जस्टिस रोहिणी आयोग के सदस्य ने जाति जनगणना और एससी/एसटी आरक्षण वर्गीकरण का समर्थन किया

ओबीसी के वर्गीकरण पर सरकार द्वारा गठित रोहिणी आयोग के सदस्य जेके बजाज ने एससी/एसटी कोटा वर्गीकरण का समर्थन करते हुए कहा कि व्यक्तिगत रूप से वे जाति जनगणना के पक्ष में हैं. उन्होंने जोड़ा कि चूंकि 50% दाखिले और नियुक्तियां जाति के आधार हो रहे हैं, इसलिए डेटा न होना ख़ुद को अंधेरे में रखने जैसा है.

जस्टिस रोहिणी आयोग के सदस्य जेके बजाज. (फोटो साभार: यूट्यूब)

नई दिल्ली: अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के वर्गीकरण पर सरकार द्वारा गठित जस्टिस जी.  रोहिणी आयोग के एक सदस्य ने न केवल जाति जनगणना का समर्थन किया है, बल्कि इस महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण के वर्गीकरण का भी समर्थन किया है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जेके बजाज का जाति जनगणना के प्रति समर्थन भले ही निजी राय हो, लेकिन यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वे सरकार के साथ निकटता रखते हैं और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) के अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर हैं.

बजाज को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का भी करीबी माना जाता है क्योंकि उनकी पुस्तक ‘मेकिंग ऑफ ए हिंदू पैट्रियट: बैकग्राउंड ऑफ गांधीजीज हिंद स्वराज’ का विमोचन 2021 में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने किया था.

बजाज ने कहा, ‘व्यक्तिगत रूप से मैं जाति जनगणना के पक्ष में हूं. चूंकि हम अपने 50% दाखिले और नियुक्तियां जाति के आधार पर कर रहे हैं, इसलिए डेटा न होना खुद को अंधेरे में रखने जैसा है.’

हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि रोहिणी आयोग ने भी जनगणना का समर्थन किया है या नहीं. पिछले साल अगस्त में प्रस्तुत किए जाने के बाद से आयोग की रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति कार्यालय में है और बजाज ने इसकी सामग्री की पुष्टि करने से इनकार कर दिया.

विपक्ष जहां इस तरह की जनगणना की मांग को लेकर एकजुट है, वहीं भारतीय जनता पार्टी असमंजस में है क्योंकि लोक जनशक्ति पार्टी जैसे उसके सहयोगी इसका समर्थन कर रहे हैं, लेकिन अन्य इसे पूरे देश में लागू करने का विरोध कर रहे हैं.

बजाज ने कहा, ‘यह करना बहुत आसान काम नहीं है. ओबीसी जातियों के लिए एक केंद्रीय और राज्य सूची है, लेकिन सरकार को अगड़ी जातियों की सूची भी तैयार करनी होगी, क्योंकि उस सूची में भी कई ऐसे हैं जो ओबीसी का दर्जा चाहते हैं. उदाहरण के लिए आपके पास महाराष्ट्र में मराठों का मामला है.’

उन्होंने इस बात को भी पूरी तरह से खारिज कर दिया कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जाति प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर सरकार को बैकफुट पर ला दिया है. उन्होंने कहा, ‘जाति जनगणना राहुल गांधी से भी बड़ी मांग है. समाजवादी दल भी इसकी मांग कर रहे हैं और भाजपा में भी कई लोग इसे चाहते हैं. कांग्रेस ने इसे अभी उठाया है.’

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्यों को एससी और एसटी श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण (सब-क्लासीफिकेशन) करने की अनुमति दी थी ताकि इन श्रेणियों के भीतर सबसे पिछड़े समुदायों को निश्चित उप-कोटा के माध्यम से प्रतिनिधित्व मिल सके.

हालांकि, फैसले के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एससी/एसटी कोटा में आय आधारित उप-वर्गीकरण स्थापित करने के अदालत के सुझाव को खारिज कर दिया था. सरकार ने कहा था कि बाबा साहेब आंबेडकर के संविधान के अनुसार, एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है. इसलिए कैबिनेट का निर्णय यह है कि आरक्षण बाबा साहेब आंबेडकर के संविधान के अनुसार होना चाहिए.

लेकिन बजाज को अदालत के आदेश में दम नज़र आता है. बजाज ने कहा, ‘दलितों और आदिवासियों में उप-वर्गीकरण की ज़रूरत ओबीसी से भी ज़्यादा है.’

उन्होंने कहा, ‘मैंने जो डेटा देखा है, उससे पता चलता है कि एससी/एसटी में जाति दर जाति काफ़ी अंतर है.’

रोहिणी आयोग के सदस्य ने सरकार को लिखा है कि नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का लाभ उठाने वाले हर व्यक्ति की जाति दर्ज की जाए. उन्होंने कहा, ‘कोटा इस्तेमाल के आंकड़ों से पता चलेगा कि किस जाति को कितना मिला है. यह जनसंख्या के आंकड़ों से ज्यादा महत्वपूर्ण होगा और समग्रता में दर्ज होने पर यह हमारी आरक्षण प्रणाली को न्यायसंगत और समावेशी बनाने के लिए महत्वपूर्ण होगा.’

वर्तमान में सरकारी रिकॉर्ड केवल कोटा के माध्यम से किए गए प्रवेश और नियुक्तियों की संख्या दिखाते हैं, जाति के आधार पर विभाजन नहीं देते हैं. रोहिणी आयोग ने 2015 से 2018 के बीच केंद्रीय शिक्षा संस्थानों में ओबीसी कोटे के तहत 100,000 प्रवेश और केंद्र सरकार में 1,30,000 भर्तियों से जुड़े आंकड़ों का अध्ययन किया.

इसमें पाया गया कि लाभ का एक चौथाई हिस्सा सिर्फ 10 ओबीसी जातियों को मिला, एक चौथाई हिस्सा 38 जातियों को, एक तिहाई हिस्सा 102 जातियों को और एक चौथाई से भी कम (22.3%) हिस्सा 506 जातियों को मिला. चौंका देने वाली बात यह है कि 983 जातियों को कोई लाभ नहीं मिला, जबकि 994 जातियों को सिर्फ 2.68% लाभ मिला.