नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में एक दशक बाद हो रहे विधानसभा चुनाव के पहले चरण में करीब 60 प्रतिशत मतदान हुआ है. ये चुनाव साल 2019 में अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद पहला चुनाव है.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, बुधवार (18 सितंबर) को हुए पहले चरण के मतदान में सामने आए चुनावी आंकड़े लगभग 2014 और 2008 जैसे ही नज़र आए. दिन की शुरुआत में तेज़ मतदान के बाद धीरे-धीरे शाम तक मतदान धीमा नज़र आया.
इस संबंध में मुख्य निर्वाचन अधिकारी पांडुरंग पोल ने कहा कि दूरदराज के क्षेत्रों से अंतिम आंकड़े आने और डाक मतपत्र प्राप्त होने के बाद मतदान के आंकड़ों में मामूली वृद्धि दर्ज होने की संभावना है.
निर्वाचन अधिकारी के अनुसार, किसी भी मतदान केंद्र पर पुनर्मतदान का आदेश नहीं दिया गया है और हिंसा की कोई बड़ी घटना सामने नहीं आई है.
मालूम हो कि राज्य में साल 2014 के विधानसभा चुनाव में 66 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था, जिसके पहले चरण में 24 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत लगभग बुधवार के बराबर ही करीब 60 प्रतिशत दर्ज किया गया था. हाल के लोकसभा चुनाव में भी 58.46 प्रतिशत मतदान हुआ था.
पहले चरण में जम्मू की आठ सीटों पर मतदान हुआ, जहां मतदाताओं की भारी संख्या देखने को मिली. हालांकि, कुछ जगहों पर 2014 की तुलना में कम मतदान हुआ, लेकिन किश्तवाड़ जिले की तीन विधानसभा सीटों पर सबसे अधिक वोट डाले गए.
इसमें इंद्रवाल में 80.06 प्रतिशत मतदान हुआ, इसके बाद पैडर-नागसेनी में 76.80 प्रतिशत और किश्तवाड़ में 75.04 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया. यहां 2014 में 78.23 प्रतिशत मतदान हुआ था.
किश्तवाड़ में जीएम सरूरी, जो पहले कांग्रेस विधायक के रूप में इंदरवाल का प्रतिनिधित्व करते थे, इस बार किश्तवाड़ से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं, भाजपा ने आतंकवादियों द्वारा मारे गए भाजपा नेता की बेटी शगुन परिहार को मैदान में उतारा है.
डोडा जिले को देखें तो, डोडा पश्चिम में 74.14 प्रतिशत मतदान हुआ. जबकि, डोडा में 70.21 प्रतिशत और भद्रवाह 65.27 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया. डोडा में इस साल जून से अब तक हुए हमलों में चार आतंकवादियों के अलावा दो कैप्टन समेत छह सैन्यकर्मियों की मौत हो चुकी है.
2014 में परिसीमन में बदलाव देखने वाले डोडा और डोडा पश्चिम में मतदान प्रतिशत थोड़ा अधिक रहा. जबकि, बनिहाल और रामबन में क्रमशः 71.28 प्रतिशत और 67.34 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया.
घाटी की 16 सीटें, जो सभी दक्षिण कश्मीर में आती हैं, मतदान कमोबेश 2014 और 2008 के बराबर ही रहा. बुधवार को यहां 53.55 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाले, जबकि 2014 में 54.93 प्रतिशत मतदान हुआ था. लेकिन यहां तीन दशकों में पहली बार ज्यादा सुरक्षा बलों की तैनाती नहीं देखी गई. यहां लोगों को बिना तलाशी के मतदान केंद्रों के अंदर जाने की अनुमति दी गई.
चुनाव अधिकारियों के अनुसार, अनंतनाग जिले के सात निर्वाचन क्षेत्रों में 54.77 प्रतिशत मतदान हुआ. यह 2014 के 60 प्रतिशत और 2008 के 63.20 प्रतिशत से कम है.
पुलवामा जिले की चार सीटों पर 46.66 प्रतिशत, जो 2014 में 44 प्रतिशत और 2008 में 46.09 प्रतिशत था. कुलगाम जिले की तीन सीटों पर 62.64 प्रतिशत मतदान देखा गया, जहां 2014 में 59 प्रतिशत और 2008 में 64.45 प्रतिशत मतदान हुआ था.
शोपियां जिले की दो सीटों पर 53.64 प्रतिशत मतदान रहा. यहां 2014 में 48 प्रतिशत और 2008 में 50.65 प्रतिशत था.
सबसे कम मतदान, शांगस-अनंतनाग खंड में देखा गया, जहां केवल 52.94 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जबकि 10 साल पहले यह आंकड़ा 68.78 प्रतिशत था. इसी तरह, डीएच पोरा खंड में, जिसे पहले नूराबाद के नाम से जाना जाता था, 2014 में 80.92 प्रतिशत के भारी मतदान के मुकाबले इस बार केवल 68 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया.
हालांकि, डीएच पोरा पहले चरण में कश्मीर में सबसे अधिक मतदान वाली सीट रही. इसके बाद पहलगाम, कुलगाम और कोकरनाग में भी अच्छा मतदान हुआ.
नेशनल कॉन्फ्रेंस की सकीना इटू और पीडीपी के गुलजार अहमद डार डीएच पोरा से चुनावी मैदान में हैं, जबकि पहलगाम से अपनी पार्टी के प्रमुख नेता रफी अहमद मीर चुनाव लड़ रहे हैं. कुलगाम उन सीटों में से एक है, जहां जमात-ए-इस्लामी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार दौड़ में है. वहीं, कोकेरनाग कश्मीर में नई आरक्षित एसटी सीटों में से एक है.
सबसे कम वोट अनंतनाग की सीट पर पड़े, जहां 41.58 प्रतिशत वोटिंग हुई. वहींं, पुलवामा जिले के चार निर्वाचन क्षेत्रों में से केवल एक पुलवामा विधानसभा क्षेत्र ने 50 प्रतिशत का आंकड़ा पार किया. पुलवामा सीट से उम्मीदवारों में पीडीपी युवा विंग के नेता वहीद उर रहमान पारा भी शामिल हैं.