संयुक्त राष्ट्र में फ़िलिस्तीन से इज़रायली कब्ज़ा हटाने संबंधी प्रस्ताव पर भारत ने नहीं दिया वोट

193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में पेश प्रस्ताव के पक्ष में 124 देशों ने मतदान किया, जबकि इसके विरोध में 14 वोट पड़े. वहीं, भारत समेत 43 देशों ने मतदान नहीं किया. प्रस्ताव में मांग की गई कि इजरायल बिना किसी देरी के फ़िलस्तीनी क्षेत्र में अपना क़ब्ज़ा ख़त्म करे.

वोटिंग संख्या दिखाते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा का एक दृश्य. (फोटो: यूएन)

नई दिल्ली: भारत ने बुधवार (18 सितंबर) को संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में व्यापक रूप से समर्थन प्राप्त फ़िलस्तीन से जुड़े एक प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया. इस प्रस्ताव में एक साल के भीतर गाजा और वेस्ट बैंक पर इजरायल के कब्जे को समाप्त करने का आह्वान किया गया था.

रिपोर्ट के मुताबिक, 193 सदस्यीय महासभा में पेश प्रस्ताव के पक्ष में 124 देशों ने मतदान किया, जबकि इसके विरोध में 14 वोट पड़े. वहीं, भारत समेत 43 देशों ने मतदान नहीं किया.

बुधवार को पारित प्रस्ताव में मांग की गई कि इजरायल बिना किसी देरी के जल्द से जल्द और और इस प्रस्ताव के पारित होने के 12 महीने के भीतर फ़िलस्तीनी क्षेत्र में अपने कब्जे़ खत्म करे.

इसमें यह भी कहा गया है कि इजरायल को बिना किसी देरी के आईसीजे द्वारा निर्धारित अपने दायित्वों का पालन करना चाहिए, जिसमें सभी सैन्य बलों को वापस बुलाना, सभी नई गतिविधियों को रोकना, सभी आश्रित निवासियों को निकालना, फ़िलस्तीनी क्षेत्र के अंदर बनाई दीवार के हिस्सों को हटाना और किसी भी गैर-कानूनी स्थिति को खत्म करना शामिल है.

ज्ञात हो कि इस जुलाई की शुरुआत में एक ऐतिहासिक फैसले में आईसीजे ने फ़िलस्तीनी क्षेत्र पर इजरायल के कब्जे को गैरकानूनी घोषित करते हुए वहां सभी नई गतिविधियों को तुरंत बंद करने को कहा था.

आईसीजे ने आगे कहा था कि पूर्वी येरुशलम और वेस्ट बैंक में इजरायल की नीतियां अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बल प्रयोग पर प्रतिबंध और बल से किसी क्षेत्र का अधिग्रहण न करने के सिद्धांत का उल्लंघन करती हैं.

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी. हरीश ने इस मतदान में हिस्सा न लेने के लिए स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि भारत बातचीत और कूटनीति का एक मजबूत समर्थक रहा है और मानता है कि संघर्षों को हल करने के लिए इसके अलावा कोई दूसरा तरीका नहीं है.

भारत का मानना है कि युद्ध से किसी की जीत नहीं नहीं होती, इसकी कीमत सिर्फ इंसानी जिंदगी और तबाही से चुकाई जाती है.

पी. हरीश ने आगे कहा, ‘भारत संयुक्त राष्ट्र और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का बहुत सम्मान करता है और इस मामले में हमारा मानना है कि दोनों पक्षों को साथ लाने के लिए एक संयुक्त प्रयास की जरूरत है. हमें पुल बनाने का प्रयास करना चाहिए, न कि इस टकराव को और आगे बढ़ाने का. मैं महासभा से शांति के वास्तविक प्रयास करने का आग्रह करता हूं.’

हरीश ने आगे कहा, ‘आखिर में, मैं संघर्ष के समाधान और मानवीय संकटों को खत्म कर शांति बहाली के लिए अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता पर जोर देता हूं. हमारा अंत तक यही रुख रहेगा. हम निरंतर शांति की दिशा में अपने प्रयास जारी रखने के लिए तैयार हैं.’

