नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार (11 सितंबर) को नवगठित ‘अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ की पहली बैठक हुई. इसका उद्देश्य अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के साथ ही देशभर के विश्वविद्यालयों, कॉलेज, अनुसंधान संस्थान और अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं में रिसर्च और इनोवेशन की संस्कृति को बढ़ावा देना था.
सरकार ने देश में विज्ञान की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए अगले पांच वर्षों में 50,000 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई है. हालांकि, राजनीतिक विचारों से संबंधित इस नए ‘पारिस्थितिकी तंत्र’ की संवेदनशीलता को लेकर डर भी देखने को मिल रहा है.
मालूम हो कि पिछले महीने अगस्त के आखिर में प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के एक समूह ने भारत के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार अजय कुमार सूद को एक पत्र लिखकर ‘विज्ञान युवा शांति स्वरूप भटनागर (एसएसबी) पुरस्कार 2024‘ के पाने वालों के चयन में अपनाई गई प्रक्रियाओं पर संदेह जाहिर किया था.
ये पुरस्कार विज्ञान और प्रौद्योगिकी के किसी भी क्षेत्र में असाधारण योगदान देने वाले युवा वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने के लिए दिया जाता है.
इस पत्र को पूर्व में एसएसबी पुरस्कार प्राप्त कर चुके 26 वैज्ञानिकों द्वारा लिखा गया था, जिसमें कहा गया है, ‘हमारे सवाल परेशान करने वाली उन मीडिया रिपोर्टों से प्रेरित हैं, जो बताती हैं कि इस बार इस पुरस्कार को पाने वाले लोगों के अंतिम सूची के नामों को अनुचित गैर-वैज्ञानिक विचारों ने प्रभावित किया हो सकता है, जिसके लिए विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को दरकिनार किया गया है.’
इस पत्र में द टेलीग्राफ के एक लेख का संदर्भ दिया गया है.
इस पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं में शिव अत्रेय, इंद्रनील विश्वास, विवेक बोरकर, आतिश दाभोलकर, सुमित दास, अभिषेक धर, दीपक धर, अनीश घोष, राजेश गोपकुमार, अमिताभ जोशी, निसिम कानेकर, महान एमजे, सत्यजीत मेयर, शिराज मिनवाला, सुनील मुखी, जयकुमार राधाकृष्णन, एमएस रघुनाथन, सुजाता रामदोराई, मदन राव, देब शंकर रे, श्रीकांत शास्त्री, अशोक सेन, कृष्णेंदु सेनगुप्ता, शुभा तोले, संदीप त्रिवेदी और विदिता वैद्य के नाम शामिल हैं.
पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक ने द वायर को बताया, ‘अगर यह खबर सच है, तो ये इस प्रतिष्ठित पुरस्कार की वैज्ञानिक निष्पक्षता और अखंडता से समझौता करने वाली बात है, जो वैचारिक नियंत्रण की दिशा में एक प्रयास की ओर इशारा करती है. इसलिए मेरा मानना है कि यह बड़ी चिंता का विषय है.’
उन्होंने यह भी कहा कि ये उन कठिन अवसरों में से एक था, जब उन्हें डर लगा कि पुरस्कार विजेताओं के चयन में इस तरह की चूक हुई है. इन हस्ताक्षरकर्ता ने अपनी शैक्षणिक संबद्धता के कारण अपना नाम न छापने को कहा है.
मालूम हो कि एसएसबी पुरस्कार को भारत में वैज्ञानिकों के लिए नोबेल पुरस्कार के समान माना जाता है. इसे वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) द्वारा प्रदान किया जाता है, जो केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत आता है. यह पुरस्कार उस व्यक्ति को दिया जाता है, जिसने विज्ञान और अनुसंधान परिषद की राय में, मानव ज्ञान और प्रगति के लिए मौलिक और व्यावहारिक प्रयास के विशेष क्षेत्र में महत्वपूर्ण और उत्कृष्ट योगदान दिया हो.
इन क्षेत्रों में जैव विज्ञान, रासायनिक विज्ञान, पृथ्वी, वायुमंडल, महासागर और ग्रह विज्ञान, इंजीनियरिंग विज्ञान, गणितीय विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान और भौतिक विज्ञान के कार्य शामिल है.
वैज्ञानिकों द्वारा 30 अगस्त को लिखे गए इस पत्र का सरकार की ओर से अब तक कोई जवाब नहीं दिया गया है.
वैज्ञानिकों ने अपने पत्र में कहा है, ‘हम मानते हैं कि राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार समिति (आरवीपीसी) ने इस वर्ष के पुरस्कार विजेताओं के लिए एक सिफारिश की. हम यह सवाल पूछने के लिए पत्र लिख रहे हैं कि क्या आरवीपीसी की सिफारिशों को पूरी तरह से स्वीकार कर लिया गया, या आगे की समितियों या अधिकारियों द्वारा उसमें कोई संशोधन किया गया.’
मालूम हो कि प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार अजय कुमार सूद आरवीपीसी के अध्यक्ष हैं. इस समिति के अन्य सदस्यों में वैज्ञानिक अकादमी के अध्यक्ष, सरकार के सचिव और कुछ प्रतिष्ठित वैज्ञानिक भी शामिल हैं.
