नई दिल्ली: केंद्र सरकार के कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था केंद्रीय सचिवालय सेवा (सीएसएस) फोरम ने गुरुवार को कहा कि वह आखिरी सांस तक पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) के लिए लड़ेगी. फोरम ने कहा, ‘ओपीएस कोई विशेषाधिकार नहीं है, यह हमारा अधिकार है.’
द हिंदू के मुताबिक, यह बयान एनडीए सरकार द्वारा 24 अगस्त को एकीकृत पेंशन योजना (यूपीएस) लागू करने के निर्णय के बाद आया है, जिसके तहत सरकारी कर्मचारियों को उनके अंतिम वेतन का 50% आजीवन मासिक लाभ के रूप में दिया जाएगा. कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति कोष के लिए मूल वेतन का 10% योगदान करना होगा. यह योजना कर्मचारियों को महंगाई के अनुरूप समय-समय पर महंगाई राहत में वृद्धि का भी आश्वासन देती है.
वर्तमान में राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस), जिसने 1 जनवरी 2004 को ओपीएस की जगह ली थी, सभी केंद्र सरकार के कर्मचारियों पर लागू है. 1 अप्रैल 2025 से कर्मचारियों के पास यह चुनने का विकल्प होगा कि वह एनपीएस में बने रहना चाहते हैं या यूपीएस के तहत पेंशन लाभ लेना चाहते हैं.
2004 के बाद की सेवानिवृत्ति योजनाओं के विपरीत, ओपीएस में कर्मचारी से कोई योगदान नहीं लिया जाता है.
सीएसएस फोरम के महासचिव आशुतोष मिश्रा ने कहा, ‘एनपीएस और यूपीएस दोनों ही सरकारी कर्मचारियों के लिए अच्छे नहीं हैं. सेवानिवृत्ति के समय, एनपीएस में सुनिश्चित पेंशन का कोई प्रावधान नहीं है लेकिन एकमुश्त राशि के रूप में 60 फीसदी भुगतान का विकल्प है. यूपीएस में 30 से 35 साल की सेवा के बाद भी किसी भी उचित कोष का प्रावधान नहीं है. सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद दुर्घटनापूर्ण घटनाओं के मामले में, कर्मचारियों को यूपीएस के माध्यम से शुरू किया गया अपना स्वयं का अंशदान भी नहीं मिल सकता है.’
उन्होंने कहा कि एक असुरक्षित कर्मचारी कभी भी संगठन और देश के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर सकता.
उन्होंने कहा, ‘सीएसएस फोरम का मानना है कि ओपीएस को फिर से लागू करना कर्मचारियों और सरकार दोनों के लिए फायदेमंद होगा. एनपीएस में मूल वेतन का 10% हिस्सा काटा जा रहा है, जो यूपीएस में भी काटा जाएगा. चूंकि ओपीएस में ऐसी कटौती का प्रावधान नहीं है, इसलिए इससे निश्चित रूप से बाजार और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा… हम सभी को पूरा भरोसा है कि प्रधानमंत्री जल्द ही सरकारी कर्मचारियों के लिए ओपीएस पर विचार करेंगे.’