मद्रास हाईकोर्ट में विवादित जस्टिस गौरी को स्थायी जज बनाने की सिफ़ारिश, हेट स्पीच का लगा था आरोप

फरवरी 2023 में मद्रास हाईकोर्ट में जस्टिस विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति के बाद उनके कथित नफ़रत भरे भाषणों के वीडियो सामने आए थे और भाजपा से जुड़ाव के दावे किए गए थे. अब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हें स्थायी जज बनाने की सिफ़ारिश की है.

मद्रास हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक/@Chennaiungalkaiyil)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने मंगलवार (10 सितंबर) को विवादों का केंद्र रहीं जस्टिस लक्ष्मना चंद्र विक्टोरिया गौरी सहित मद्रास हाईकोर्ट के पांच अतिरिक्त जजों को उनके अच्छे प्रदर्शन का हवाला देते हुए स्थायी जज बनाने की सिफारिश की है.

रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी 2023 में जस्टिस विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति उनके दक्षिणपंथी झुकाव के चलते सुर्खियों में आई थी. उस दौरान उनके कथित नफरत भरे भाषणों वाले कुछ वीडियो सामने आए थे, जिनके आधार पर उन्हें अयोग्य ठहराने की मांग वाली एक याचिका भी दाखिल हुई थी और मामला राज्यसभा में भी उठाया गया था.

मालूम हो कि जस्टिस गौरी के अलावा जिन चार जजों की सिफारिश कॉलेजियम द्वारा की गई है, उनमें जस्टिस रामचंद्रन कलैमथी, जस्टिस के.  गोविंदराजन थिलकावडी, जज जस्टिस पीबी बालाजी और जस्टिस केके रामकृष्णन के नाम शामिल हैं.

इस कॉलेजियम में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई शामिल थे.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा हस्ताक्षरित आधिकारिक प्रस्ताव में कहा गया है,  ‘…हमने अपने एकमात्र सलाहकार- जज की राय और समिति की रिपोर्ट सहित रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री की जांच और मूल्यांकन किया है. उपरोक्त प्रस्ताव के सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, कॉलेजियम का मानना ​​है कि (i)जस्टिस श्रीमती लक्ष्मना चंद्रा विक्टोरिया गौरी, (ii) श्री जस्टिस पिल्लईपक्कम बहुकुटुम्बी बालाजी, (iii) श्री जस्टिस कंधासामी कुलंदावेलु रामकृष्णन, (iv) रामचंद्रन कलाईमथी और v) श्रीमती जस्टिस के. गोविंदराजन थिलकावडी अतिरिक्त न्यायाधीश से स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए फिट और उपयुक्त हैं.’

समाचार एजेंसी पीटीआई ने बताया कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और गवर्नर आरएन रवि ने इस सिफारिश पर सहमति जताई है.

जस्टिस गौरी को लेकर विवाद

पिछले साल फरवरी में जस्टिस गौरी की उच्च न्यायालय में पदोन्नति के खिलाफ दायर एक याचिका में दावा किया गया था कि उन्होंने मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ नफरत भरे भाषण दिए थे. याचिका में उनकी पदोन्नति को रद्द करने की मांग की गई थी. इसमें ये भी कहा गया था कि गौरी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की महिला मोर्चा की पूर्व महासचिव थीं.

द टेलीग्राफ के मुताबिक, जस्टिस गौरी के खिलाफ तीन संयुक्त याचिकाकर्ताओं अन्ना मैथ्यू, सुधा रामलिंगम और डी. नागासैला ने इस आधार पर उन्हें अयोग्य ठहराने की मांग की थी कि उनके नफरत भरे भाषण और भाजपा के साथ कथित निकटता उन्हें अनुच्छेद 217(2)(बी) के तहत ‘बिना किसी डर, एहसान और स्नेह या द्वेष’ के न्याय देने से रोकती है.

तृणमूल कांग्रेस के पूर्व सांसद जवाहर सरकार ने भी उनके खिलाफ जातिवादी और अल्पसंख्यक विरोधी टिप्पणी करने के आरोपों के बीच राज्यसभा में जस्टिस गौरी की नियुक्ति पर सवाल उठाया था.

हालांकि, सीजेआई चंद्रचूड़ ने पिछले साल जस्टिस गौरी की नियुक्ति का बचाव करते हुए कहा था, ‘मुझे नहीं लगता कि हमें किसी व्यक्ति को केवल उनके विचारों के आधार पर वकील के रूप में नियुक्त करने में कोई हिचकिचाहट होनी चाहिए, क्योंकि मेरा मानना ​​है कि निर्णय लेने के हमारे इस पेशे में कुछ ऐसा है कि आप एक बार यहां आ जाते हैं, तो न्यायिक कार्यालय आपको निष्पक्ष बना देता है.’