नई दिल्ली: तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने सोमवार को यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि ‘धर्मनिरपेक्षता एक यूरोपीय अवधारणा है, जो भारत से संबंधित नहीं है.’
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कन्याकुमारी के तिरुवत्तर में हिंदू धर्म विद्या पीठम के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए रवि ने कहा, ‘इस देश के लोगों के साथ बहुत सारे धोखे किए गए हैं और उनमें से एक यह है कि उन्हें धर्मनिरपेक्षता की गलत व्याख्या दी गई है. धर्मनिरपेक्षता का क्या मतलब है? धर्मनिरपेक्षता एक यूरोपीय अवधारणा है, धर्मनिरपेक्षता भारतीय अवधारणा नहीं है.’
तमिलनाडु के राज्यपाल ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता एक यूरोपीय अवधारणा है और इसे वहीं रहना चाहिए, क्योंकि भारत में धर्मनिरपेक्षता की कोई जरूरत नहीं है.
राज्यपाल ने कहा, ‘यूरोप में धर्मनिरपेक्षता इसलिए आई क्योंकि चर्च और राजा के बीच लड़ाई थी. भारत ‘धर्म’ से कैसे दूर हो सकता है? धर्मनिरपेक्षता एक यूरोपीय अवधारणा है और इसे वहीं रहने दें. भारत में धर्मनिरपेक्षता की कोई आवश्यकता नहीं है.’
कांग्रेस, डीएमके, वाम दलों ने आलोचना की
राज्यपाल की टिप्पणी पर सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने राज्यपाल की इस टिप्पणी की कड़ी आलोचना की.
डीएमके प्रवक्ता टीकेएस एलंगोवन ने कहा, ‘धर्मनिरपेक्षता की सबसे ज़्यादा ज़रूरत भारत में है, यूरोप में नहीं. ख़ास तौर पर राज्यपाल महोदय, उन्होंने भारत के संविधान को नहीं पढ़ा है. अनुच्छेद 25 कहता है कि धर्म की सचेत स्वतंत्रता होनी चाहिए, जिसके बारे में उन्हें नहीं पता. उन्हें संविधान को पूरी तरह से पढ़ना चाहिए. हमारे संविधान में 22 भाषाएं सूचीबद्ध हैं.’
डीएमके नेता ने कहा, ‘हिंदी एक ऐसी भाषा है, जो कुछ ही राज्यों में बोली जाती है. बाकी राज्य दूसरी भाषाएं बोलते हैं… भाजपा के साथ समस्या यह है कि वे न तो भारत को जानते हैं, न ही संविधान को…वे कुछ भी नहीं जानते. यही वजह है कि वे अपने दम पर सरकार भी नहीं बना पाए.’
सीपीआई नेता डी. राजा ने भी राज्यपाल की आलोचना करते हुए कहा, ‘मैं आरएन रवि के बयान की कड़ी निंदा करता हूं. उन्हें धर्मनिरपेक्षता के बारे में क्या पता है? उन्हें भारत के बारे में क्या पता है? वे राज्यपाल हैं… उन्हें संविधान का पालन करना चाहिए. भारत का संविधान भारत को एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में परिभाषित करता है.’
राजा ने आगे कहा, ‘डॉ. बीआर आंबेडकर ने धर्मतंत्र की अवधारणा को जोरदार तरीके से खारिज किया… आंबेडकर ने यहां तक कहा कि अगर हिंदू राष्ट्र एक तथ्य बन जाता है, तो यह देश के लिए एक आपदा होगी… धर्मनिरपेक्षता का मतलब है धर्म और राजनीति को अलग रखना… चुनावी उद्देश्यों के लिए भगवान को बीच में मत लाओ.’
लाइव मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, आरएन रवि की धर्मनिरपेक्षता संबंधी टिप्पणी पर तीखा कटाक्ष करते हुए माकपा नेता वृंदा करात ने सोमवार को कहा कि ‘यह शर्मनाक है’ ऐसे व्यक्ति को तमिलनाडु जैसे महत्वपूर्ण राज्य का राज्यपाल नहीं बनाया जाना चाहिए था.
उन्होंने कहा, ‘मैं मानती हूं कि इन राज्यपाल ने संविधान के नाम पर शपथ ली है… धर्मनिरपेक्षता हमारे संविधान का अभिन्न अंग है…धर्म को राजनीति से अलग रखना हमारे संविधान का अभिन्न अंग है…कल वह कहेंगे कि भारत का संविधान ही एक विदेशी अवधारणा है, यही आरएसएस की समझ है… यह शर्म की बात है कि ऐसे व्यक्ति को तमिलनाडु जैसे महत्वपूर्ण राज्य का राज्यपाल नियुक्त किया गया है.’
कांग्रेस ने भी राज्यपाल आरएन रवि के बयान को ‘अपमानजनक और अस्वीकार्य’ बताया.
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने रवि को बर्खास्त करने की मांग करते हुए उन्हें ‘कलंक’ बताया. उन्होंने कहा, ‘संविधान की शपथ लेने वाले और अपनी ढिंढोरा पीटने के बावजूद संवैधानिक पद पर बने रहने वाले इस व्यक्ति को तत्काल बर्खास्त कर देना चाहिए. वह एक कलंक है.’
This man, who has taken an oath on the Constitution, and who – inspite of his drumbeating – remains a Constitutional functionary, should be sacked forthwith. He is a disgrace.
This is not the first outrageous and unacceptable statement he has made. But he is only a trial… pic.twitter.com/3sCd4jy3ed
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) September 23, 2024
उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में रमेश ने रवि को ‘ट्रायल बैलून फ्लोटर’ कहा और दावा किया कि वे वही कह रहे हैं जो प्रधानमंत्री कराना चाहते हैं.
उन्होंने कहा, ‘यह उनका पहला अपमानजनक और अस्वीकार्य बयान नहीं है. लेकिन वह केवल एक ट्रायल बैलून फ्लोटर हैं. वह वही दोहरा रहे हैं जो नान-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री करवाना चाहते हैं.’
वहीं, कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने आरएन रवि की टिप्पणियों की कड़ी आलोचना की और कहा कि तिरुवल्लुवर को भगवा वस्त्र पहनाने के बाद तमिलनाडु के राज्यपाल को अब पता चला है कि धर्मनिरपेक्षता एक यूरोपीय अवधारणा थी और भारत में इसका कोई स्थान नहीं है.
उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘वह सही नहीं है, लेकिन मान लीजिए कि वह सही है. संघवाद (फेडरलिज़्म) भी एक यूरोपीय अवधारणा थी. क्या हम यह घोषित कर दें कि संघवाद का भारत में कोई स्थान नहीं है? एक व्यक्ति, एक वोट भी एक यूरोपीय अवधारणा थी. क्या हम यह घोषित कर दें कि कुछ लोगों को वोट देने का अधिकार नहीं होगा?’
उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र भी एक यूरोपीय अवधारणा थी जो महाराजाओं और राजाओं द्वारा शासित भारत को ज्ञात नहीं थी. क्या हम यह घोषित कर दें कि इस देश में लोकतंत्र को खत्म कर दिया जाएगा?’