कुशीनगर: नवजात को अस्पताल से ले जाने के लिए बच्चे को बेचने वाले दंपत्ति क़र्ज़ के जाल का शिकार हैं

कुशीनगर के लक्ष्मीना और हरेश ने उनके नवजात शिशु को अस्पताल से 'छुड़ाने' के लिए क़रीब ढाई साल के बेटे राजा को बेच दिया था. उसके वापस मिल जाने से वे ख़ुश तो हैं लेकिन भविष्य की चिंता उनके चेहरे पर है. उन्हें नहीं मालूम कि वे अपनी संतानों का पालन-पोषण कैसे करेंगे.

हरेश और लक्ष्मीना अपने बच्चों के साथ. (सभी फोटो: मनोज सिंह)

कुशीनगर: ‘बेटी का जन्म हो गया तो अस्पताल वाली ने कहा कि चार हजार जमा होगा तभी घर जा पाओगे. तब 20 हजार में लड़का को हटा (बेच) दिया और अस्पताल का चार हजार जमा कर दिया तो वहां से छुट्टी मिली.’

यह कहते हुए लक्ष्मीना के आंखों में आंसू नहीं थे. उसकी आंखे पथरायी हुई थी. बेहद धीमी आवाज में कुछ कहती फिर चुप हो जाती. एक ही बात बार-बार उसके मुंह से निकलती कि हमनी के मजबूरी केहू समझ नाहीं पाई.

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में लक्ष्मीना और उसके पति हरेश पटेल ने पांच सितंबर को अपने दो वर्ष के बेटे राजा को 20 हजार रुपये में एक दंपत्ति को बेच दिया था. लक्ष्मीना प्रसव पीड़ा के बाद घर से थोड़ी दूर पर अस्पतालनुमा जगह पर भर्ती हुई और एक बच्ची को जन्म दिया. अस्पताल चलाने वाली महिला ने डिस्चार्ज करने के लिए चार हजार रुपये मांगे. लक्ष्मीना-हरेश के पास पैसे नहीं थे. हरेश ने गांव के लोगों से कर्ज के लिए गुहार लगाई लेकिन उसके हालात देख कोई पैसा देने को तैयार नहीं हुआ. तब उसने एक बिचैलिये के जरिये एक दंपत्ति को 20 हजार में अपने दो वर्ष के बेटे राजा को बेच दिया.

कुशीनगर जिले के दुदही ब्लॉक के दशहवा गांव के भेड़िहारी टोले की यह घटना छह सितंबर को जब सार्वजनिक हुई तो थाने का एक पुलिस कर्मी पूछताछ के लिए हरेश के पास आया. आरोप है कि पुलिसकर्मी ने हरेश को डराकर पांच हजार रुपये वसूल लिया. अब आरोपी पुलिस कर्मी लाइन हाजिर है. बच्चे को बिकवाने वाला बिचैलिया, बच्चे को खरीदने वाले दंपत्ति और अस्पताल चलाने वाली महिला गिरफ्तार होकर जेल जा चुके हैं. इन सबके खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र, छल करने, बंधक बनाने और मानव तस्करी के केस दर्ज किए गए हैं.

अस्पातल अवैध रूप से संचालित हो रहा था. अब उसे सील कर दिया गया है.

कुशीनगर के डीएम और एसपी हरेश के घर गए. पूर्व विधायक अजय कुमार लल्लू और वर्तमान भाजपा विधायक डाॅ. असीम कुमार भी पहुंचे. कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने सोशल मीडिया पर सवाल किया कि कहां हैं सरकार की योजनाएं?

ये विवरण अखबारों में विस्तार से आ चुके हैं और ओझल भी हो चुके हैं लेकिन सवाल यह है कि भुखमरी से जूझ रहे इस परिवार का राशन कार्ड क्यों नहीं बना? मुफ़्त इलाज वाला आयुष्मान कार्ड क्यों नहीं बना? हरेश के पास कोई काम क्यों नहीं था? उसका मनरेगा का जॉब कार्ड क्यों नहीं बना? लक्ष्मीना के बच्चे स्कूल-आंगनबाड़ी में क्यों नहीं जा रहे थे?

लक्ष्मीना की दारुण दास्तान देश के पांच ट्रिलियन डालर और यूपी के एक ट्रिलियन डालर की अर्थवस्था बनाने के दावों के बीच गहराते अंधकार की कहानी है.

दिहाड़ी मजदूर की दारुण दास्तान

हरेश के पिता बदरी बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के धूमनगर के रहने वाले थे. मजदूरी की तलाश में बिहार सीमा से लगे कुशीनगर जिले के दुदही ब्लॉक के दशहवा गांव के भेड़िहारी टोले आ गए. यहीं उन्होंने ठौर तलाशा. उनके चार बेटे हुए- हरेश, अवधेश, सुरेश और दिनेश. बदरी पूरी जिंदगी मजदूरी करते-करते गुजर गए लेकिन बेटों के लिए कोई बेहतर जिंदगी नहीं कर पाए. चारों बेटे मजदूरी कर गुजारा कर रहे है. अवधेश और सुरेश पानीपत में मजदूरी कर रहे हैं है तो दिनेश रोहतक में मजदूरी करता है. चार में से तीन भाइयों के घर फूस के हैं. सिर्फ दिनेश का दो कमरे का पक्का मकान है.

