कोलकाता: आरजी कर के पूर्व प्रिंसिपल की प्रैक्टिस पर रोक, डॉक्टरों की हड़ताल आंशिक रूप से ख़त्म

कोलकाता रेप और हत्या को लेकर प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि वे सिर्फ इमरजेंसी और आवश्यक सेवाओं के लिए काम करेंगे, ओपीडी में नहीं. सभी जूनियर डॉक्टर्स स्वास्थ्य भवन के बाहर एकत्र होकर धरना-प्रदर्शन ख़त्म करेंगे, लेकिन न्याय मिलने तक लड़ाई जारी रहेगी.

डॉक्टरों का स्वास्थ्य भवन तक मार्च. (फोटो साभार- अरेंजमेंट)

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल मेडिकल काउंसिल ने गुरुवार (19 सितंबर) को आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में वित्तीय अनियमितता के आरोपों से घिरे पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष का पंजीकरण रद्द करते हुए उनके प्रैक्टिस पर प्रतिबंध लगा दिया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, संदीप घोष को मेडिकल काउंसिल की ओर से 6 सितंबर को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था, लेकिन 13 दिन का समय बीत जाने के बावजूद भी घोष इसका जवाब देने में विफल रहे, जिसके बाद काउंसिल ने ये कदम उठाया है.

द टेलीग्राफ के अनुसार, पश्चिम बंगाल मेडिकल काउंसिल का कहना है कि 13 दिन बीत जाने के बाद भी डॉक्टर घोष से कोई स्पष्टीकरण नहीं मला, जिसके चलते उनका नाम काउंसिल द्वारा रखे जाने वाले पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर के रजिस्टर से हटा दिया गया है.

काउंसिल ने बंगाल मेडिकल एक्ट, 1914 की धारा 25(ए)(II) और मेडिकल एथिक्स कोड की धारा 37(III) के तहत डॉक्टर संदीप घोष का पंजीकरण रद्द किया है.

इस बीच, आरजी कर की महिला ट्रेनी डॉक्टर के रेप और हत्या मामले में प्रदर्शन कर रहे जूनियर डॉक्टरों ने आंशिक रूप से हड़ताल खत्म करने का फैसला किया है. डॉक्टरों का कहना है कि वे सिर्फ जरूरी सेवाओं के लिए ही काम करेंगे.

इंडियन एकस्प्रेस की खबर के मुताबिक, प्रदर्शन कर रहे डॉक्टर शुक्रवार (20 सितंबर) को सीबीआई कार्यालय तक मार्च करने के बाद राज्य स्वास्थ्य विभाग मुख्यालय, स्वास्थ्य भवन के बाहर अपना धरना प्रदर्शन भी समाप्त कर देंगे. हालांकि, प्रदर्शनकारियों का कहना है कि न्याय के लिए उनकी लड़ाई जारी रहेगी.

मालूम हो कि आरजी कर के जूनियर डॉक्टर 9 अगस्त से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इस बीच मामला हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा, जहां डॉक्टरों को अदालत ने 10 सितंबर शाम 5 बजे तक काम पर लौटने को कहा था, लेकिन कोर्ट के आदेश के बावजूद डॉक्टरों का प्रदर्शन जारी रहा.

इस दौरान राज्य की ममता बनर्जी सरकार लगातार डॉक्टरों से काम पर लौटने का अनुरोध कर रही थी, लेकिन डॉक्टर अपनी सभी मांगों को पूरा होने तक पीछे हटने को तैयार नहीं थे. अब करीब 41 दिन बाद डॉक्टर अपनी हड़ताल खत्म करने जा रहे हैं.

विरोध-प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों ने कहा, ‘हम साफ कर देना चाहते हैं कि सिर्फ इमरजेंसी और आवश्यक सेवाओं के लिए काम किया जाएगा. ओपीडी के लिए हम लोग काम नहीं करेंगे. सभी जूनियर डॉक्टर्स स्वास्थ्य भवन के बाहर एकत्र होंगे और वहीं पर अपना धरना-प्रदर्शन समाप्त करेंगे, लेकिन न्याय मिलने तक हमारी लड़ाई जारी रहेगी.’

गौरतलब है कि कोलकाता में डॉक्टर के रेप और हत्या को एक महीना पूरा हो गया है. इससे पहले की सुनवाई में अदालत ने देश भर में डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ़ के लिए सुरक्षा बंदोबस्त के अभाव पर चिंता जताई थी और एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया था. इस टास्क फोर्स का काम राष्ट्रीय स्तर पर मेडिकल स्टाफ की सुरक्षा संबंधी प्रोटोकॉल तैयार करना है.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां भी की हैं, जिसमें पश्चिम बंगाल शासन-प्रशासन के रवैये और महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर होने वाली हिंसा को लेकर भी चिंता जाहिर की गई थी.

ज्ञात हो कि बीते 9 अगस्त को आरजी कर मेडिकल कॉलेज के सेमिनार हॉल में एक पोस्टग्रेजुएट ट्रेनी डॉक्टर का शव मिला था. वो देर रात खाने के बाद हॉल में आराम करने गई थीं. मृत डॉक्टर के पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रेप और हत्या की बात सामने आई थी.

बंगाल सरकार ने इस मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया था, जिनसे एक सिविक स्वयंसेवी शख्स को मुख्य आरोपी बताते हुए गिरफ्तार किया था. इसके बाद मामला अदालत के आदेश के बाद सीबीआई को सौंप दिया गया था. सीबीआई ने मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष को भी गिरफ्तार किया है.

इस मामले को लेकर देशभर में आक्रोश देखने को मिला था, जिसमें डॉक्टरों की कामबंदी और विरोध प्रदर्शन कई दिनों तक जारी रहा था. डॉक्टरों के संगठनों ने शासन-प्रशासन से अपराधियों के खिलाफ त्वरित और सख्त कार्रवाई की मांग की थी. साथ ही, देशभर में डॉक्टरों के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने को कहा था.

इस घटना के एक महीने के भीतर ही पश्चिम बंगाल विधानसभा में सर्वसम्मति से अपराजिता महिला और बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक क़ानून संशोधन) विधेयक, 2024 पारित किया गया.  इस विधेयक में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर भारतीय न्याय संहिता, 2023, (बीएनएस) भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बीएनएसएस) और बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए बने पॉक्सो क़ानून, 2012 में संशोधन किए गए हैं.

राज्य सरकार का दावा है कि ये एक ऐतिहासिक कानून है जिससे पीड़ित को जल्द न्याय मिलेगा.