बंगनामा: हम्पी के प्रांगण में बंगाल के फूल

हम्पी जाते वक्त विजयनगर साम्राज्य की कलात्मक राजधानी की छवि मन में थी, लेकिन यह उम्मीद नहीं थी कि वहां पश्चिम बंगाल की झलक दिख जाएगी. बंगनामा स्तंभ की आठवीं क़िस्त.

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हम्पी का एलिफेंट स्टेबल. (फोटो साभार: Wikimedia Commons/DebasisDas1976/CC BY-SA 4.0)

क़रीब दो सप्ताह पहले एक मेघाच्छादित सुबह मेरी पत्नी और मैं ट्रेन से कर्नाटक के होस्पेट शहर उतरे और हम्पी मार्ग पर स्थित एक होटल में जा पहुंचे. 600 साल पुराने विजयनगर साम्राज्य की राजधानी के कलात्मक अवशेषों के लिए हम्पी दुनियाभर में प्रसिद्ध है. हम दोनों किष्किन्धा क्षेत्र में पहाड़ों के मध्य बनी भव्य राजप्रासादों और मंदिरों की नगरी में आए थे. परंतु यह आशा नहीं थी कि हम्पी में पश्चिम बंगाल की एक झलक दिख जाएगी.

होटल में कई पदों पर लड़कियां या महिलाएं कार्यरत थीं. हमारा सामान पहुंचाने कमरे में एक लड़की आई और जब हम दोनों तैयार हो कर नाश्ता करने पहुंचे तो वहां भी कुछ लड़कियां वेटर के रूप में काम कर रही थीं. हमारी मेज पर एक घुंघराले बालों वाली वेटर कॉफ़ी ले कर आई.  मुझे लगा वह शायद मेरे जन्मस्थान छोटा नागपुर की रहने वाली है. पूछने पर उसने  कहा, ‘नहीं सर, पश्चिम बंगाल..’

‘अच्छा ? पश्चिम बंगाल में कहां से?’
‘सिलीगुड़ी. उसी के पास से.’

मैंने फिर पूछा कि वह किस जगह से है तो उसने झिझकते हुए कहा, ‘बहुत छोटी जगह है, आपको नहीं पता होगा… नागराकाटा.’ जब मैंने कहा कि हम दोनों नागरकाटा से भली-भांति परिचित हैं, तो उसे बहुत विस्मय हुआ.

‘आप लोग नागराकाटा जानते हैं?’

नागराकाटा उत्तर बंगाल के जलपाईगुडी ज़िले का एक ब्लॉक है. वहां के चाय बाग़ानों में काम करने वाले अधिकतर लोग आदिवासी हैं जिनके दादा-परदादा छोटानागपुर से वहां मज़दूरी करने लाए गए थे. उस लड़की का नाम फूल कुमारी था.

मुझे यह जानकर हैरत हुई कि फूल कुमारी पश्चिम बंगाल की है. वैसे तो विदेश में भी कई नगरों, खारतूम से ले कर हो ची मिन्ह सिटी तक, में मैंने पश्चिम बंगाल के लोगों को होटल और रेस्तरां में कार्यरत पाया था, किंतु वे सब पुरुष थे. इससे पहले पश्चिम बंगाल की किसी लड़की या महिला को नहीं देखा था जो वेटर का काम कर रही हो. और यह युवती तो भूटान से सटे दुआर क्षेत्र के अपने घर से ढाई हज़ार किलोमीटर दूर एक छोटे से शहर में काम कर रही थी.

नाश्ते के बाद हम हम्पी की ओर चले, जो होस्पेट से मात्र 13 कि मी दूर स्थित है. 1336 से 1565 तक हम्पी विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी और चीन के बेज़िंग के बाद तत्कालीन विश्व का दूसरा बड़ा नगर था. इसकी स्थापना हरिहर और बुक्का नामक दो सेनापति भाइयों ने की थी. उनके वंशजों ने इसे बढ़ाया और सजाया. क़रीब 20 वर्ग किमी में बिखरे हुए इस उजड़े शहर के कुछ साबुत बचे रह गए मंदिरों और अनेक खंडहरों से केवल अंदाज़ लगाया जा सकता है कि पत्थर, ईंट और लकड़ी से निर्मित यहां के भवन कितने सुंदर रहे होंगे. चाहे वह ग्यारहवीं सदी का विरूपक्ष महामंदिर हो, जहां शिवलिंग, पम्पा देवी तथा दुर्गा मां की मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं, या कृष्ण मंदिर के अवशेष, विशाल शिलाओं से यथा-स्थान तराशे सासिवेकलु गणेश या उग्र नरसिंह की मूर्ति हो या शिवलिंग. उन्हें देखकर मन अचंभित भी होता था और मंत्रमुग्ध भी.