किसी के पास खेती की जमीन का एक टुकड़ा नहीं है. पिता बदरी को सरकार से 12 कट्ठा जमीन पट्टे पर मिली थी जो उन्होंने आर्थिक तंगी के चलते बेच दिया. कानूनन पट्टे की जमीन को बेचा नही जा सकता लेकिन कुशीनगर जिले में एक समय में गरीबों को मिली पट्टे की जमीन का इस तरह बिकने की बात लगातार आ रही है. आर्थिक रूप से मजबूत काश्तकार पट्टाधारकों की गरीबी-कर्ज का फायदा उठाकर सस्ते में ले ले रहे हैं.

हरेश की मां जीवित हैं और उसके छोटे भाई के पास रहती हैं. हरेश का घर खेतों के बीच पगडंडी के पास है. फूस की झोपड़ी में एक तख्ता, जुगाड़ से बनाया गया एक पंखा, एक छोटा गैस चूल्हा, कुछ कपड़े के अलावा और कुछ नहीं है. झोपडी के बाहर एक हैंडपंप और माटी का चूल्हा है. इसके पास एक छोटी-सी जगह पर ईंटों को चुनाई दिखती है जो हरेश-लक्ष्मीना के पक्के मकान के सपने की मार जाने का ढांचा है.

40 वर्षीय हरेश दिहाड़ी मजदूरी कर अपनी जिंदगी को खींचने की कोशिश करता रहा लेकिन कभी उसके पास इतनी कमाई नहीं हुई कि दो जून की रोटी का भी इंतजाम भी हो सके. इस कोशिश में वह कर्ज में डूबता चला गया. आज वह माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के दो लाख के कर्ज में फंसा है. प्रधानमंत्री आवास का मिला 1.10 लाख रुपये भी कर्ज के ब्याज में स्वाहा हो गए.

हरेश का घर.

हरेश ने दो साल कुबेरस्थान में ईंट के भट्ठे पर मजदूरी की. वहां उसे एक हजार ईंट की ढुलाई करने पर 160 रुपये मजदूरी मिलती थी. वहां से काम छूटा तो रोज काम मिलना मुश्किल हो गया. अभी उसे एक महीने में 10 से 15 दिन ही दिहाड़ी मिल पा रही है. उसे 300 से 400 रुपये मजदूरी मिलती है. हरेश ने दो साल पहले बटहिया पर 10 कट्ठा जमीन खेती के लिए लिया. इसके लिए उसने कर्ज लिया लेकिन यह खेती भी उस पर भारी पड़ने लगी क्योंकि खाद, बीज, पानी के लिए उसके पास पैसे नहीं होते थे. आखिकार उसने यह खेत छोड़ दिया.

पांच साल पहले उसे प्रधानमंत्री आवास के लिए 1.10 लाख रुपये मिले. दस हजार कमीशन के भेंट चढ़ गए. इस पैसे से वह दो कालम नींव ही चलवा पाया. बाकी पैसे कर्ज चुकाने में गए. बीमार लक्ष्मीना की दवाई में ही 60 हजार रुपये खर्च हो गए.

माइक्रोफाइनेंस का कर्ज जाल

हरेश और लक्ष्मी कर्ज के जाल में फंस गए थे. इसी वक्त लक्ष्मीना महिलाओं के समूह के संपर्क में आई. माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने उसे कर्ज से जिंदगी बेहतर बनाने का सपना दिखाया. सितंबर-दिसंबर 2023 के बीच लक्ष्मीना और हरेश ने पांच माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से दो लाख रुपये के कर्ज ले लिए. हर इन कर्जों के लिए उसे हर महीने 8,740 रुपये किश्त देने पड़ते. एक कर्ज की किश्त दूसरे कर्ज के पैसे से चुकता करने की कोशिश की जाने लगी लेकिन कुछ ही महीनों में सभी नगदी खत्म हो गई और उनके पास किश्त जमा करने के पैसे भी नहीं रह गए.

सवाल यह भी है कि माइक्रोफाइनेंस कंपनियां किस आधार पर लक्ष्मीना-हरेश को लगातार कर्ज पर कर्ज दिए जा रही थीं जबकि उसके घर जाकर कोई भी उसके हालात को देख सकता है! गरीबों को मदद के नाम पर माइक्रोफाइनेंस कंपनियां 24 से 30 फीसदी तक ब्याज ले रही हैं और साथ ही साथ प्रोसेस फीस, बीमा, जीएसटी आदि के नाम पर भी कर्ज राशि से ठीक-ठाक धन कटौती कर ली जाती है. किश्त जमा न होने पर शारीरिक-मानसिक उत्पीड़न किया जाता है.

