श्रीनगर: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत जम्मू-कश्मीर सरकार के कार्यकारी नियमों (Jammu & Kashmir Government Business Rules) में किए गए संशोधनों के फाइल की एक प्रति देने से इनकार कर दिया है. इन संशोधनों से केंद्र शासित प्रदेश के उपराज्यपाल की शक्तियां बढ़ गई हैं, जहां अब छह साल बाद कुछ ही समय में निर्वाचित सरकार देखने को मिलेगी.
मालूम हो कि इन विवादास्पद संशोधनों की जम्मू-कश्मीर में व्यापक आलोचना हो रही है. विपक्षी दलों का आरोप है कि ये संशोधन जम्मू-कश्मीर की भावी निर्वाचित सरकारों की शक्तियों को और कमजोर कर देंगे.
इस रिपोर्टर द्वारा दायर सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत एक आवेदन के जवाब में गृह मंत्रालय ने सुरक्षा कारणों और गोपनीयता का हवाला देते हुए इन दस्तावेजों की प्रति देने से इनकार कर दिया. गृह मंत्रालय ने आवेदन के लिखित उत्तर में कहा, ‘आपके द्वारा मांगी गई जानकारी आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 8 (एल) (ई) और 8 (एल) (जी) के प्रावधान की ओर ध्यान आकर्षित करती है, जिसके तहत किसी भी नागरिक को जानकारी देने की कोई बाध्यता नहीं है.’
गृह मंत्रालय द्वारा इन संशोधनों के बारे में जानकारी देने से इनकार करने पर सामाजिक कार्यकर्ताओं और अन्य हितधारकों ने सवाल उठाया है.
कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (सीएचआरआई) के निदेशक वेंकटेश नायक ने द वायर से कहा कि केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) का जवाब भ्रमित करने वाला है.
उन्होंने जोड़ा कि आरटीआई अधिनियम उन नागरिकों को सक्षम बनाने के लिए लाया गया था, जो हमारे लोकतंत्र के प्राथमिक हितधारक हैं. और इस अधिकार के तहत सरकार अन्य सार्वजनिक प्राधिकरणों के कामकाज के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. लोगों को उन सरकारी फैसलों की पूरी प्रक्रिया जानने का अधिकार है जो उन्हें प्रभावित करते हैं.
उन्होंने उल्लेख किया कि कार्यकारी नियमों में संशोधन के पीछे की प्रक्रिया और उद्देश्य की जानकारी आरटीआई की धारा 4(1)(सी) और 4(1)(डी) के तहत स्वतः ही दी जानी चाहिए. और ऐसे ही काम होना चाहिए क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय है, जो न केवल जम्मू-कश्मीर के लोगों, बल्कि देश के अन्य हिस्सों के लोगों को भी प्रभावित करता है.
नायक ने आगे कहा कि धारा 8(1)(i) के प्रावधान के तहत इन संशोधनों के पीछे के कारणों को केंद्रीय कैबिनेट द्वारा इन प्रस्तावों को मंजूरी देने के बाद सार्वजनिक किया जाना चाहिए था.
उनके मुताबिक, इस मामले में अधिनियम की धारा 8(1)(ई) को लागू करना सही नहीं है, क्योंकि निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल किसी भी प्राधिकारी के बीच कोई ‘फिड्यूशियरी’ (विश्वासाश्रित) संबंध नहीं है.
नायक का कहना है कि अधिनियम की धारा 8(1)(जी) को लागू करना गैर-जरूरी है ,क्योंकि ऐसी जानकारी को देने से किसी का जीवन खतरे में नहीं पड़ेगा और न ही इस मामले में संशोधन करने की प्रक्रिया का विवरण किसी भी खुफिया शख्स की पहचान को उजागर करता है.
इसी मसले पर जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और पूर्व सांसद हसनैन मसूदी ने कहा कि इस जानकारी का खुलासा गृह मंत्रालय द्वारा किया जाना चाहिए था.
उन्होंने कहा, ‘इस जानकारी को साझा करने में कोई नुकसान नहीं है. केवल असाधारण परिस्थितियों में ही सूचना देने से इनकार किया जा सकता है.’
काम-काज के नियमों में संशोधन एवं आलोचना
ज्ञात हो कि इस साल 12 जुलाई को गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल की शक्तियों को बढ़ाते हुए केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर सरकार के व्यापार (दूसरा संशोधन) नियम, 2024 को अधिसूचित किया था. इन संशोधनों के अनुसार, उपराज्यपाल अखिल भारतीय सेवाओं के प्रशासनिक सचिवों, कैडर पदों के तबादलों, महाधिवक्ता और अन्य कानून अधिकारियों की नियुक्ति पर फैसला लेंगे.
यह अनिवार्य रूप से उपराज्यपाल के दायरे में प्रशासनिक सचिवों के रूप में जम्मू और कश्मीर प्रशासनिक सेवा (जेकेएएस) अधिकारियों की नियुक्ति को भी लाता है.
इन संशोधनों के तहत पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था, अखिल भारतीय सेवा और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से जुड़े किसी भी प्रस्ताव को तब तक मंजूर या नामंजूर नहीं किया जा सकता, जब तक मुख्य सचिव के जरिये उसे उपराज्यपाल के सामने नहीं रखा जाए. अभी इनसे जुड़े मामलों में वित्त विभाग की सहमति लेना जरूरी है.
इसके साथ ही किसी प्रकरण में केस चलाने की मंजूरी देने या न देने और अपील अपील दायर करने के संबंध में कोई भी प्रस्ताव विधि विभाग मुख्य सचिव के जरिये उपराज्यपाल के सामने रखा जाना जरूरी होगा.
इन संशोधनों की व्यापक आलोचना की गई है. विपक्षी दलों ने दावा है कि ये संशोधन जम्मू-कश्मीर के लोगों को और अधिक कमजोर कर देंगे और केंद्र शासित प्रदेश की भावी निर्वाचित सरकारों की शक्तियों को कमजोर कर देंगे.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)