यूपी: माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के क़र्ज़ जाल ने मुसहर नौजवान की जान ली

कुशीनगर के जंगल खिरकिया गांव के रहने वाले शैलेश माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के क़र्ज़ में फंसे थे. उनकी पत्नी ने सिलाई मशीन लेकर कपड़े सिलकर गुजर-बसर करने की कोशिश भी की, पर क़र्ज़ की क़िस्त जमा न करने पर माइक्रोफाइनेंस कंपनी का एजेंट सिलाई मशीन ही उठा ले गया.

(बाएं) शैलेश और उनकी मौत को लेकर उनके घर पर धरना देते मुसहर समुदाय के लोग और भाजपा नेता पप्पू पांडेय. (सभी फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

कुशीनगर: माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के कर्ज जाल में फंसे कुशीनगर जिले के जंगल खिरकिया गांव के गरीब मुसहर नौजवान शैलेश की 17 सितंबर की रात संदिग्ध स्थिति में मौत हो गई. शैलेश की पत्नी माला ने छह माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से 2.30 लाख रुपये का कर्ज लिया था. कर्ज को लेकर उनकी गांव के एक परिवार से विवाद के बाद मारपीट हुई. तबियत बिगड़ने पर उसे जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई.

पोस्टमार्टम के बाद शैलेश का शव 19 सितंबर को उसके गांव जंगल खिरकिया आया तो ग्रामीणों ने अंत्येष्टि करने से मना कर दिया और धरने पर बैठ गए. करीब चार घंटे के धरने के बाद अधिकारियों ने जब दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन दिया तब अंतिम संस्कार किया गया. पडरौना कोतवाली पुलिस ने इस मामले में चार व्यक्तियों के खिलाफ केस दर्ज किया है.

शैलेश की मौत की घटना पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांवों में गरीबों के माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के कर्ज जाल में फंसने से उत्पन्न नए सामाजिक संकट की बानगी है. एक वर्ष के भीतर इस कर्ज में डूबे कुशीनगर जिले के तीसरी मौत है. कुशीनगर जिले में ही दुदही क्षेत्र के दसहवां गांव के एक गरीब परिवार ने कर्ज जाल में फंसने पर अपने बच्चे को 20 हजार रुपये में बेच दिया था.

35 वर्षीय शैलेश कुशीनगर जिले के जिला मुख्यालय से छह किलोमीटर दूर जंगल खिरकिया गांव में रहते थे. इस गांव के सभी मुसहर बेहद गरीब हैं और मजदूरी कर जीवनयापन करते हैं. छह वर्ष पहले इसी गांव में दो मुसहर भाइयों (फेकू और पप्पू) की भूख, कुपोषण जनित बीमारी से 13 सितंबर 2018 मौत हो गई थी. गांव में मजदूरी नहीं मिलने पर मुसहर नौजवान शहरों की तरफ पलायन भी कर रहे हैं.

कौन हैं मुसहर

कुशीनगर जिले में मुसहरों के करीब 100 टोले हैं और उनकी आबादी करीब एक लाख है. मुसहर खेतिहर मजदूर हैं. मजदूरी कर ही गुजारा करते हैं. खेती में बढ़ते मशीन के प्रयोग से उन्हें अब बहुत कम काम मिलता है. इस लिए उनके हालात बहुत खराब है. मुसहरों को मूस (चूहा) खाने वाले कहा जाता रहा है लेकिन हकीकत यह है कि वे अनाज की तलाश में खेतों में चूहों के बिल ढूंढते थे और वहां से चूहों द्वारा इकट्ठे किए गए अनाज को निकालकर अपनी भूख का इंतजाम करते थे.

कुशीनगर जिले में अक्टूबर 2004 में दोघरा गांव में नगीना मुसहर की भूख से मौत राष्टीय स्तर पर सुर्खी बनी थी. उसके बाद से सरकार का ध्यान उनकी तरफ गया. पिछले दो दशक में उन्होंने सरकार की आवास, पेयजल, खाद्यान्न योजनाओं के अंतर्गत लाने से उनके हालात थोड़े बेहतर हुए हैं लेकिन आजीविका संकट गहरा ही होता गया है.