ग्रामीण क्षेत्रों में माइक्रोफाइनेंस कंपनियों का कर्ज जाल अब गरीबों के लिए फंदा बनता जा रहा है. कुशीनगर जिले के सेवरही क्षेत्र के मिश्रौली गांव में दिसंबर 2023 में माइक्रोफाइनेंस के कर्ज में फंसी महिला ने खुदकुशी कर ली थी. इस साल के मई महीने के बाद से हरेश किसी की किश्त नहीं चुका पाया. माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के एजेंट उस पर दबाव बनाने लगे.

कर्ज से जुड़े कुछ दस्तावेज.

अस्पताल ने चार हजार रुपये के लिए बंधक बनाया

इसी बीच लक्ष्मीना गर्भवती हुईं. हरेश और लक्ष्मीना की बातों से लगता है कि अस्पताल जाने से पहले ही दोनों ने अपने एक बच्चे को बेचने (उनके शब्दों में हटाने) का मन बना चुके थे. हरेश ने बताया कि पत्नी के अस्पताल जाने के पहले गांव में रिश्तेदारी में आने वाले एक मजदूर से कहा था कि बच्चे को कोई लेने वाला मिलेगा तो दे देंगे.

हरेश ने बताया कि प्रसव पीड़ा होने पर वह तीन सितंबर की शाम को गांव के मोड़ पर स्थित खुशी क्लीनिक पर ले गया. वहां चार सितंबर की सुबह लक्ष्मीना ने बेटी को जन्म दिया.

‘मैडम (अस्पताल की संचालिका) ने कहा कि चार हजार जमा कर पत्नी बच्चे को घर ले जाओ. मेरे पास पैसे नहीं थे तो उन्होंने कहा कि जब पैसे हो जाए जब ले जाना. हमने गांव के दो लोगों से कर्ज मांगे. इन लोगों से पहले भी पांच रुपया सैकड़ा ब्याज पर कर्ज लिया था. दोनों ने इनकार कर दिया.’

तब उसने उस व्यक्ति से संपर्क किया जिससे बेटे को बिकवाने की बात हुई थी. वह व्यक्ति एक ऑटो में तीन महिलाओं व दो लोगों को लेकर अस्पताल पहुंचा. उसने हरेश को 20 हजार दिलवाए. इस पैसे से चार हजार रुपये अस्पताल में जमा हो गए. वहां से लक्ष्मीना को लेकर घर आ आए. इसके बाद हरेश और उसके दो वर्षीय बेटे राजा को लेकर सभी लोग तमकुहीराज तहसील गए. वहां तहसील में गोदनामे का कागज बनवाया गया. हरेश ने कागज पर अंगूठा लगा दिया और राजा को उनको सौंप दिया.

हरेश ने कहा, ‘राजा को जब उसने उन लोगों को दिया तो वह बहुत रो रहा था. मेरा गोद छोड़ नहीं रहा था. करेजा पत्थर का कर हम लौट आए. चूल्हा नहीं जला. बेटी छोटी, बेटा जालंधर और महावीर पूछने लगे कि राजा कहां है. हमने उनसे झूठ बोला कि वह अपने मामा के घर गया है.’

इसके बाद पुलिस को खबर लगी. एक पुलिसकर्मी उनके घर आया और पुलिस के हस्तक्षेप से राजा उन्हें वापस मिला. हरेश इनकार करते हैं कि सिपाही ने उससे पांच हजार रुपये वसूले थे लेकिन मीडिया में यही खबर आई कि उसने पूछताछ के बाद हरेश से पांच हजार रुपये वसूल लिए. इस आरोप पर उसे लाइन हाजिर कर दिया गया है .

हरेश की पहली शादी 15 वर्ष पहले हुई थी. पहली पत्नी से एक बेटी हुई. हरेश के अनुसार आर्थिक तंगी के कारण उसकी पहली पत्नी ने उसे छोड़ दिया. बेटी को भी अपने साथ ले गई.

पहली पत्नी के जाने के बाद गांव के एक व्यक्ति ने राजापाकड में रह रही एक महिला से शादी करा दी. वह अपनी पति से अलग रह रही थी और उसके तीन बच्चे थे. यह शादी दो साल ही चल सकी और फिर दोनों आपसी रजामंदी से अलग हो गए. इसके बाद सात साल पहले कुबेरस्थान में रह रही लक्ष्मीना से हरेश की शादी हुई.

राजा के घर वापस आ जाने से लक्ष्मीना और हरेश खुश तो हैं लेकिन भविष्य की चिंता उनके चेहरे पर देखी जा सकती है. उन्हें नहीं मालूम कि अपनी संतानों का पालन-पोषण कैसे करेंगे.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)