नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार ने झारखंड उच्च न्यायालय में हलफ़नामा दायर कर बताया है कि संथाल परगना में हाल में जो ज़मीन विवाद सामने आए, उनका बांग्लादेशी घुसपैठियों से कोई संबंध नहीं है.
हाईकोर्ट में भाजपा कार्यकर्ता द्वारा दर्ज जनहित याचिका में दावा किया गया था कि बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा आदिवासियों से शादी कर उनकी ज़मीन लूटी जा रही है. 12 सितम्बर, 2024 को केंद्र द्वारा दायर हलफ़नामे से यह दावा ख़ारिज हो गया है.
हालांकि, केंद्र ने हलफनामे में यह भी कहा है कि पश्चिम बंगाल से से पाकुड़ व साहिबगंज से घुसपैठ होने की आशंका है, लेकिन इस संबंध में किसी प्रकार का प्रमाण नहीं दिया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस हलफनामे के बाद झारखंड हाईकोर्ट ने संथाल परगना में ‘बांग्लादेशी प्रवासियों की घुसपैठ’ की जांच के लिए एक स्वतंत्र जांच समिति गठित करने का आदेश दिया है. न्यायालय ने कहा कि इस विषय पर केंद्र और राज्य द्वारा अपनाए गए ‘परस्पर विरोधी’ रुख को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने 12 सितंबर को अपने आदेश में कहा कि अदालत ‘परस्पर विरोधी’ रुख को देखते हुए घुसपैठ के मुद्दे का स्वयं आकलन करने की स्थिति में नहीं है.
दरअसल, जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र ने हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर बांग्लादेशी घुसपैठ की बात कही है. वहीं, राज्य ने इसे नकारा है.
मोदी सरकार के हलफनामे ने भाजपा के दावे को किया ख़ारिज
हाल के दिनों में भाजपा नेता लगातार यह प्रचार कर रहे थे कि संथाल परगना में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिए आ रहे हैं जो आदिवासियों की ज़मीन हथिया रहे है, आदिवासी महिलाओं से शादी कर रहे हैं और आदिवासियों की जनसंख्या कम हो रही है. क्षेत्र में हुई कई हिंसा व ज़मीन विवाद की घटनाओं को भी भाजपा ने बांग्लादेशी घुसपैठियों के साथ जोड़ा था.
सामाजिक संगठन झारखंड जनाधिकार महासभा का कहना है कि केंद्र सरकार के हलफनामे ने भाजपा के उस खेल को उजागर कर दिया है, जिसके तहत स्थानीय विवादों को बांग्लादेशी घुसपैठ का रंग देने की कोशिश हो रही थी.
पिछले दिनों झारखंड जनाधिकार महासभा व लोकतंत्र बचाओ अभियान ने इन सभी मामलों को लेकर एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट भी जारी की थी, जिसमें यह पाया गया था कि स्थानीय ज़मीन व परिवारों/समुदायों के निजी विवाद के मामलों को भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों के साथ जोड़ कर फैला रही थी. रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया था कि संथाल परगना के बांग्ला-भाषी मुसलमान बांग्लादेशी घुसपैठिए नहीं हैं.
हलफनामे में गलत आंकड़े: झारखंड जनाधिकार महासभा
केंद्र सरकार पर हलफनामे में ग़लत आंकड़ा देने का आरोप लगाते हुए झारखंड जनाधिकार महासभा ने कहा है, ‘हलफनामे में आंकड़ों की गलत व्याख्या करके यह बताया गया है कि संथाल परगना में हिंदुओं की संख्या में व्यापक गिरावट हुई है. यह कहा गया है कि 1951 में क्षेत्र की कुल जनसंख्या 23.22 लाख थी जिसमें हिंदुओं की आबादी 90.37% थी, मुसलमानों की 9.43% व ईसाइयों की 0.18% थी. कुल 23.22 लाख आबादी में आदिवासी 44.67% थे. हलफनामे में कहा गया है कि 2011 में हिंदुओं की जनसंख्या का अनुपात घटकर 67.95% हो गया है.’
झारखंड महासभा ने कहा है, ‘मज़ेदार बात है कि हलफ़नामे में यह नहीं बताया गया है कि 1951 की जनगणना में केवल 6 धर्म कोड में जनगणना की गई थी (हिंदू, इस्लाम, सिख, ईसाई, जैन व बुद्धिस्ट) एवं आदिवासियों को हिंदू में ही डाल दिया गया था. जबकि 2011 में अनेक आदिवासियों ने अपने को ‘अन्य/सरना’ में लिखित रूप में दर्ज किया था. हलफनामे में आदिवासियों, जो मुसलमान या ईसाई नहीं हैं, को चुपके से हिंदू मान लिया गया है. आदिवासियों की स्वतंत्र धार्मिक पहचान को न मानकर उन्हें हिंदू बनाने की भाजपा व केंद्र सरकार की राजनीति इसमें झलकती है. तथ्य यह है कि अगर केवल गैर–आदिवासी हिंदुओं की संख्या लें तो वे 1950 में 10,11,396 (43.56%) थे जो 2011 में बढ़ कर 34,25,679 (49.16%) हो गए थे.’
महासभा ने आगे कहा, ‘जनगणना आंकड़ों के अनुसार, 1951 से 2011 के बीच हिंदुओं की आबादी 24 लाख बढ़ी है, मुसलमानों की 13.6 लाख और आदिवासियों की 8.7 लाख. कुल जनसंख्या के अनुपात में आदिवासियों का अनुपात 46.8% से घटकर 28.11% हुआ है, मुसलमानों का अनुपात 9.44% से बढ़कर 22.73% व हिंदू 43.5% से बढ़कर 49% हुए हैं. आदिवासियों में प्रमुख गिरावट 1951-91 के बीच हुई है.’
महासभा ने आदिवासियों की जनसंख्या में गिरावट के तीन प्रमुख कारण गिनाए हैं:
1. अपर्याप्त पोषण, अपर्याप्त स्वास्थ्य व्यवस्था और आर्थिक तंगी.
2. संथाल परगना क्षेत्र में झारखंड के अन्य ज़िलों, बंगाल और बिहार से मुसलमान तथा हिंदू आकर बसते गए और आदिवासियों से ज़मीन अनौपचारिक दान–पत्र व्यवस्था से खरीदते गए.
3. संथाल परगना समेत पूरे राज्य के आदिवासी दशकों से लाखों की संख्या में पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं, जिसका सीधा असर उनकी जनसंख्या वृद्धि दर पर पड़ता है. केंद्र के हलफ़नामे में आदिवासियों की कम जनसंख्या वृद्धि दर का ज़िक्र है.’
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