नई दिल्ली: चारधाम सड़क परियोजना के तहत गंगोत्री–धरासू मार्ग के चौड़ीकरण को तैयार सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के ख़िलाफ़ उत्तरकाशी के निवासियों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है. बीआरओ पर वन मंजूरी के लिए दिए आवेदन में गलत और भ्रामक जानकारी पेश करने का आरोप लगा है.
ध्यान रहे गंगोत्री–धरासू मार्ग भागीरथी इको–सेंसिटिव ज़ोन में आता है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, निवासी विशेष रूप से इस बात से चिंतित हैं कि चार धाम परियोजना को लेकर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) की सिफ़ारिशों की अनदेखी की गई है.
एचपीसी ने अपनी सिफ़ारिशों में कहा था कि भागीरथी इको–सेंसिटिव ज़ोन में सड़क चौड़ीकरण का काम विस्तृत पर्यावरण प्रभाव आकलन और नुक़सान (पर्यावरण क्षति) को कम करने के तमाम उपायों को अपनाने के बाद ही किया जाना चाहिए. इसके अलावा देवदार के पेड़ों को काटने से बचना चाहिए.
14 दिसंबर, 2021 को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में भी रवि चोपड़ा की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशों का उल्लेख किया गया था.
स्थानीय संगठन ने पर्यावरण मंत्रालय को लिखा पत्र
उत्तरकाशी और आसपास के क्षेत्रों के निवासियों के एक संगठन ‘हिमालय नागरिक दृष्टि मंच’ ने मंगलवार (27 अगस्त) को पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर भागीरथी इको–सेंसिटिव ज़ोन में सड़क चौड़ीकरण के पर्यावरणीय प्रभाव पर चिंता जताई.
उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश और समिति की सिफारिशों का उल्लंघन करने वाले दो वन मंजूरी प्रस्तावों को तत्काल रद्द करने की मांग की है.
पत्र में कहा गया है, ‘वर्तमान उत्तरकाशी बीआरओ कमांडिंग ऑफिसर और प्रभागीय वन अधिकारी को निलंबित करें, जो गलत और भ्रामक जानकारी देकर उत्तराखंड सरकार और भारत सरकार को गुमराह करने के लिए जिम्मेदार हैं…’
किस तरह की ग़लत जानकारी फैलाने का है आरोप?
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, चारधाम सड़क परियोजना के तहत बीआरओ भैरोंघाटी से झल्ला के बीच एनएच-34 को चौड़ा करना चाहता है. इसके लिए वन मंज़ूरी आवश्यक है. बीआरओ ने इस संबंध में आवेदन किया है, जिसमें कुछ विसंगतियां पाई गई हैं. अमुक आवेदन मंत्रालय की परिवेश वेबसाइट पर उपलब्ध है.
आवेदन में कहा गया है कि यह खंड (जिससे गुजरने वाली सड़क का चौड़ीकरण करना है) संरक्षित क्षेत्र या पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र में नहीं आता है. लेकिन सच्चाई यह है कि वह खंड भागीरथी इको–सेंसिटिव ज़ोन में आता है.
आवेदन में 41.92 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्जन की मांग की गई है और काटे जाने वाले पेड़ों के विवरण से पता चलता है कि सैकड़ों देवदार के पेड़ों को हटाना होगा.
स्थानीय लोगों में रोष
भटवारी की पूर्व ग्राम प्रधान और उद्यमी पुष्पा चौहान ने अख़बार से बातचीत में कहा, ‘हमें बीआरओ द्वारा वन मंजूरी के लिए किए गए आवेदनों का पता चला है. सबसे पहले, पारिस्थितिकी–संवेदनशील क्षेत्र में सड़क चौड़ीकरण की पूरी परियोजना रवि चोपड़ा समिति के निष्कर्षों और चेतावनियों का उल्लंघन करती है. दूसरी बात यह कि बीआरओ ने दावा किया है कि ये हिस्से पारिस्थितिकी–संवेदनशील क्षेत्र में नहीं हैं. यह कैसे संभव है? हम भी चाहते हैं कि हमारी सड़क अच्छी स्थिति में हो, लेकिन हम कीमती जंगलों को और नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते. यह क्षेत्र भूस्खलन के लिए बेहद संवेदनशील है. स्थानीय लोग पहले से ही पीड़ित हैं. हम अपनी चिंताओं को लेकर जिलाधिकारी से भी मिले हैं.’
उत्तरकाशी के ही निवासी दीपक रमोला ने कहा, ‘मैं भैरोंघाटी से झाला तक के इलाके का सर्वेक्षण कर रहा हूं और पाया है कि देवदार के कई पेड़ों को काटने के लिए चिह्नित किया गया है. अन्य पेड़ों को भी चिह्नित किया गया है. क्या हमें वाकई इतने सारे पेड़ों को खोने की ज़रूरत है? इस क्षेत्र की संवेदनशील पारिस्थितिकी पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा.’
केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने 7 अगस्त को संसद में कहा था कि चारधाम मार्ग का अंतिम 100 किलोमीटर लंबा हिस्सा (जो भागीरथी इको–सेंसिटिव ज़ोन से होकर गुजरेगा) कम से कम 10 मीटर की चौड़ा होगा.
मंत्री ने स्वीकार किया था कि इस सड़क पर भूस्खलन का खतरा है. लेकिन फिर उन्होंने सीमा सुरक्षा का हवाला देते हुए कहा था कि यह सड़क भारत–चीन सीमा से जुड़ती है, रक्षा उपकरणों को ले जाने के लिए सड़क पर्याप्त चौड़ी होनी चाहिए.
पेड़ों के नुकसान की भरपाई के बारे में गडकरी ने कहा, ‘पेड़ों को कोई नुकसान नहीं होगा. यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह चीन की सीमा पर है. हमें ऐसी सड़क चाहिए होगी, जिस पर मशीनरी और ट्रकें चल सकें. यह बहुत संवेदनशील मामला है. हम पर्यावरण, राष्ट्रीय सुरक्षा, दोनों का ख़्याल रखेंगें और तीर्थयात्रियों के लिए भी सुविधा प्रदान करेंगे.’