रूसी सेना में भर्ती किए गए चार भारतीय स्वदेश लौटे, कहा- ग़ुलामों जैसा बर्ताव किया गया

रूस की एक निजी सेना में काम करने को मजबूर किए गए चार भारतीय नागरिक, जिनमें से एक तेलंगाना और तीन कर्नाटक के हैं, शुक्रवार को भारत लौट आए. उनके अनुसार, कम से कम 60 भारतीय युवाओं को उनकी तरह नौकरी का झांसा देकर रूसी सेना में शामिल किया गया था, जो अब भी वही हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर. (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: चार भारतीय नागरिक शुक्रवार को स्वदेश लौट आए हैं, जिन्हें धोखा देकर एक निजी रूसी सेना में भर्ती किया गया था और रूस-यूक्रेन युद्ध में लड़ने के लिए मजबूर किया गया था.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, युद्ध प्रभावित रूस-यूक्रेन सीमा से बचाए जाने की गुहार लगाने वाले वीडियो के सामने आने के करीब सात महीने बाद तेलंगाना के मूल निवासी मोहम्मद सूफियान शुक्रवार को घर लौटे. 22 वर्षीय इस युवक के साथ कर्नाटक के तीन अन्य युवक भी थे. बताया गया है कि सभी को एक एजेंट ने धोखा दिया और यूक्रेन से लड़ने के लिए एक निजी रूसी सेना में भर्ती कर लिया.

उनके अनुसार, कम से कम 60 भारतीय युवा इस नौकरी में धोखाधड़ी का शिकार हुए, जिनमें से कई अभी भी विदेशी धरती पर हैं. उन्हें दिसंबर 2023 में रूस में सुरक्षाकर्मियों या सहायकों के रूप में काम दिलाने के वादे के साथ भारत से बाहर भेज दिया गया था. लेकिन रूस में उतरते ही जीवन बदल गया. शुक्रवार को हैदराबाद पहुंचने के बाद सूफ़ियान ने बताया, ‘हमारे साथ गुलामों जैसा बर्ताव किया गया.’

उन्होंने अपने पिछले कुछ महीनों को याद करते हुए कहा, ‘हमें हर दिन सुबह 6 बजे जगाया जाता था और 15 घंटे तक लगातार काम करवाया जाता था – बिना आराम या नींद के. हालात अमानवीय थे. हमें बहुत कम राशन दिया जाता था. हाथों में छाले पड़ गए थे, पीठ में दर्द रहता था और हमारा हौसला टूट चुका था. फिर भी, अगर हम थकावट का कोई संकेत देते तो हमें फिर से मेहनत वाले कामों में लगाने के लिए फायरिंग की जाती थी.’

उन्होंने आगे बताया कि वहां उन्हें गहरी खाइयां खोदनी पड़ती थीं और असॉल्ट राइफलें चलानी पड़ती थीं. उन्हें एके-12 और एके-74 जैसी कलाश्निकोव, साथ ही हैंड ग्रेनेड और दूसरे विस्फोटक चलाने का भी प्रशिक्षण दिया गया था. लेकिन सबसे बड़ी चुनौती बाकी दुनिया से कटे रहना था.

सूफ़ियान और उनके साथी याद करते हैं कि कैसे उन्हें कभी भी निश्चित रूप से यह नहीं पता था कि वे कहां हैं – या उन्हें कहां ले जाया जा रहा है – और उन्हें भारत में अपने परिवारों से बात करने की इजाज़त भी नहीं थी. कर्नाटक के अब्दुल नईम ने कहा, ‘हमारे मोबाइल फोन जब्त कर लिए गए. ट्रेनिंग के दौरान कई महीनों तक मैं अपने परिवार से बात नहीं कर सका.’

कर्नाटक के कलबुर्गी निवासी सैयद इलियास हुसैनी ने गोलीबारी के बीच फंसने के निरंतर डर और जानलेवा परिस्थितियों में काम करने के निरंतर दबाव के बारे में बताया. उन्होंने कहा, ‘हर दिन हम जागते थे. यह भी नहीं पता था कि यही हमारा आखिरी दिन होगा. गोलियों और विस्फोटों की आवाज़ जिंदगी का हिस्सा बन गई थी. हम बस डरे रहते थे.’

सूफ़ियान ने कहा, ‘हम अपने परिवारों के सुकून और सुरक्षा के लिए तरस रहे थे. कभी तो लगता था कि उन्हें फिर कभी नहीं देख पाएंगे.’

सूफियान अपने एक दोस्त हामिल की मौत को याद करते हुए कहा, ‘गुजरात से मेरा एक बहुत अच्छा दोस्त हामिल ड्रोन हमले में मारा गया. वह 24 सैनिकों की टीम का हिस्सा था, जिसमें एक भारतीय और एक नेपाली शामिल था. इस घटना ने मुझे झकझोर कर रख दिया.’

उन्होंने कहा, ‘उसकी मौत के बाद ही हमने अपने परिवारों को अपनी स्थिति के बारे में बताया, जिन्होंने तब केंद्रीय विदेश मंत्री एस.  जयशंकर से हमें युद्ध क्षेत्र से बचाने का अनुरोध किया.’

मालूम हो कि बीते जुलाई महीने में रूसी सेना के साथ युद्ध क्षेत्र में तैनात एक भारतीय नागरिक ने रिहाई की गुहार लगाई थी. पश्चिम बंगाल के कलिम्पोंग के रहने वाले 47 वर्षीय उर्गेन तमांग ने एक वीडियो जारी कर कहा था कि उसके समूह में 15 गैर-रुसी थे, जिनमें से 13 मारे गए हैं.

बीते अगस्त महीने में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कई परिवार राजधानी दिल्ली में मोदी सरकार के खिलाफ़ प्रदर्शन किया था. इन परिवारों की मांग की थी कि सरकार रूसी सेना में फंसे उनके परिजनों को जल्द से जल्द रिहा करवाए.

रूस-यूक्रेन संघर्ष के बीच रूसी सेना में तैनात कई भारतीयों की जान गई है. अगस्त महीने की शुरुआत में विदेश मंत्रालय ने संसद में बताया था कि इस युद्ध में अब तक आठ भारतीय नागरिकों की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि 69 को रूसी सेना से जल्द रिहाई मिलने का इंतजार है.