श्रीनगर: केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दावा किया है कि साल 2016 में केंद्र सरकार ने कश्मीरी अलगाववादियों के साथ बातचीत करने की कोशिश की थी. इसके लिए सरकार ने विपक्ष के चार सांसदों को भी भेजा था, लेकिन ये प्रयास सफल नहीं हुआ.
राजनाथ सिंह के इस बयान के एक दिन बाद उदारवादी हुर्रियत अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक ने बताया कि वह तब ‘हैरान’ रह गए थे कि विपक्षी नेताओं द्वारा मिलने की पहल केंद्र सरकार के आदेश पर की थी.
मालूम हो कि यह पहली बार है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने स्वीकार किया है कि वह सत्ता में अपने पहले कार्यकाल के दौरान सार्वजनिक रूप से कश्मीरी अलगाववादी नेताओं के खिलाफ कड़े रुख के बावजूद हुर्रियत से बातचीत की कोशिश में लगी थी.
सिंह का बयान कश्मीर में अलगाववादी भावना को शांत करने के लिए भाजपा के एक व्यापक कदम का हिस्सा माना जा रहा है, खासतक तब, जब जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) के कुछ पूर्व और वर्तमान सदस्य आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने को तैयार हैं. हालांकि ये संगठन आतंकवाद विरोधी कानून के तहत प्रतिबंधित है.
रविवार (8 सितंबर) को रामबन विधानसभा क्षेत्र में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि साल 2016 में बुरहान वानी मामले के बाद केंद्र सरकार ‘शांति वार्ता’ की पेशकश के साथ हुर्रियत के पास पहुंची थी.
ज्ञात हो कि बुरहान वानी की मौत के बाद घाटी में अशांति का माहौल पैदा हो गया था, जिसके चलते कई लोगों को जान गंवानी पड़ी थी. सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई के कारण दर्जनों कश्मीरी नागरिक मारे गए थे, जिनमें अधिकतर युवा थे.
अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद बीच-बीच में नजरबंद किए गए मीरवाइज ने कहा कि हुर्रियत ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय से केंद्र सरकार से साथ बातचीत के ‘हर अवसर में हिस्सा लिया’ है.
हालांकि, हुर्रियत के एक प्रवक्ता ने सोमवार (9 सितंबर) को एक बयान में राजनाथ सिंह की टिप्पणी का जवाब देते हुए मीरवाइज के हवाले से कहा कि जम्मू में कोई भी नेता व्यक्तिगत रूप से केंद्र सरकार के साथ बातचीत के संबंध में निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है.
तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से हुर्रियत नेताओं से मुलाकात करने की कोशिश में चार विपक्षी सांसदों – भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी, सीपीआई नेता डी. राजा, जनता दल (यू) के नेता शरद यादव और राष्ट्रीय जनता दल के जय प्रकाश नारायण शामिल थे.
दिलचस्प बात यह है कि राजनाथ सिंह ने साल 2016 में विपक्षी सांसदों के ऐसे किसी भी प्रयास में भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार की भागीदारी से इनकार किया था.
ज्ञात हो कि सांसदों के साथ यह बैठक 2016 में हिज्बुल मुजाहिदीन के ऑपरेशनल कमांडर वानी की हत्या के बाद भड़की हिंसा के दौरान होने वाली थी, तब केंद्र सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा अपने चरम पर था. उसी समय, कश्मीर में हुर्रियत नेतृत्व एक आंतरिक संकट और जन आंदोलन से निपटने के अपने तरीके को लेकर जनता की आलोचना का सामना कर रहा था।
कश्मीर में 26 सदस्यीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल चार विपक्षी सांसद दिवंगत हुर्रियत नेता सैयद अली गिलानी के श्रीनगर स्थित घर के बाहर नजर आए थे. हालांकि, जब सांसद पत्रकारों के साथ वहां पहुंचे तो हुर्रियत के उग्रवादियों ने खुद ही आवास का मुख्य द्वार बंद करके इस प्रयास को विफल कर दिया।
2016 की घटनाओं को याद करते हुए हुर्रियत प्रवक्ता ने कहा कि मीरवाइज, जो उस समय श्रीनगर की चश्मा शाही सब-जेल में कैद थे, यह जानकर हैरान रह गए थे कि विपक्षी सांसदों की ये पहल भारत सरकार के आदेशानुसार थी.