मुसहर अनुसूचित जाति में आते हैं. उनके बीच काम करने वाले संगठनों की मांग है कि मुसहर समाज को अनुसूचित जन जाति में शामिल किया जाए.

मजदूर की जिंदगी

शैलेश के पिता चन्नर भी मजदूर थे. उन्हें बहुत पहले सरकारी योजना के तहत आवास मिला था जिसमें वह पत्नी व शैलेश के साथ रहते थे. शैलेश के माता-पिता अब गुजर चुके हैं, घर मरम्मत के अभाव में जर्जर हो चुका है. गांव और आस-पास के जगहों पर काम नहीं मिलने पर शैलेश मजदूरी करने बंगलुरू चले गए थे. गांव में पत्नी के अकेले पड़ने के कारण वह लौट आए. छह महीने पहले वह फिर मजदूरी करने बाहर गए लेकिन अच्छी मजदूरी नहीं मिलने पर वह दोबारा गांव लौटे.

शैलेश की पत्नी माला का दो वर्ष का एक बेटा है. वह इस समय सात महीने की गर्भवती है. शैलेश ने करीब एक महीने पहले माला को मायके पहुंचा दिया था और मजदूरी करने बाहर जाना चाहता थे.

अपने घर के सामने दो साल के बेटे के साथ माला.

छह माइक्रोफाइनेंस कंपनियों का 2.30 लाख कर्ज

शैलेश और माला बेहद गरीबी में जी रहे थे. उनको दो जून की रोटी मुहाल थी. इसी समय माला गांव के स्वंय सहायता समूह के संपर्क में आईं और उसने एक-एक कर छह माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से 2.30 लाख रुपये का कर्ज ले लिया. एक कर्ज की किस्त चुकाने के लिए दूसरा कर्ज लिया गया, फिर तीसरा लिया गया. इस तरह वे कर्ज जाल में फंसते गए. माला ने बताया कि उसने छह माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से 50 हजार, 35 हजार, 45 हजार, 40 हजार के अलावा 30-30 हजार के दो कर्ज लिए थे. इसमें तीन कर्ज की किस्त एक-एक पखवाड़े में, एक की हर हफ्ते और दो की हर महीने देनी थी.

छह कर्जों की किस्त हर महीने नौ हजार रुपये देनी पड़ रही थी. वे पिछले चार महीनों से कोई भी किस्त नहीं चुका पा रहे थे. किस्त चुकाने के चक्कर में उन्होंने आखिरी 30 हजार का कर्ज गांव के ही एक व्यक्ति को दे दिया. उस व्यक्ति ने कहा कि वह मकान बनवा रहा है. उसे पैसे की जरूरत है. वह उसका किस्त चुका देगा. लेकिन उस व्यक्ति ने किस्त जमा नहीं किए जिससे कारण माइक्रोफाइनेंस कंपनी के एजेंट शैलेश का उत्पीड़न करने लगे क्योंकि कर्ज उन्हीं के नाम पर था.

माला की भाभी मीरा देवी ने द वायर हिंदी को बताया, ‘पूरा गांव कर्ज में फंसल बा. केहू के पास खेती बारी नाहीं बा. कौनो काम भी नाही बा. इ कर्ज भी अइसन बा कि किस्त देते जा पर खतमे नाहीं होत बा. एजेंट दिन-रात सबके घर के छेक के बइठ जात बाटें. सब मनई गांव के छोड इहां-उहां लुकात फिरत बाटे.’ (पूरा गांव कर्ज में फंसा हुआ है. किसी के पास खेतीबाड़ी नहीं हैं न कोई काम है. यह कर्ज भी ऐसा है कि क़िस्त देते जाने पर भी ख़त्म नहीं होता. (रिकवरी) एजेंट दिन-रात लोगों के घर पहुंचते रहते हैं. सब लोग गांव छोड़कर यहां-वहां छिपते घूम रहे हैं.)

