दो महीने के अंदर उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बदल देंगे. योगी आदित्यनाथ की राजनीति ख़त्म करेंगे. उनको भी निपटा देंगे.’

लोकसभा चुनाव के बाद 14 जुलाई को लखनऊ में भाजपा राज्य कार्यकारिणी की बैठक हुई थी. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने पार्टी के ख़राब प्रदर्शन के लिए अलग-अलग वजहें बताई थीं. योगी कहना था कि पार्टी अपने अति आत्मविश्वास के कारण अच्छा नहीं कर पाई.

वहीं, केशव मौर्य ने जो कहा था उससे राजनीतिक हलकों में हंगामा मच गया था. उन्होंने कहा था, ‘संगठन, प्रदेश और देश के नेतृत्व के सामने कह रहा हूं, संगठन सरकार से बड़ा है. संगठन से बड़ा कोई नहीं होता है.’ मौर्य के इस बयान को योगी पर हमला माना गया था. 

इस बयान के बाद मौर्य 16 जुलाई को भाजपा अध्यक्ष और यूपी प्रदेश अध्यक्ष से दिल्ली में मिले और 17 जुलाई को एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, ‘संगठन सरकार से बड़ा है. कार्यकर्ताओं का दर्द मेरा दर्द है, संगठन से बड़ा कोई नहीं, कार्यकर्ता ही गौरव है.’

इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रिब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी लिखती हैं,इसे विद्रोह कहना अभी भी जल्दबाजी होगी, लेकिन प्रतिरोध का चेहरा उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य हैं, जो एक प्रमुख ओबीसी चेहरा हैं और लंबे समय से शीर्ष पद पर नज़र रखे हुए हैं. उन्होंने कहा कि संगठन सरकार से बड़ा है, जो नौकरशाहों पर सीएम की कथित अत्यधिक निर्भरता की आलोचना थी. मौर्य को दूसरे उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और प्रदेश भाजपा प्रमुख भूपेंद्र चौधरी का समर्थन प्राप्त है, जिन्होंने हार के अपने आकलन के बारे में प्रधानमंत्री को जानकारी दी है.’

मौर्या वाली घटना के कुछ दिन बाद प्रतापगढ़ के विधायक राजेंद्र प्रताप सिंह का बयान आया, जिसमें उन्होंने योगी के भ्रष्टाचार मुक्त और चुस्त-दुरुस्त प्रशासन की धज्जियां उड़ा दी. उन्होंने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा, ‘मेरे 42 वर्ष के राजनीतिक जीवन में, तहसील और थाने का ऐसा भ्रष्टाचार, न सोच सकते थे, न देख सकते थे.’

कुछ समय बाद योगी की छवि को और एक धक्का देते हुए गोरखपुर के कैंपियरगंज के विधायक फतेह बहादुर सिंह ने प्रदेश में अपनी जान को ख़तरा बताया. उन्होंने कहा, ‘मुझे जानकारी मिली है कि मुझे मारने के लिए विरोधी दल द्वारा चंदा इकट्ठा किया जा रहा है. मैंने इस बात को लिखित रुप से माननीय मुख्यमंत्री जी को दिया. मुख्यमंत्री जी ने नीचे किन अधिकारियों को दिया, मुझे मालूम नहीं है लेकिन अभी तक 10-12 दिन हो गए हैं, कोई पता नहीं चल पाया है.’ 

ज़ाहिर है इस घटना से संदेश गया कि जब सीएम के गृह ज़िले का विधायक सुरक्षित नहीं है तो शेष राज्य में क्या स्थिति होगी.

इसके अलावा, भाजपा के सहयोगी अपना दल (एस) की प्रमुख और केंद्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को लिखे गए पत्र ने भी एनडीए में सब ठीक न होने की तरफ़ इशारा किया था.   

पटेल ने पत्र में आरोप लगाया था कि सरकारी भर्ती प्रक्रिया के दौरान अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षित सीटें ‘अनारक्षित’ हो जाती हैं.

