वक़्फ़ विधेयक पर एनडीए में रार; लोजपा, तेदेपा के बाद नीतीश कुमार की जदयू ने भी दर्ज कराई आपत्ति

केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक दल जनता दल (यूनाइटेड) ने वक़्फ़ संशोधन विधेयक को शुरुआत में समर्थन दिया था. तब से जदयू में आंतरिक असंतोष है. इससे पहले भाजपा के अन्य सहयोगी दलों, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी, ने भी विधेयक पर सवाल उठाए थे.

नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: X/@NitishKumar)

नई दिल्ली: नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तीसरी सहयोगी पार्टी बन गई है जिसने सरकार के वक्फ संशोधन विधेयक पर चिंता जताई है. जदयू राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार के लिए सबसे महत्वपूर्ण दलों में से एक है.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने पहले ही विधेयक पर सवाल उठाए हैं. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने भी यही किया है.

माना जा रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री की पार्टी मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए प्रस्तावित कानून में बदलाव चाहती है, जिनकी आबादी राज्य में 18 प्रतिशत है, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. जदयू का विरोध महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने शुरुआत में विधेयक को समर्थन दिया था. पार्टी सांसद राजीव रंजन ने इस महीने की शुरुआत में लोकसभा में एक बहस के दौरान कानून के पक्ष में बात की थी.

रंजन ने संशोधनों को पारदर्शिता के लिए एक बहुत जरूरी उपाय बताया था.

हालांकि, तब से जदयू के गुटों में असंतोष है, राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहम्मद जमा खान ने मुख्यमंत्री से मुलाकात कर कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई है. अफ़वाहों के मुताबिक, खान अकेले असहमति जताने वाले नहीं हैं, जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने मुस्लिम समुदाय की ‘आशंकाओं’ के बारे में बात की है.

चौधरी को मुख्यमंत्री का करीबी सहयोगी माना जाता है. रिपोर्ट के अनुसार, विधायक गुलाम गौस जैसे अन्य जदयू नेताओं ने भी संदेह जताया है.

नए कानून की धाराओं पर बढ़ती आपत्ति के परिणामस्वरूप जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और खान ने केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू से मुलाकात की.

एक सूत्र ने एनडीटीवी को बताया कि कुछ मुस्लिम मौलवियों द्वारा एक खतरनाक कहानी गढ़ी जा रही है.

सूत्रों ने यह भी कहा कि इस विचार का उद्देश्य उन मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाना है, जो पुराने कानून के तहत पीड़ित थीं.

मालूम हो कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की ओर से प्रस्तावित संशोधन विधेयक में वक्फ अधिनियम 1995 का नाम बदलकर ‘एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम’ किया गया है. इसे लेकर सरकार का दावा है कि ये संशोधन ‘क़ानून में मौजूद ख़ामियों को दूर करने और वक्फ की संपत्तियों के प्रबंधन और संचालन’ को बेहतर बनाने के लिए जरूरी हैं.

इसका एक उद्देश्य महिलाओं के विरासत अधिकारों को सुनिश्चित करना भी बताया गया है. इसके अलावा, संशोधन विधेयक के ‘उद्देश्यों और कारणों’ के अनुसार, वक्फ को ऐसा कोई भी व्यक्ति संपत्ति दान दे सकता है जो कम से कम पांच सालों से इस्लाम का पालन करता हो और जिसका संबंधित ज़मीन पर मालिकाना हक हो.

प्रस्तावित संशोधन के तहत अतिरिक्त कमिश्नर के पास मौजूद वक्फ की ज़मीन का सर्वे करने के अधिकार को वापस ले लिया गया और उनकी बजाय ये ज़िम्मेदारी अब ज़िला कलेक्टर या उपायुक्त को दे दी गई है. केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य स्तर पर वक्फ बोर्ड में दो ग़ैर मुसलमान प्रतिनिधि रखने का प्रावधान किया गया है. नए संशोधनों के तहत बोहरा और आग़ाख़ानी समुदायों के लिए अलग ‘औकाफ बोर्ड’ की स्थापना की भी बात कही गई है.

हालांकि, कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने इन प्रस्तावों की तीखी आलोचना की है और इसे देश के मुसलमानों को निशाना बनाने वाला असंवैधानिक विधेयक बताया है.

अंतत: वक्फ संशोधन विधेयक पर तीखी बहस के बाद इसे आगे विचार-विमर्श के लिए संयुक्त समिति के पास भेज दिया गया. भाजपा सांसद जगदंबिका पाल की अध्यक्षता वाली 31 सदस्यीय समिति ने गुरुवार को अपना पहला सत्र आयोजित किया. अगली बैठक 30 अगस्त को होनी है.