मीरा ने बताया कि शैलेश ने गांव में एक गुमटी खोल ली थी और सब्जी और रोजमर्रा की जरूरी वस्तुएं बेचने लगे थे लेकिन यह कोशिश भी विफल हो गई. कर्ज की किस्त नहीं देने पर माइक्रोफाइनेंस कंपनी के एजेंट ने गुमटी बिकवा दी और किस्त की रकम वसूल कर ली. इसी बीच माला ने सिलाई कर गुजर-बसर करने की कोशिश की. वह एक सिलाई मशीन ले आई थीं, पर कर्ज की किस्त जमा न करने पर माइक्रोफाइनेंस कंपनी का एजेंट उसकी सिलाई मशीन उठा ले गया.

मीरा ने बताया कि शैलेश और माला सभी कर्जों की चार-पांच किस्त ही जमा कर पाए थे. चार महीने से कोई भी किस्त जमा नहीं हो रही थी. माइक्रोफाइनेंस कंपनी के एजेंट लगातार उस पर किस्त जमा करने का दबाव बना रहे थे.

कर्ज विवाद में मारपीट

मीरा के अनुसार शैलेश ने जिस परिवार को अपना एक कर्ज दिया था, उससे पैसा वापस मांगने लगा ताकि कुछ राहत पा सके. उस परिवार ने पैसे नहीं दिए. इसको लेकर दो-तीन दिन से लगातार झगड़े हो रहे थे. मंगलवार (17 सितंबर) को दोपहर में शैलेश फिर पैसा मांगने गए. वहां उस परिवार के लोगों से मारपीट हुई. जब मारपीट की खबर खिरकिया पुलिस चौकी पहुंची, वहां से पुलिसकर्मी आए. उन्होंने एम्बुलेंस बुलाकर शैलेश को जिला अस्पताल पहुंचाया, जहां उनकी मौत हो गई.

माला ने रोते हुए कहती हैं, ‘हम एक महीने से नैहर रहनी. उ कहलन कि नैहरे रहबू तक ठीक से देखभाल हो जाई. हम फिर कहीं मजदूरी करे चल जाइब. सांझी के फोन आइल त भाग के अस्पताल गइनी. हम एक नजर भर देखनी कि उनकर प्राण निकल गईल. हमरे मरदे के मार के मुआवल गईल बा.’ (हम एक महीने से मायके में थे. उन्होंने (शैलेश) ने कहा था कि वहां रहोगी तो ठीक से देखभाल हो जाएगी. हम फिर कहीं मजदूरी करने चले जाएंगे. उस दिन शाम को जब फोन आया तो भागकर अस्पताल पहुंचे. एक नजर देखा ही था कि वो चल बसे. हमारे पति को पीट-पीटकर मार दिया गया.)

गांव के लोगों का कहना है कि मारपीट करने वालों के खिलाफ केस दर्ज कर कार्रवाई की जाए और माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के उत्पीड़न से मुसहरों को बचाया जाए, उनके कर्जे माफ किए जाएं और शैलेश के परिवार को आर्थिक सहायता दी जाए.

पडरौना पुलिस ने इरादतन अपमान करने, सदोष मानव वध व दलित उत्पीड़न के लिए भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 115 ( 2) , 352 , 105 और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 (संशोधन 2015) की धारा 3 (2) (वी) के तहत चार व्यक्तियों-सुबाष निषाद, मन्टू निषाद, विरेन्द्र, उमा निषाद के खिलाफ केस दर्ज किया है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शैलेश के शरीर पर किसी बाहरी चोट के निशान नहीं पाए जाने का जिक्र किया गया है.

बड़ा सवाल है कि माला और उसके बच्चों की परवरिश कैसे होगी? मीरा कहती हैं, ‘अब ओकरा कौन देखे वाला बा. ओके देखे वाला त चल गईल. ओकर जिनगी अधूरा हो गईल.’ (अब उसे देखने वाला कौन है, देखने वाला तो चला गया. उन सबकी जिंदगी अधूरी हो गई.)

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)