योगी को लिखे एक दूसरे पत्र में पटेल ने टोल प्लाजा पर हो रही ‘वसूली’ को लेकर सवाल उठाया था. इसके अलावा भी लोकसभा चुनाव के बाद से ऐसा बहुत कुछ हुआ है, जिसकी वजह से यह कहा जा रहा है कि भाजपा योगी सरकार के साथ असहयोग की मुद्रा में है. 

योगी की रणनीति 

भाजपा के कथित असहयोग के बावजूद योगी पद पर बने हुए हैं. पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद भाजपा के राज्य नेतृत्व में आंतरिक मतभेद के बीच योगी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है. योगी आदित्यनाथ ने अपने हिंदुत्व के रुख को और कड़ा कर दिया है. 

सबसे पहले, पिछले महीने आदित्यनाथ ने लखनऊ की दो हिंदू बहुल कॉलोनियों – पंत नगर और इंद्रप्रस्थ नगर – के निवासियों को आश्वासन दिया कि उनके घर नहीं तोड़े जाएंगे. निवासियों में डर था क्योंकि सिंचाई विभाग ने घरों को बाढ़ क्षेत्र में चिह्नित किया था.

अगला बड़ा उदाहरण पुलिस द्वारा कांवड़ यात्रा मार्ग पर सड़क किनारे विक्रेताओं और दुकानदारों को उनके प्रतिष्ठानों के बाहर अपना नाम प्रदर्शित करने का आदेश पारित करना था. हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से इस पर रोक लग गई.

फिर जुलाई के अंत में, राज्य सरकार ने धर्मांतरण विरोधी कानून में संशोधन करने के लिए एक विधेयक पेश किया, जिससे उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 को और अधिक कठोर बना दिया गया. यूपी विधानसभा ने 30 जुलाई को संशोधन विधेयक पारित किया, जिसमें फिर से ‘लव जिहाद’ को खत्म करने के अपने इरादे को रेखांकित किया गया. 

बता दें कि ‘लव जिहाद’ शब्द हिंदू दक्षिणपंथी समूहों द्वारा कथित तौर पर एक साजिश को रेखांकित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिसके तहत कथित तौर पर मुस्लिम पुरुष हिंदू महिलाओं को शादी का झांसा देकर उनका धर्म परिवर्तन कराते हैं.

पिछले हफ़्ते, अपराध के प्रति अपनी सख़्त छवि के अनुरूप, सीएम ने पुलिस अधिकारियों को ‘एंटी-रोमियो स्क्वॉड’ को फिर से सक्रिय करने का निर्देश दिया, जिसे 2017 में उनके राज्य की कमान संभालने के बाद पहली बार बनाया गया था. 

आदित्यनाथ के सत्ता में लौटने के बाद 2022 में उन्हें कुछ समय के लिए फिर से तैनात किया गया था, लेकिन फिर से रोक दिया गया था.

फिर, पिछले हफ़्ते एक कार्यक्रम में जहां राम मंदिर आंदोलन के ध्वजवाहक परमहंस रामचंद्र दास की प्रतिमा का अनावरण किया गया, आदित्यनाथ ने सनातन धर्म को ख़तरे में डालने वाले ‘आसन्न संकट’ के ख़िलाफ़ एकजुट होने की अपील की. राम मंदिर निर्माण का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह ‘अंतिम मंज़िल’ नहीं बल्कि एक मील का पत्थर है और ‘सनातन धर्म को सुरक्षित’ करने का अभियान जारी रहना चाहिए.

पिछले सप्ताह के अंत में आदित्यनाथ ने बांग्लादेश संकट और पड़ोसी देशों में हिंदुओं की स्थिति पर भी बात की. उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष वोट बैंक की राजनीति के कारण इसे लेकर चुप है. उन्होंने कहा, ‘बांग्लादेश के हिंदुओं की रक्षा करना और संकट के समय उनका समर्थन करना हमारा कर्तव्य है और हम हमेशा उनके साथ खड़े रहेंगे. चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों, हमारे मूल्य अटल हैं. बांग्लादेश में हिंदू होना कोई गलती नहीं है.’