क्या सिर्फ़ आज श्रीकृष्ण को ही याद करने का दिन है? क्या आप इन कृष्ण भक्त मुस्लिम कवियों को याद नहीं करेंगे? भारत राष्ट्र का इतिहास समरसता की वह धारा है, जो हर रूह को समान रूप से नहलाती है. संस्कृत के कवियों ने भी मुहम्मद साहब की तारीफ़ों में लालित्यपूर्ण श्लोक रचे तो मुस्लिम कवियों ने श्रीकृष्ण की भक्ति में अपने आपको भक्तों जैसा बना लिया.
आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के साथ-साथ उन महान कवियों को भी याद किया जाना चाहिए, जिन्होंने कभी श्रीकृष्ण के प्रति भक्तिभाव से सुंदर काव्य रचे. आज का दिन कवि तानसेन, ताज, रहीम, रसखान, जमाल, मुबारक, ताहिर अहमद, नेवाज, आलम, शेख तथा रसलीन का भी दिन है.
हम छात्र जीवन से ही सबसे पहले रसखान को पढ़ते हैं. वह वाक़ई रस की खान थे. लेकिन हमें यह कभी किसी शिक्षक ने नहीं बताया कि किस तरह सैयद इब्राहीम नाम का एक बहादुर सैनिक युद्ध मैदानों में लोगों को मारता-काटता कृष्ण भक्ति में लीन हो गया. श्रीकृष्ण की लीलाओं का जैसा वर्णन रसखान ने किया है, वह अन्यत्र दुर्लभ है.
आज का दिन उन्हीं रसखान का भी दिन है, जिसने बहाए रस के ऐसे निर्झर और धर्म की दीवारों को लांघा:
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौ ब्रज गोकुल गांव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरा चरौं नित नंद की धेनु मंझारन।।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धर्यौ कर छत्र पुरंदर कारन।
जो खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल-कदंब की डारन।।
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लाल की आज छठी ब्रज लोग अनंदित नंद बड्यौ अन्हबावत।
चाइन चारु बधाइन लै चहुं ओर कुटुंब अघात न गावत।।
नाचत बाल बड़े रसखानि छके हित काहुँ कै लाज न आवत।
तैसोइ मात पिताउ लह्यौ उलह्यौ कुलही कुलही पहिरावत।।
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धूर भरे अति शोभित स्याम जू तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरें अंगना पग पैंजनी बाजती पीरी कछोटी॥
वा छवि को रसखानि बिलोकत बारत काम–कला निज कोटी।
काग के भाग बड़े सजनी हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी॥
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जो रहीम करिबो हुतो, ब्रज को इहै हवाल।
तौ काहे कर पर धरतो, गोवर्धन गोपाल।
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जे गरीब पर हित करैं, ते रहीम बड़ लोग।
कहां सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।
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जो बड़ेंन को लघु कहैं, नहीं रहीम घटि जांहि।
गिरधर मुरलीधर कहैं, कछु दुख मानत नाहिं।।
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देनहार कोई और है, भेजत हैं दिन रैन।
लोग भरम हम पर धरैं यातें नीचे नैन।।
क्या आज का दिन उस ताज बीबी को याद करने का दिन नहीं है, जिन्होंने कहा था:
दिलजानी, मेरे दिल की कहानी तुम,
दस्त ही बिकानी, बदनामी भी सहूंगी मैं।
देव पूजा ठानी हौ निवाज़ हूं भुलानी तजे,
कलमा कुरान सारे गुन न गहूंगी मैं।
श्यामला सलोना सिरताज सिर कुल्ले दिये,
तेरे नेह बाग़ में निदान ह्वै रहूंगी मैं।
नंद के कुमार, कुरबान ताणी सूरत पर,
हौं तो तुरकानी हिंदुआनी ह्वै रहूंगी मैं॥
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काहू को भरोसो बद्रीनाथ आय पांय परेद,
काहू को भरोसो जगन्नाथ जू के मान को।
काहू को भरोसो ‘ताज’ पुस्कर में दान दिये,
मो को तो भरोसो एक नंदजी के लाल को।।
यह जमाल कवि का भी तो दिन है, जिन्होंने कहा था:
करज्यो गोर जमाल की, नगर कूप के मांय।
मृग-नैनी चपला फिरें, पड़ें कुचन की छांय॥
