नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (4 सितंबर) को मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े से एक मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए आरोपी को मामले से जुड़े दस्तावेज़ न दिखाने को लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को फटकार लगाई है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक,सर्वोच्च अदालत में जस्टिस अभय एस. ओका, जस्टिस ए. अमानुल्लाह और जस्टिस एजी मसीह की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही थी कि क्या कोई आरोपी प्री-ट्रायल चरण में उन दस्तावेज़ों को प्राप्त करने का हकदार है जो ईडी के कब्जे में हैं, लेकिन मनी लॉन्ड्रिंग मामलों को लेकर एजेंसी द्वारा उन पर भरोसा नहीं किया गया है.
पीठ ने एजेंसी से पूछा कि क्या किसी आरोपी के पक्ष वाले दस्तावेज़ों को न देना संविधान के तहत दिए गए आरोपी के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होगा. ऐसे बहुत ही गंभीर मामले हैं, जिनमें जमानत दी जाती है, लेकिन आजकल मजिस्ट्रेट केसों में लोगों को जमानत नहीं मिल रही.
पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से कहा, ‘हमें परेशानी इस बात से होती है कि जब एक ठोस दस्तावेज है, तो आरोपी को केवल तकनीकी आधार पर दस्तावेज देने से मना किया जा सकता है. सब कुछ ट्रांसपेरेंट क्यों नहीं हो सकता?’
बेंच ने आगे कहा कि क्या ये संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं करेगा, जो जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है.
अदालत ने आगे जोड़ा, ‘समय बदल रहा है. हमारा उद्देश्य न्याय करना है. क्या हम इतने कठोर हो जाएंगे कि एक व्यक्ति जो केस का सामना कर रहा है, उसे मामले से जुड़े दस्तावेज़ न दिखाएं. अब, कानून में प्रगति हुई है, संविधान की व्याख्या आगे बढ़ी है, क्या अब हम कह सकते हैं कि एक दस्तावेज़ जो अस्तित्व में तो है, लेकिन कुछ तकनीकी कारणों के चलते आपको यह नहीं मिलेगा?’
इस पर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल राजू ने कहा कि किसी आरोपी को केवल आरोप तय होने के बाद और मुकदमा शुरू होने तक दस्तावेज़ों पर भरोसा न करने का अधिकार है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि आरोपियों को सभी दस्तावेज़ सौंपने से मामले की जांच में बाधा आएगी.
हालांकि, अदालत ने उनसे पूछा कि एक आरोपी जमानत मांगते समय अपने केस का बचाव कैसे कर सकता है यदि उसके पास वे दस्तावेज़ नहीं हैं जो उसके पक्ष में हैं.