नई दिल्ली: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की है कि वह दो दिन बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे देंगे. रविवार (15 सितंबर) को पार्टी कार्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने यह ऐलान किया. केजरीवाल ने कहा, ‘मैं सीएम की कुर्सी से इस्तीफ़ा देने जा रहा हूं और मैं तब तक सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा जब तक जनता अपना फ़ैसला न सुना दे.’
कार्यकाल समाप्त होने से मात्र पांच महीने पहले अरविंद केजरीवाल ने यह घोषणा की है, जिसके तमाम राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं. केजरीवाल ने पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को मुख्यमंत्री बनाए जाने की संभावना से भी इनकार किया है. उन्होंने कहा कि इस्तीफे के बाद वह एक उच्च स्तरीय बैठक करेंगे और नए मुख्यमंत्री की घोषणा करेंगे.
अपने संबोधन के दौरान केजरीवाल ने यह भी कहा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव की घोषणा महाराष्ट्र चुनावों के साथ की जाए. ध्यान रहे कि साल 2015 से दिल्ली विधानसभा चुनाव फरवरी में आयोजित होते रहे हैं.
“मेरे पास मेरी ईमानदारी के अलावा कुछ और नहीं है”@ArvindKejriwal #केजरीवाल_ईमानदार_है pic.twitter.com/sUo9bVcFMN
— AAP (@AamAadmiParty) September 15, 2024
आम आदमी पार्टी (आप) संयोजक अरविंद केजरीवाल दो दिन पहले (13 सितंबर) ही तिहाड़ जेल से ज़मानत पर रिहा हुए हैं. वह दिल्ली आबकारी नीति में कथित घोटाले के आरोप में जेल में थे. सबसे पहले उन्हें 21 मार्च 2024 को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार किया था. फिर 26 जून 2024 को सीबीआई ने हिरासत में लिया था.
मुख्यमंत्री रहकर भी मुख्यमंत्री नहीं रह गए थे केजरीवाल
गौरतलब है कि 13 सितंबर को केजरीवाल को ज़मानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तें भी लगा दी थीं, जिसके कारण वह पद पर रहने के बावजूद मुख्यमंत्री की भूमिका नहीं निभा सकते हैं.
केजरीवाल की ज़मानती शर्तों को समझाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट की पूर्व जज रेखा शर्मा ने इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक लेख में बताया है, ‘आदेश का असर यह है कि केजरीवाल मुख्यमंत्री कार्यालय या दिल्ली सचिवालय नहीं जा सकते, वे अपने कार्यालय में बैठकें नहीं कर सकते, लिखित में आदेश नहीं दे सकते और आधिकारिक फाइलों पर हस्ताक्षर भी नहीं कर सकते. दूसरे शब्दों में कहें तो नागरिकों द्वारा विधायिका के सदस्य के रूप में चुने जाने के बावजूद वे प्रभावी रूप से मुख्यमंत्री के रूप में काम नहीं कर सकते.’
वह आगे लिखती हैं, ‘यह आदेश केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से वंचित नहीं करता है, लेकिन उन्हें उस पद पर आसीन होने पर ली गई शपथ के अनुसार काम करने की अनुमति नहीं देता है. वह हरियाणा जाकर अपनी पार्टी के लिए प्रचार कर सकते हैं, वहां के मतदाताओं से उनके संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करने, अपनी पसंद की सरकार चुनने के लिए कह सकते हैं, लेकिन बावजूद इसके दिल्ली में मुख्यमंत्री के रूप में काम करने में उनके हाथ बंधे रहेंगे. यह आदेश दिल्ली के मतदाताओं द्वारा दिए गए जनादेश को कम करता है.’
ज़ाहिर तौर पर मुख्यमंत्री रहकर काम न कर पाने से बेहतर केजरीवाल ने इस्तीफ़ा देना समझा. वैसे भी उनका कार्यकाल पांच महीने में समाप्त ही होने वाला था. अब वह अपने इस्तीफे को भाजपा के खिलाफ चुनाव प्रचार में इस्तेमाल करके सहानुभूति पाने की स्थिति में भी होंगे.
अपने फैसले की तुलना रामायण में सीता की अग्निपरीक्षा से करते हुए केजरीवाल ने कहा है, ‘जब राम जी 14 साल बाद वनवास से आए थे तब सीता जी को भी अग्निपरीक्षा देनी पड़ी थी. मैं भी आपके सामने अग्निपरीक्षा देने के लिए तैयार हूं.’
बता दें कि एक बार पहले भी केजरीवाल मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे चुके हैं. वर्ष 2014 में उन्होंने सरकार बनाने के मात्र 49 दिन बाद ही कांग्रेस के साथ मतभेदों के चलते इस्तीफा दे दिया था. तब कांग्रेस ने तत्कालीन आम आदमी पार्टी सरकार को बाहर से समर्थन दिया था.
अपने संबोधन में केजरीवाल ने उस वाकये को भी याद करते हुए कहा, ‘2014 में मैंने इस्तीफा दिया था… आपने (वापस) चुना मुझे… आज मैं फिर (वही) कह रहा हूं, अगर मैं ईमानदार हूं तो मुझे वोट दे कर वापस (विधानसभा) भेजना.’