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घेरत नित्य मुहिं कुंज में भाई नंद किशोर।
दधि माखन को खान हित कह जमाल करि गोर।।
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विधि विध कै सब विधि जपत, कोउ लहत न लाल।
सो विधि को विधि नंद घर खेलत आए जमाल।।
क्या हम आज के दिन उन सैयद मुबारक को भूल सकते हैं, जिन्होंने कहा था:
वह सोकरि कु की खोरि अचानक माधव राधा भेंट भई।
मुसकान भली अंचरा की अली त्रिबली की बली पर दीठि गई।।
शहराइ झुकाइ रिसाइ मुबारक बांसुरिया हंसि छीनि लई।
भृकुटी-मटकाइ गोपाल के गालन आंगुरि ग्वालि गड़ाई गई।।
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दीरघ उजारे कजरारे भरे प्रेमन के नद कोक नद राजत दल कैसे भंवर के।
सुघर सलोने के मुबारक सुधा के भौन छवि के बिछोने के अमलता से थरके॥
लाज के जहाज कैधों मान के विराज मान राधिका सुजान आज तेरे दृग दरसे।
चार चकोर भए मृग दास मोल लिए खंजन खवास भए सफरीन फरसे॥
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और कौन भूलने का पाप करे उस आलम कवि को जिन्होंने श्रीकृष्ण के प्रति हृदयहारी काव्य रचा:
पालन खेलत नंद – ललन छलन बलि,
गोद लै ले ललना करति मोद गान हैं।
‘आलम’ सुकवि पल पल मया पावै सुख,
पोषति पियूष सु करत पय पान हैं॥
नंद सो कहति नंदरानी हो महर ! सुत
चन्द की सी कलनि बढ़त मेरे जान हैं।
आइ देख आनंद सो प्यारे कान्ह आनन में,
आन दिन आन घरी धान छवि आन हैं॥
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जसुदा के अजिर बिराजै मनमोहन जू,
अंग रज लागे छबि छाजै सुर पालकी।
छोटे-छोटे आछे पग घुंघरू घूमत घने,
जासो चित हित लागै सोभा बाल जाल की॥
आछी बतियां सुनावै छिनु छाड़िवो न भावै,
छाती सो छपावै लागै छोह वा दयाल की।
हेरि ब्रज नारि हारी बारि फेरि डारी सब,
‘आलम’ बलैया लीजै ऐसे नंदलाल की॥
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आप आज के दिन क्या उस शेख रंगरेजन को याद नहीं करेंगे, जिन्होंने लिखा:
जबतें गोपाल मधुबन की सिधारे भाई,
मधुबन भयो मधु दानव विषम सौं।
सेख कहे सारिका शिखंडी मंडरीक सुक,
मिलि के कलेस कीन्हीं कालिन्दी कदम सौं।
देह करे करठा करेजो लीन्हों चाहत हैं,
काग भई कोयल कगायो करे हम सौं।।
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और रसलीन? सैयद गुलाम नबी रसलीन तो रस और भक्ति में ही इतने लीन रहे कि न उनका कोई जवाब है और न ही उनके काव्य का.
रस को रूप बखानि कै वरनौ नौ रस नाम।
अब बरतन सिंगार कों जाही ते सब काम।।
तेहिं सिंगार को देवता कृष्ण लीजिओ जानि।
और बरनहूं कृष्ण लौं कृष्ण बरन पहिचानि।।
राधापद बाधा हरन साधा करि रसलीन।
अंग अगाधा लखन को कीनो मुकुट नवीन।।
तानसेन की पहचान वैसे तो एक महान संगीतकार के रूप में है, लेकिन वे बहुत योग्य कवि भी थे. उन्होंने श्रीकृष्ण के लिए रचा:
लंगर बटयार खेले होरी।
बाट घाट कोउ निकस न पावे पिचकारिन रंग बोरी।।
मैं जु गई जमुना जल भरने गह मुख मींजी रोरी।
तानसेन प्रभु नंद को दोरा बज्यो न मानत मोरी।।
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ए आज बांसुरी बजाई बन मघ कौन रंग ढंग फुकि फुकि।
सुनत श्रवण सुथि रहि नहि तन की भई हो
बावरी वृन्दावन दिशि हेरि भुकि भुकि॥
ब्रह्मा वेद पढ़त भूले शिव समाधि माह डोले
सुरनर मुनि मोहे देवांगना देखे लुकि लुकि॥
सप्त स्वर तीन ग्राम अकईस मूर्छना ले तानसेन प्रभु
मुरली बजावत बोलत मोर कोकला कुहकि कुहकि॥
और आपको अगर मुहम्मद याकूब सनम, सैयद फजलुल हसन, नबी बख्स फलक, शेख अलीजान, बेदम वारसी, काजिम, कासिम अली, अख्तर शिरानी, अफ़सोस, अब्दुल असर हफीज, दरिया खां, असरफ महमूद, दाना, नबी, नफीस खलीली, निजामी, फरहत की याद नहीं है तो आप कैसे जन्माष्टमी की अहमियत को समझ सकते हैं?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)