हम्पी नगर के मध्य में 18 एकड़ में स्थित है राज परिसर जिसमें राजप्रासादों, सभाघरों, भोजनालय, साथ जल संरक्षण के कुंडों तथा उनके बीच पानी के संचार और वितरण के लिए पत्थरों से काट कर बनाई गई नालियों की एक अत्यंत प्रभावशाली व्यवस्था है.

किष्किन्धा क्षेत्र में राम और लक्ष्मण ने बहुत समय बिताया था. राम और सुग्रीव की भेंट भी यहीं हुई थी- तुंगभद्र नदी के किनारे चट्टानों की पृष्ठभूमि में. चौदहवीं सदी में  यहां एक सुंदर राम मंदिर का निर्माण हुआ. इस मंदिर की विशिष्टता है कि राम, लक्ष्मण और सीता के मूर्तियों के साथ यहां सुग्रीव उपस्थित हैं, हनुमान नहीं. राम, सीता जी और लक्ष्मण की इतनी सुंदर त्रिमूर्ति मैंने शायद कहीं नहीं देखी है.

राम मंदिर के पीछे शिलाओं पर स्थित है हनुमान का एक छोटा मगर खूबसूरत मंदिर. हमें बताया गया कि कुछ दूरी पर स्थित मालवंत रघुनाथ मंदिर के पीछे चट्टानी पहाड़ के ऊपर वह जगह है जहां लक्ष्मण ने पथरीली शिला में बाण मारकर जल का स्रोत बनाया था. यह विशाल सपाट चट्टान के बीचोंबीच शिवलिंगों से घिरा एक लंबा गहरा चीरा था जिसके जल में एक प्लास्टिक की बोतल और कुछ पन्नियां तैर रही थीं.

दिन भर फूलों के बाग में मधुमक्ख़ियों की तरह चक्कर लगाने के बाद हम दोनों थक गए थे. भोजन के लिए हम होटल के रेस्तरां पहुंच गए. फूल कुमारी ने मुस्कुराकर हमारा स्वागत किया. फूल कुमारी का घर नागराकाटा के पास एक चाय बाग़ान में था जहां उसके माता-पिता अन्य कई सौ मज़दूरों के साथ चाय के झाड़ उगाने और उनकी नई कोपलों को तोड़कर इकट्ठा करने का काम करते थे. वह तीन-चार साल की थी जब उसके पिता गुज़र गए और मां ने परिवार का दायित्व संभाला. फूल कुमारी को पांचवी क्लास के बाद स्कूल जाना बंद करना पड़ा. वह घर रहकर अपने भाई-बहन की देखभाल करती थी. कुछ समय बाद वह भी अपनी मां की तरह चाय बाग़ान में काम करने लगी. पांच-छह वर्षों के बाद नागराकाटा के ही कुछ परिचित परिवार के लड़कों से उसकी भेंट हुई जो होस्पेट में काम कर रहे थे. उन्हीं के माध्यम से फूल कुमारी को इस होटल में काम मिला.

पहले तीन साल फूल कुमारी होटल के साथ लगे बैंक्वेट हॉल से जुड़ी रही. जब वह वेटर के काम में दक्ष हो गई तो होटल के मुख्य रेस्तरां में आ गयी. उसने  बताया कि नागराकाटा की दो और लड़कियां भी इसी होटल और रेस्तरां में कार्यरत थीं. एक अन्य युवती तीन महीने पहले अपनी मां की मृत्यु के बाद वापस नागराकाटा लौट गई थी. दूरी और खर्चे की वजह से ये लड़कियां साल या डेढ़ साल में एक ही बार घर जा पाती हैं. फूल कुमारी अभी दो महीने पहले ही नागरकाटा में महीना भर रह कर वापस आई थी – यह बताते हुए उसका चेहरा खिल उठा.