वैज्ञानिकों ने सूद से यह भी बताने को कहा है कि अगर इन सिफारिशों में कोई संशोधन हुआ है तो इसे किसने या किस प्राधिकारी ने किया है.
पत्र में लिखा है, ‘यदि कोई संशोधन किया गया है, तो हम अनुरोध करते हैं कि इन समितियों की प्रकृति और उनके निर्णयों पर पहुंचने में नियोजित मानदंडों का विवरण सार्वजनिक किया जाए, क्योंकि हमें सरकारी वेबसाइट पर इसका कोई उल्लेख नहीं मिला है.’
जहां तक पुरस्कार के नियमों का सवाल है, नियम 10.5, जो प्राप्तकर्ताओं के चयन से संबंधित है, कहता है, ‘आरवीपीसी की सिफारिश के अलावा ये पुरस्कार किसी और को नहीं दिया जाएगा.’
नियम 10.7 में कहा गया है कि आरवीपीसी द्वारा अनुशंसित व्यक्तियों के नाम अनुमोदन के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री को प्रस्तुत किए जाएंगे.
इसमें दिलचस्प बात ये है कि इन नियमों को पुरस्कारों से पहले सार्वजनिक नहीं किया गया है. द वायर होमी भाभा नेशनल इंस्टीट्यूट (एचबीएनआई) की वेबसाइट पर इन नियमों के साथ पीडीएफ की एक प्रति ढूंढने में सफल रहा, जिसे 10 अगस्त 2024 को (वेबैक मशीन पर) देखा गया, जो पुरस्कार जारी होने के तीन दिन बाद की तारीख है.
उस समय तक सरकार को यह पहले ही पता चल गया था कि हटाया गया लिखित अंश गलती से लीक हो गया था.
मोदी सरकार की आलोचना के लिए हटा दिया गए?
पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं ने जिस टेलीग्राफ की खबर का हवाला दिया है, उसमें अज्ञात स्रोतों के हवाले से कहा गया है कि आरवीपीसी की सिफारिशों को नजरअंदाज करते हुए कम से कम दो नाम अंतिम सूची से हटा दिए गए.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हटाए गए नाम जिन दो वैज्ञानिकों के थे, उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना की थी.
अखबार ने कहा है कि एक वैज्ञानिक जिनका नाम स्पष्ट रूप से हटा दिया गया है, वो 2002 के गुजरात दंगों में मोदी की भूमिका पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना वाले बयान के हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक थे.
प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार को भेजे गए पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक ने भी द वायर से नाम हटाने की पुष्टि की है, हालांकि वे नामों की निर्धारित संख्या नहीं बता सके.
द वायर को यह भी पता चला है कि एक अन्य वैज्ञानिक जिनका नाम सूची से हटा दिया गया है, वो वर्तमान सरकार के प्रति आलोचना और कई सामाजिक मुद्दों के बारे में मुखर रहे हैं.
उन्होंने द वायर से कहा, ‘पुरस्कार विजेताओं की सूची से व्यक्तियों के नाम हटाए जाने के बजाय व्यापक चर्चा को प्रणालीगत मुद्दों पर भी केंद्रित किया जाना चाहिए.’
इस वर्ष के पुरस्कार विजेताओं को 6 अगस्त को सूचित किया गया था. जबकि सूची 7 अगस्त की शाम को सार्वजनिक की गई. इस बीच, 7 अगस्त की सुबह, एक वरिष्ठ वैज्ञानिक, जो चयन समिति के सदस्य थे, ने अनजाने में एक वैज्ञानिक को बधाई संदेश तक दे दिया, जिनका नाम बाद में हटा दिया गया था.
कथित तौर पर चयन समिति के सदस्य ने बाद में उन नाम हटाए गए वैज्ञानिक से कहा कि उन्हें इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं था कि अंतिम,
प्राप्तकर्ताओं के नामों को ‘मंत्री स्तर’ पर संशोधित किया जाएगा.
सूद को भेजे गए पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक अन्य ने द वायर से कहा, ‘यह [नामों में बदलाव] असहमति को दबाने के लिए अप्रत्यक्ष राजनीतिक सेंसरशिप के समान है. इस तरह के हस्तक्षेप को अगर चुनौती नहीं दी गई तो यह न केवल विज्ञान के लिए बल्कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए भी गंभीर रूप से हानिकारक हो सकता है.’
30 अगस्त के पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले 26 एसएसबी पुरस्कार विजेताओं में से कुछ लोग वे भी हैं, जो पूर्व में एसएसबी पुरस्कार विजेताओं का चयन करने के लिए वर्षों से गठित समितियों के सदस्य भी रहे हैं. पुरस्कार पाने वालों में भौतिकी, गणित और जीव विज्ञान सहित विभिन्न विषयों के वैज्ञानिक शामिल हैं.
पत्र में कहा गया है कि एसएसबी की अखंडता को बनाए रखने के लिए वे यह आश्वासन चाहते हैं कि [एसएसबी] पुरस्कारों को निर्धारित करने की प्रक्रियाएं और मानदंड पूरी तरह से निष्पक्ष, पारदर्शी और अनावश्यक विचारों से मुक्त हैं.
पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले एक अन्य व्यक्ति ने द वायर को बताया, ‘यह मानने का कारण है कि आरवीपीसी द्वारा अनुशंसित लोगों में से कम से कम एक को भटनागर पुरस्कार नहीं मिला.’
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)