चारधाम परियोजना: कोर्ट की समिति की सिफ़ारिश के उलट बीआरओ ने कहा- पर्यावरण मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं

गंगोत्री-धरासू मार्ग भागीरथी इको-सेंसिटिव ज़ोन (BESZ) में आता है. लेकिन सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) का कहना है कि पूरे चारधाम परियोजना के लिए पहले ही पर्यावरण प्रभाव आकलन किया जा चुका है, इसलिए पर्यावरण मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं है.

(फोटो साभार: बीआरओ वेबसाइट और सड़क परिवहन-राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी एक्स हैंडल)

नई दिल्ली: सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने उत्तराखंड वन विभाग और पर्यावरण मंत्रालय की समिति से कहा है कि चारधाम सड़क परियोजना के तहत गंगोत्रीधरासू मार्ग पर निर्माण के लिए पर्यावरण मंजूरी (एनवायरमेंट क्लीयरेंस) की जरूरत नहीं है, न ही पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के आकलन के अध्ययन की ज़रूरत है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट मुताबिक़, बीआरओ ने समिति के समक्ष यह बात पिछले सप्ताह रखी. ध्यान रहे कि बीआरओ की यह दलील सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) की सिफारिशों के विपरीत है.

इकोसेंसिटिव ज़ोन में आता है गंगोत्रीधरासू मार्ग

गंगोत्रीधरासू मार्ग भागीरथी इकोसेंसिटिव ज़ोन (BESZ) में आता है. जुलाई 2020 में सर्वोच्च न्यायालय को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में एचपीसी ने कहा था कि भागीरथी इकोसेंसिटिव ज़ोन में सड़क चौड़ीकरण का काम विस्तृत पर्यावरण प्रभाव आकलन और नुक़सान (पर्यावरण क्षति) को कम करने के तमाम उपायों को अपनाने के बाद ही किया जाना चाहिए.

बीआरओ वर्तमान में गंगोत्रीधरासू खंड पर नेताला बाईपास परियोजना के लिए 17.5 हेक्टेयर वन भूमि की मंजूरी मांग रहा है, जिसे पहले एचपीसी ने अस्वीकार कर दिया था.

इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि वन विभाग ने वन क्षेत्र परिवर्तन प्रस्ताव के संबंध में यह जानना चाहा था कि भागीरथी इकोसेंसिटिव ज़ोन में बाईपास के लिए पर्यावरण मंजूरी की जरूरत है या नहीं.

इसके जवाब में बीआरओ ने 19 अगस्त को एक पत्र में कहा कि चूंकि पूरे चारधाम परियोजना के लिए पहले ही पर्यावरण प्रभाव आकलन किया जा चुका है, इसलिए प्रभाव अध्ययन और पर्यावरण मंजूरी की जरूरत नहीं है.

बीआरओ ने ऐसा क्यों कहा?

बीआरओ ने अपने रुख को इस आधार पर उचित ठहराया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एचपीसी की सिफारिशों के अनुसार, पूरे चारधाम परियोजना के लिए त्वरित पर्यावरण प्रभाव आकलन किया गया था, जिसमें 53 खंड शामिल हैं.

संगठन का कहना है कि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा पहले ही पर्यावरण प्रभाव आकलन कर उसे 2020 में पर्यावरण मंत्रालय, उत्तराखंड सरकार और एसपीएस को सौंप दिया गया था.

एचपीसी की सिफारिशों के बारे में पूछे जाने पर बीआरओ कमांडर विवेक श्रीवास्तव ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि संगठन का रुख पत्र में बता दिया गया है और वह इस पर आगे कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते.

एचपीसी अध्यक्ष को नहीं मिली जानकारी

सेवानिवृत्त जस्टिस एके सीकरी ने कहा कि पैनल को भागीरथी इकोसेंसिटिव ज़ोन में सड़क चौड़ीकरण पर अभी तक कोई प्रस्ताव प्राप्त नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि वे इस मुद्दे पर जानकारी मांगेंगे.

बता दें कि जस्टिस (रि.) सीकरी उच्चाधिकार प्राप्त समिति और सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी समिति दोनों के अध्यक्ष हैं. इन्हीं दोनों समितियों को न्यायालय द्वारा आदेशित पर्यावरण सुरक्षा उपायों को लागू करने का काम सौंपा गया है.

भागीरथी इकोसेंसिटिव ज़ोन गौमुख और उत्तरकाशी शहर के बीच 4,157 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है. इसे गंगा नदी की पारिस्थितिकी, पर्यावरण प्रवाह और इसके उद्गम के निकट जलग्रहण क्षेत्र की रक्षा के लिए 2012 में अधिसूचित किया गया था. बीआरओ ने एनएच 34 के उत्तरकाशीगंगोत्री खंड पर हिना और तेखला के बीच नेताला बाईपास परियोजना का प्रस्ताव इस आधार पर रखा है कि मौजूदा राजमार्ग पर सक्रिय भूस्खलन स्थल हैं.

इंडियन एक्सप्रेस ने 29 जुलाई को खबर दी थी कि बीआरओ बाईपास परियोजना पर आगे बढ़ रहा है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने सिफारिश की थी कि भूवैज्ञानिक खामियों और स्थानीय लोगों तथा निर्वाचित प्रतिनिधियों के विरोध के कारण इसे छोड़ दिया जाना चाहिए.

जून में, क्षेत्रीय मास्टर प्लान के क्रियान्वयन की देखरेख करने वाली भागीरथी इकोसेंसिटिव ज़ोन निगरानी समिति के स्वतंत्र सदस्यों ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव को चारधाम परियोजना के तहत इस नाज़ुक क्षेत्र में सड़क चौड़ीकरण प्रस्तावों पर आपत्तियां भेजी थीं.

उन्होंने बताया था कि 2012 भागीरथी इकोसेंसिटिव ज़ोन अधिसूचना के अनुसार बीआरओ के लिए एनवायरनमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट करना अनिवार्य है.