नई दिल्ली: अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 21 साल पहले पेंशन सिस्टम में जो बदलाव किया था, उसे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने पलट दिया है. केंद्र सरकार ने यूनिफ़ाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) को मंज़ूरी दी है.
द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह लगभग पुरानी पेंशन योजना के समान ही है, और सरकारी कर्मचारियों को आजीवन उनके अंतिम वेतन का 50% प्रति माह देने का आश्वासन देती है.
यूपीएस को मंज़ूरी मिलने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर लिखा, ‘देश की प्रगति के लिए कठिन परिश्रम करने वाले सभी कर्मचारियों पर हमें गर्व है. यूनिफ़ाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) इन कर्मचारियों की गरिमा और आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने वाली है. यह कदम उनके कल्याण और सुरक्षित भविष्य के लिए हमारी सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.’
क्या–क्या लाभ?
शनिवार (24 अगस्त, 2024) को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा यूपीएस को स्वीकृत किया गया. इसके तहत 25 साल तक केंद्र सरकार की नौकरी करने वाले कर्मचारियों को रिटायरमेंट के ठीक पहले के 12 महीनों के औसत मूल वेतन का 50 फ़ीसदी पेंशन के तौर पर प्रति माह दिया जाएगा.
अगर कर्मचारी ने 25 वर्ष से कम और 10 वर्ष से अधिक समय तक नौकरी की होगी, तो पेंशन फिर उसी हिसाब से मिलेगा. कम से कम 10 साल तक सर्विस करने वालों के लिए न्यूनतम 10,000 रुपये प्रति माह पेंशन का वादा किया गया है.
सेवा में रहते हुए जिस कर्मचारी की मौत होगी, उसके परिवार को वेतन का 60 फ़ीसदी पेंशन के रूप में मिलेगा.
पेंशन में महंगाई इंडेक्शेसन को शामिल किया जाएगा. इसका मतलब यह हुआ कि मुद्रास्फीति के रुझान के अनुरूप समय–समय पर महंगाई राहत में वृद्धि की जाएगी.
इस योजना के तहत ग्रैच्युटी के अलावा नौकरी छोड़ने पर कर्मचारियों को एकमुश्त रक़म भी दी जाएगी.
इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने शनिवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया कि इस योजना से 23 लाख कर्मचारियों को लाभ मिलेगा. यह योजना 1 अप्रैल, 2025 से लागू होगी.
कैसे बनी यह योजना?
यह योजना सोमनाथन कमेटी की सिफ़ारिशों से प्रेरित है. दरअसल, राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस या नई पेंशन योजना) की समीक्षा के लिए पीएम मोदी ने मार्च 2023 में एक कमेटी बनाई थी, जिसका नेतृत्व वित्त सचिव डॉ. सोमनाथन कर रहे थे.
ध्यान रहे कि यह वही वक़्त था जब विपक्षी दलों द्वारा शासित पांच राज्यों ने अपने कर्मचारियों को एनपीएस से हटाकर पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) में शामिल कर लिया था, जिसमें वेतन के 50% पर पेंशन की गारंटी थी. एनपीएस के तहत पेंशन भुगतान सरकार और कर्मचारी द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान किए गए योगदान के संचित मूल्य से जुड़ा हुआ था. यह 1 जनवरी, 2004 को या उसके बाद सरकारी सेवा में शामिल होने वाले कर्मचारियों के लिए शुरू हुआ था.
डॉ. सोमनाथन ने मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद कहा कि राज्य सरकारें यूपीएस की संरचना को अपनाने के लिए तैयार हैं. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ओपीएस और यूपीएस के बीच मुख्य अंतर यह है कि ओपीएस देनदारियां वित्तपोषित नहीं हैं. इसके अलावा ओपीएस में कर्मचारियों या नियोक्ता की ओर से कोई योगदान नहीं दिया जाता है.
जबकि, यूपीएस एक अंशदायी योजना होगी, जिसमें कर्मचारी वेतन का 10% हिस्सा देंगे और सरकार वेतन का 18.5% हिस्सा देगी. सोमनाथन ने यह भी संकेत दिया कि कर्मचारियों का योगदान 10% की सीमा पर स्थिर रहेगा, जबकि यूपीएस वादों को पूरा करने के लिए आवश्यकता के अनुसार सरकार के योगदान को अधिक या कम किया जा सकता है.
वहीं, एनपीएस एक विकल्प बना रहेगा, जिनमें वे भी शामिल हैं जो तब से सेवानिवृत्त हो चुके हैं, अधिक उदार यूपीएस में स्विच करने का विकल्प दिया गया है, और सोमनाथन ने अनुमान लगाया कि लगभग 99% एनपीएस सदस्यों के लिए यूपीएस में जाना फायदेमंद होगा.
अलग से, कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के समय ग्रेच्युटी लाभ के अलावा एकमुश्त भुगतान का भी वादा किया गया है. यह एकमुश्त राशि नौकरी के हर छह महीने के लिए मिलने वाली रकम (वेतन + महंगाई भत्ता) के दसवां हिस्से के बराबर होगी.
सरकार की इस नई योजना पर मिलीजुली प्रतिक्रिया आ रही है. कुछ संगठन इससे खुश हैं. कुछ की मांग है कि इसकी जगह ओपीएस को ही वापस लाया जाए.
न्यूनतम वेतन बढ़ाने की मांग
इस बीच, जॉइंट कंसल्टेटिव मशीनरी (जेसीएम) के प्रतिनिधियों ने शनिवार (24 अगस्त, 2024) शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और कहा कि यूपीएस के लिए कैबिनेट की मंजूरी केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, जेसीएम की राष्ट्रीय परिषद के प्रमुख ने सरकारी कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन को 32,500 रुपये प्रति माह करने की मांग भी रखी और सरकारी विभागों, खासकर रेलवे में नए पदों के सृजन पर प्रतिबंध हटाने का आग्रह किया.
प्रधानमंत्री ने बैठक के बाद एक्स पर लिखा, ‘केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए जेसीएम के कर्मचारियों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की. उन्होंने यूपीएस के बारे में कैबिनेट के फैसले पर खुशी जताई.’
जेसीएम सरकार और उसके कर्मचारियों के बीच बातचीत के लिए एक वैधानिक निकाय है, ताकि मुद्दों को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल किया जा सके. जेसीएम के एक तिहाई प्रतिनिधि रेलवे कर्मचारी हैं. रिपोर्ट के मुताबिक़, जेसीएम प्रमुख एम राघवैया ने कहा, ‘हमने सरकार के साथ जो मुद्दे उठाए थे, उनमें से अधिकांश का समाधान हो गया है.’