हुर्रियत प्रवक्ता ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने मीरवाइज से विपक्षी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल से मिलने के लिए एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने बतौर पीडीपी के अध्यक्ष, न कि मुख्यमंत्री के रूप में उन सभी से मिलने का अनुरोध किया था.
हुर्रियत प्रवक्ता ने कहा कि मुफ्ती के पत्र के बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी उप जेल गए थे और उन्हें बताया था कि ‘सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल’ हुर्रियत नेतृत्व से मिलना चाहता है.
मीरवाइज ने द वायर को बताया, ‘मैंने ओवैसी साहब से अनुरोध किया कि वे भारत सरकार से बात करने का निर्णय लेने से पहले विभिन्न जेलों में बंद हुर्रियत नेतृत्व को एक-दूसरे से मिलने और स्थिति पर चर्चा करने की इजाज़त दें. हम क्राइसिस मैनेजमेंट की किसी और कोशिश में शामिल नहीं होना चाहते थे.’
मीरवाइज ने आगे कहा कि उन्होंने ओवैसी से आग्रह किया था कि सरकार को सभी अलगाववादी नेताओं को रिहा करना चाहिए, जो या तो घर में नजरबंद हैं या जेलों में बंद हैं, और उन्हें बातचीत के प्रस्ताव पर फैसलालेने की अनुमति देनी चाहिए क्योंकि वे व्यक्तिगत रूप से इस पर ‘निर्णय लेने की स्थिति में नहीं हैं.’
प्रवक्ता ने मीरवाइज के हवाले से कहा, ‘ओवैसी इस पर सहमत हुए और कहा कि वह इस अनुरोध को सरकार तक पहुंचाएंगे और चले गए. उसके बाद इस बारे में कुछ भी नहीं हुआ.’
प्रवक्ता ने कहा कि हुर्रियत ने बार-बार कश्मीर समस्या के समाधान के रूप में जम्मू-कश्मीर के लोगों की राजनीतिक आकांक्षाओं और भावनाओं के साथ जुड़ाव और बातचीत का आह्वान किया है.
प्रवक्ता ने कहा, ‘हुर्रियत ने भारत सरकार द्वारा दिए गए बातचीत के हर अवसर में भाग लिया है, यहां तक कि अपने जोखिम और मीरवाइज और अन्य हुर्रियत नेताओं और उनके परिवारों द्वारा इसकी भारी कीमत चुकाने के बावजूद भी. हमारा दृढ़ विश्वास है कि यही जम्मू-कश्मीर में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने और लोगों के लिए समृद्धि सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका है. इससे हुर्रियत को कोई व्यक्तिगत फायदा या शक्ति नहीं चाहिए.’
ज्ञात हो कि मीरवाइज के पिता मौलवी मोहम्मद फारूक को केंद्र सरकार के प्रति खासा नरम माना जाता था. उनकी 21 मई, 1990 को हिजबुल मुजाहिदीन संगठन से जुड़े बंदूकधारियों द्वारा उनके आवास पर हत्या कर दी गई थी. हत्या के मामले में एक आतंकवादी को दोषी ठहराया गया था. मीरवाइज के आवास पर पहले भी हमला किया जा चुका है.
उल्लेखनीय है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आगामी जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के स्टार प्रचारकों में से एक हैं. इससे पहले चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने कहा था कि उनके द्वारा ‘निर्दोष और नाबालिग बच्चों’ की रिहाई में मदद की थी, जिन पर 2016-2017 में कश्मीर में नागरिक अशांति के दौरान आगजनी के विभिन्न मामलों में केस दर्ज किया गया था.
उन्होंने कहा, ‘लोगों ने निर्दोष और नाबालिग बच्चों के खिलाफ मामले वापस लेने की मांग की थी, जिस पर मैंने महबूबा मुफ़्ती से बात की और उनसे उन्हें रिहा करने का आग्रह किया. हमने सब कुछ किया लेकिन जिस तरह से उन्हें (हुर्रियत नेताओं को) प्रतिक्रिया देनी चाहिए थी, उन्होंने नहीं दी.’
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