दूसरे दिन सुबह नाश्ते के समय हमारी मुलाक़ात कबिता से हुई. दसवीं तक पढ़ने के बावजूद उसे दुआर इलाक़े में रोज़गार के कोई अवसर न दिखे. डेढ़ वर्ष पूर्व तक वह भी नागराकाटा के उस बाग़ान में चाय के पौधों के बीच कठिन परिश्रम कर अपने परिवार के भरण-पोषण में हाथ बंटा रही थी. फूल कुमारी से प्रेरित हो कर उसने भी होस्पेट के लिए टिकट कटा लिया.

मैंने पूछा कि तुम लोगों को साप्ताहिक छुट्टी किस दिन मिलती है. फूलकुमारी ने सकुचाते हुए बताया कि सप्ताह में उन्हें एक दिन छुट्टी मिलती तो है पर वे उसे लेती नहीं हैं- ‘क्या करेंगे हम छुट्टी ले के. कहां जाएंगे? अपने कमरे में रहने से अच्छा है कुछ काम कर लें. दरकार पड़ने पर छुट्टी मिल जाती है…’

उसके संकोच में एक कसक छपी थी. वे लड़कियां अपनी छुट्टियां अपने पगार की तरह बीन-बटोरकर सुरक्षित रखती थीं ताकि वे एक-डेढ़ साल बाद अपने स्वजनों के साथ एक महीना बिता सकें. कबिता दिसंबर का इंतज़ार कर रही है. क्रिसमस में वह घर जाएगी.

उस दिन हम हम्पी के उत्तरी क्षेत्र में गए. सबसे पहले हम अंजनाद्री पहाड़ पहुंचे जिसके शिखर पर हनुमान का जन्म स्थल है. हमारा अगला पड़ाव जग प्रसिद्ध विट्ठल मंदिर था लेकिन रास्ते में हम पम्पा कुंड के किनारे चिह्नित शबरी की गुफा को भी देखने गए. गुफा के आसपास की जगह को देखकर थोड़ा दुख हुआ. वहां चबूतरों और सीढ़ियों का निर्माण इतनी मुस्तैदी से हुआ है कि गुफा खो सी गई है. विट्ठल मंदिर के प्रांगण में कई खूबसूरत संरचनाएं हैं जैसे सभा मंडप, कल्याण मंडप, और उत्सव मंडप. सबमें सर्वाधिक नामी है गरुड़ रथ जिसकी छवि भारतीय रिज़र्व बैंक ने पचास रुपये के नए नोट पर छापी है.

विट्ठल मंदिर का सभा मंडप और कल्याण मंडप अपनी उत्कृष्ट नक़्क़ाशी के अलावा अपने संगीत-जनक खंभों के लिए भी जाना जाता है. इन दोनों मंडपों में विभिन्न मोटाई के खंभे हैं जिन्हें थपथपाने से विविध वाद्य-यंत्रों के मधुर स्वर सुने जा सकते हैं. दुर्भाग्य से संगीत प्रेमी सैलानियों ने छड़ियों और पत्थरों से पीट-पीटकर इन खंभों को इतना क्षतिग्रस्त कर दिया कि अब पुरातत्व विभाग ने सभा मंडप में लोगों के प्रवेश पर निषेध लगा दिया है.

उसी रात हमें हम्पी एक्सप्रेस से वापस बेंगलुरु जाना था. हम दोनों फिर से रेस्तरां पहुंच गए. आज भी फूल कुमारी वहां मौजूद थी और साथ में कबिता भी थी. उस शाम हमारा परिचय नागराकाटा की तीसरी लड़की से भी हुआ. उसका नाम कोमल था. अट्ठारह वर्ष की उस छोटी-सी लड़की को देखकर लगता था कि वह हम्पी सैर करने किसी स्कूल दल के साथ आई हो. कोमल को होटल में काम करते हुए दो महीने भी नहीं हुए थे मगर फूल कुमारी और कबिता की तरह उसका मन यहां नहीं लग रहा था. कम से कम कुछ दिनों के लिए वह वापस अपने घर जाना चाहती थी, और उसने अपनी दोनों दीदियों से वापसी का टिकट कटाने के लिए भी कह दिया था.

मैंने उससे पूछा, ‘पर क्यों जाना चाहती हो? अभी तो आई हो?’

उसका जवाब था, ‘दादी की बहुत याद आती है…’

(चन्दन सिन्हा पूर्व भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी, लेखक और अनुवादक हैं.)

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