महाराष्ट्र: छत्रपति शिवाजी की मूर्ति ढही, प्रधानमंत्री ने आठ महीने पहले किया था उद्घाटन

दिसंबर 2023 में सिंधदुर्ग के राजकोट किले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्रपति शिवाजी की 35 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया था. इसके गिरने के बाद लोक निर्माण विभाग ने कहा है कि प्रतिमा का निर्माण घटिया गुणवत्ता का था और इस्तेमाल किए गए नट-बोल्ट जंग खाए हुए पाए गए.

महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग में स्थापित छत्रपति शिवाजी की 35 फुट ऊंची मूर्ति ढह गई. (फोटो साभार: X/@zoo_bear)

नई दिल्ली: महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग पुलिस ने सोमवार को छत्रपति शिवाजी महाराज की 35 फुट ऊंची मूर्ति ढहने के मामले में ठेकेदार जयदीप आप्टे और स्ट्रक्चरल कंसल्टेंट चेतन पाटिल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है.

प्रतिमा का अनावरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 4 दिसंबर, 2023 को महाराष्ट्र के सिंधदुर्ग के राजकोट किले में किया था.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सिंधुदुर्ग पुलिस ने कहा, ‘छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति गिरने की घटना में स्थानीय पुलिस ने ठेकेदार जयदीप आप्टे और स्ट्रक्चरल कंसल्टेंट चेतन पाटिल के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 109, 110, 125, 318 और 3(5) के तहत एफआईआर दर्ज की है.’

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, आरोपों में मिलीभगत, धोखाधड़ी और सार्वजनिक सुरक्षा को खतरे में डालना शामिल है. एफआईआर लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) की शिकायत के बाद दर्ज की गई है, जिसमें दावा किया गया है कि प्रतिमा का निर्माण घटिया गुणवत्ता का था और संरचना में इस्तेमाल किए गए नट और बोल्ट जंग खाए हुए पाए गए थे.

स्थानीय नागरिकों और पर्यटकों ने पहले भी प्रतिमा की खराब होती स्थिति को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की थी. 20 अगस्त को पीडब्ल्यूडी के मालवन डिवीजन के सहायक अभियंता की चेतावनी सहित इन चेतावनियों के बावजूद कोई निवारक कार्रवाई नहीं की गई.

पीडब्ल्यूडी ने कहा कि जंग खाए नट और बोल्ट प्रतिमा की स्थिरता के लिए खतरा पैदा करते हैं, फिर भी चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया गया.

सिंधुदुर्ग के संरक्षक मंत्री रवींद्र चव्हाण ने कहा, ‘प्रतिमा बनाने में इस्तेमाल किए गए स्टील में जंग लगना शुरू हो गया था. पीडब्ल्यूडी ने नौसेना के अधिकारियों को पत्र लिखकर उन्हें प्रतिमा में जंग लगने की जानकारी दी थी और उनसे उचित कदम उठाने का अनुरोध किया था.’

8 महीने पहले नौसेना दिवस पर अनावरण की गई यह मूर्ति सिंधुदुर्ग के नागरिकों को समर्पित थी. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय नौसेना ने सोमवार को एक बयान जारी कर घटना के कारणों की जांच करने का वादा किया.

उन्होंने कहा, ‘राज्य सरकार और संबंधित विशेषज्ञों के साथ नौसेना ने इस दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना के कारणों की तुरंत जांच करने और प्रतिमा की मरम्मत, पुनर्स्थापना और उसे जल्द से जल्द बहाल करने के कदम उठाने के लिए एक टीम को तैनात किया है.’

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि तेज हवाओं के कारण हुई क्षति के कारण प्रतिमा गिर गई. उन्होंने यह भी पता लगाने का वादा किया कि प्रतिमा क्यों गिरी. शिंदे ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार इस घटना के पीछे के कारणों का पता लगाएगी और उसी स्थान पर छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा को फिर से स्थापित करेगी.

उन्होंने कहा, ‘घटना दुर्भाग्यपूर्ण है. यह प्रतिमा नौसेना द्वारा स्थापित की गई थी. उन्होंने इसे डिजाइन भी किया था. लेकिन लगभग 45 किमी/घंटा की तेज हवाओं के कारण यह गिर गई और क्षतिग्रस्त हो गई.’

घटना के तुरंत बाद लोक निर्माण मंत्री रवींद्र चव्हाण ने घटनास्थल का दौरा किया और मुख्यमंत्री शिंदे के आदेश के तहत प्रतिमा के गिरने के कारणों की जांच करेंगे. भारतीय नौसेना ने भी प्रतिमा को बहाल करने और प्रतिमा के गिरने की जांच में राज्य बलों को मदद देने का वादा किया है.

विपक्षी दलों ने निशाना साधा

वहीं, विपक्षी दलों ने प्रतिमा गिरने की घटना को लेकर सरकार की आलोचना की और इसके लिए ठेकेदार को जिम्मेदार ठहराने की मांग की.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) की सांसद सुप्रिया सुले ने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा कि, ‘इस प्रतिमा को स्थापित करने का काम ठाणे जिले के एक ठेकेदार को सौंपा गया था… हम मांग करते हैं कि इस व्यक्ति और उनके संगठन को सभी विभागों द्वारा काली सूची में डाला जाए… इस प्रतिमा के काम की गुणवत्ता इतनी खराब क्यों थी, यह निर्धारित करने और अन्य संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए गहन जांच आवश्यक है.’

शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत ने भी इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करते हुए कहा, ‘लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए जिस जल्दबाजी में प्रतिमा का उद्घाटन किया गया, मुझे लगता है कि यह बहुत ही खराब तरीके से किया गया. चुनाव और वोट के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज का अपमान किया गया. मोदी जी के हाथों से इसकी स्थापना से पता चलता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ऐसा नहीं चाहते थे.’