ज़मानत देने वालों की कमी के कारण ज़मानत प्रभावित नहीं होनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला एक ऐसे शख़्स की याचिका पर दिया, जिन्हें उनके ख़िलाफ़ विभिन्न राज्यों में दर्ज 13 मामलों में ज़मानत मिलने और ज़मानत राशि होने के बावजूद पर्याप्त ज़मानतदार न जुटा पाने की वजह से जेल में रहना पड़ा था.

(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि जमानतदारों की कमी की वजह से किसी की जमानत प्रभावित नहीं होनी चाहिए.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, गिरीश गांधी नामक व्यक्ति के लिए समस्या यह थी कि जमानत राशि बहुत अधिक थी और जमानत देने के लिए बहुत कम लोग मौजूद थे.

गिरीश गांधी को आपराधिक विश्वासघात, धोखाधड़ी और आपराधिक धमकी के 13 अलग-अलग मामलों में जमानत मिल गई थी, लेकिन उन्हें अपनी जमानत के लिए जमानतदार के तौर पर सिर्फ़ चार लोग ही मिल पाए. बाकी 11 एफआईआर के लिए जमानतदार के तौर पर हस्ताक्षर करने के लिए 22 अन्य लोगों को न ढूंढ पाने के कारण उन्हें जेल में ही रहना पड़ा.

व्यक्ति की दुविधा को समझते हुए जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने हाल ही में दिए गए एक फैसले में कहा कि जिन 13 मामलों में उन्हें जमानत मिली है, उन सभी के लिए जमानत के लिए वही चार लोग पर्याप्त हैं.

यह फैसला जस्टिस विश्वनाथन ने लिखा, जिनका कहना था कि गांधी को जमानत के लिए पर्याप्त लोग न जुटा पाने के कारण जेल में नहीं रहना चाहिए. उनकी पत्नी शारीरिक रूप से विकलांग हैं, उनका एक छोटा बेटा है और उनकी देखभाल करने के लिए एक बूढ़ी मां है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जज जीवन की कठोर वास्तविकताओं से आंख नहीं मूंद सकते. उनमें से एक यह है कि बहुत ही कम लोग किसी दूसरे व्यक्ति के लिए ज़मानत देने का जोखिम उठाएंगे.

जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, ‘चाहे किसी व्यक्ति को ऋण लेनदेन के लिए गारंटर के रूप में खड़ा करना हो या आपराधिक कार्यवाही में जमानतदार के रूप में- किसी व्यक्ति के लिए विकल्प बहुत सीमित हैं. यह काम अक्सर कोई करीबी रिश्तेदार या पुराना दोस्त ही करता है.’

शीर्ष अदालत ने जोड़ा कि आपराधिक कार्यवाही के संदर्भ में तो विकल्प और भी सीमित हो जाएगा.

जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, ‘यह दायरा और भी छोटा हो सकता है क्योंकि आम प्रवृत्ति यह है कि अपनी साख बचाने के लिए रिश्तेदारों और दोस्तों को आपराधिक कार्यवाही के बारे में नहीं बताया जाता. ये हमारे देश में जीवन की कठोर वास्तविकताएं हैं और अदालत के रूप में हम इनसे नजर नहीं फेर सकते.’

गिरीश गांधी जैसे मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायाधीशों को एक ‘उचित और आनुपातिक’ आदेश पारित करना चाहिए जो संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) के तहत व्यक्ति के मौलिक अधिकार की रक्षा करेगा और साथ ही उसकी उपस्थिति की गारंटी भी देगा. ऐसा आदेश क्या होना चाहिए, यह फिर से प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा.

जस्टिस विश्वनाथन ने स्पष्ट किया कि गिरीश गांधी को विभिन्न राज्यों में दर्ज सभी 13 मामलों में एक ही व्यक्ति को जमानत देने की अनुमति दी गई है.

उन्होंने कहा, ‘जमानत देना और उसके बाद अत्यधिक और बोझिल शर्तें लगाना बाएं हाथ से वह छीनना है जो दाएं हाथ से दिया गया है… जमानत पर रिहा हुए आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जमानतदार जरूरी हैं. साथ ही, जहां अदालत को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है जहां जमानत पर रिहा आरोपी कई मामलों में जमानतदार नहीं ढूंढ पाता है, वहां जमानतदारों को पेश करने की जरूरत को अनुच्छेद 21 के तहत उसके मौलिक अधिकारों के साथ संतुलित करने की भी आवश्यकता है.’