एसोसिएटेड प्रेस के अनुसार, उधर, संयुक्त राष्ट्र में फ़िलस्तीन के राजदूत रियाद मंसूर ने इस प्रस्ताव को आज़ादी और न्याय की लड़ाई में फ़िलस्तीन के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ बताया. उन्होंने कहा महासभा का ये प्रस्ताव एक स्पष्ट संदेश है कि इजरायल का कब्ज़ा जल्द से जल्द ख़त्म होना चाहिए और फ़िलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार को साकार किया जाना चाहिए.

वहीं इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र में इजरायल के स्थायी प्रतिनिधि डैनी डैनन ने कहा कि यूएनजीए द्वारा प्रस्ताव को मंजूरी देना एक ‘शर्मनाक फैसला है, जो फ़िलस्तीनी प्राधिकरण के राजनयिक आतंकवाद का समर्थन करता है.’

इस प्रस्ताव को भारत, नेपाल समेत सात अफ्रीकी देशों के साथ-साथ कुछ लैटिन अमेरिकी और प्रशांत द्वीप राज्यों को छोड़कर दक्षिण के अन्य देशों का समर्थन मिला है.  हालांकि, इसमें यूरोपीय वोट विभाजित हो गए लेकिन कई यूरोपीय संघ के सदस्यों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है.

वहीं, स्थायी सदस्यों में से केवल अमेरिका ने इस प्रस्ताव का विरोध किया. ब्रिटेन अनुपस्थित रहा, जबकि फ्रांस, रूस और चीन ने पक्ष में मतदान किया.

ब्रिक्स देशोंं में भारत और इथियोपिया अनुपस्थित रहे, जबकि ब्राजील, रूस, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात सभी ने पक्ष में मतदान किया. भारत के निकटतम पड़ोसी देशों में से नेपाल भी इस मतदान से अनुपस्थित रहा.

गौरतलब है कि अक्टूबर में गाजा युद्ध शुरू होने के बाद से अबतक यूएनजीए ने चार प्रस्तावों को मंजूरी दी है, जिसमें बुधवार का प्रस्ताव भी शामिल है.

भारत का रुख देखें तो, ये पहले प्रस्ताव पर अनुपस्थित रहा, जिसमें अक्टूबर 2023 में गाजा पर इजरायल के आक्रमण की निंदा की गई थी. इसके बाद, भारत ने अगले दो प्रस्तावों पर अपना रुख बदलते हुए संघर्ष विराम और फ़िलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के भीतर अतिरिक्त सदस्य जैसा दर्जा देने की मांग का समर्थन किया.

ऐतिहासिक रूप से भारत ने फ़िलस्तीन में कब्जे़ को समाप्त करने की वकालत करने वाले वार्षिक यूएनजीए प्रस्तावों का समर्थन किया है. आधिकारिक तौर पर, भारत ने बीते साल 7 अक्टूबर को इजरायल पर हुए आतंकवादी हमलों और जारी हिंसा के परिणामस्वरूप नागरिकों की मौत को लेकर निंदा की है. भारत इसे ‘इजरायल-हमास संघर्ष’ के रूप में देखता है.

हाल ही में संपन्न हुए खाड़ी सहयोग शिखर सम्मेलन में भी भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि भारत तत्काल युद्धविराम का समर्थन करता है और इंसानी जिंदगियों के नुकसान से उसे गहरा दुख पहुंचा है. हालांकि भारत ने इन नागरिक मौतों को लेकर सीधे तौर पर इजरायल को जिम्मेदार नहीं ठहराया है.

जयशंकर ने अरब शिखर सम्मेलन में भी इस बात पर भी ज़ोर दिया कि भारत ने लगातार फ़िलस्तीनी मुद्दे के दो-राज्य समाधान की वकालत की है और फ़िलस्तीनी संस्थानों और क्षमताओं के विकास में योगदान दिया है.

गौरतलब है कि इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष बीते साल अक्टूबर में तब शुरू हुआ था, जब गाजा पर शासन करने वाले फिलस्तीनी संगठन हमास ने इज़रायल पर आतंकवादी हमला किया था, जिसमें लगभग 1,200 लोग मारे गए थे. इसके बाद इज़रायल ने हमास को तबाह करने के मकसद से गाजा पर आक्रमण शुरू कर दिया.

इस संघर्ष में अब तक 40 हजार से अधिक नागरिक मारे जा चुके हैं, जिसमें अधिकांश, लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे हैं. इस युद्ध की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक आलोचना हुई है.

मालूम हो 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इजरायल के साथ ‘एकजुटता’ जाहिर की थी.