हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले बोले दुष्यंत चौटाला- भाजपा के साथ गठबंधन नहीं करेंगे

हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री और जननायक जनता पार्टी नेता दुष्यंत चौटाला ने आगामी चुनावों में भाजपा के साथ गठबंधन न करने की बात कहते हुए जोड़ा कि उनकी पार्टी आने वाले दिनों में राज्य की सबसे महत्वपूर्ण पार्टी होगी.

दुष्यंत चौटाला. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री और जननायक जनता पार्टी (जजपा) नेता दुष्यंत चौटाला ने रविवार को कहा कि उनकी पार्टी आगामी हरियाणा विधानसभा चुनावों में भाजपा के साथ गठबंधन नहीं करेगी. उन्होंने दावा किया कि उनकी जजपा आने वाले दिनों में सबसे महत्वपूर्ण पार्टी होगी.

समाचार एजेंसी एएनआई के साथ एक विशेष साक्षात्कार में चौटाला ने कहा, ‘मैं आपको रिकॉर्ड पर कह सकता हूं कि मैं भाजपा में नहीं जाऊंगा.’

2024 के लोकसभा चुनावों में उनकी हार के बारे में पूछे जाने पर चौटाला ने कहा, ‘मैं इसे अभी संकट के रूप में नहीं लेता. जो हुआ, सो हुआ. मैं इसे अब एक अवसर के रूप में देखता हूं… पिछली बार भी हमारी पार्टी किंगमेकर थी… आप आने वाले दिनों में भी देख सकते हैं, जजपा राज्य की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टी होगी.’

हरियाणा में पिछले विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा ने 10 जजपा विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी.

2024 के लोकसभा चुनाव में जजपा को केवल 0.87 प्रतिशत वोट मिले, जबकि उसका कोई भी उम्मीदवार राज्य में कोई सीट नहीं जीत पाया.

जब उनसे पूछा गया कि क्या वह ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ गठबंधन करेंगे, तो उन्होंने कहा, ‘देखते हैं कि हमारे पास संख्या है या नहीं और हां, अगर हमारी पार्टी को प्राथमिकता दी जाती है, तो क्यों नहीं?’

जब जजपा एनडीए गठबंधन का हिस्सा थी, तब के अपने अनुभव को साझा करते हुए चौटाला ने कहा, ‘मैं एनडीए गठबंधन के साथ रहा हूं… पहलवानों के मुद्दे और किसानों के मुद्दे के बावजूद मैंने उनके प्रति अपना रुख कभी नहीं बदला. लेकिन अगर वे सम्मान नहीं देते हैं, तो आने वाले दिनों में आश्वासन कौन देगा?’

चौटाला ने लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी की हार के कारणों के बारे में भी बात की और कहा कि शायद जजपा किसानों की भावनाओं को नहीं समझ पाई और इसलिए लोकसभा चुनावों के दौरान इसकी कीमत चुकानी पड़ी.

उन्होंने कहा, ‘किसानों के आंदोलन के कारण गुस्सा था. हमारा बड़ा वोट शेयर किसानों का था और वह बड़ा वोट शेयर चाहता था कि मैं आंदोलन के दौरान पद छोड़ दूं. मेरी पार्टी और मैंने सोचा कि हमें सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए और संशोधन करना चाहिए क्योंकि ये विधेयक केंद्र सरकार के अधीन हैं…शायद हम भावनाओं को नहीं समझ पाए और इसीलिए हमें लोकसभा चुनावों के दौरान इसकी कीमत चुकानी पड़ी.’