भाजपा ने सांसद कंगना रनौत के कृषि क़ानूनों की वापसी वाले बयान से पल्ला झाड़ा

भाजपा सांसद कंगना रनौत ने कहा था कि सालभर के किसान आंदोलन के बाद निरस्त किए गए विवादास्पद तीन कृषि क़ानूनों को वापस लाया जाना चाहिए. भाजपा ने उनकी टिप्पणी से ख़ुद को अलग करते हुए कहा कि कंगना पार्टी की ओर से इस तरह के बयान देने के लिए 'अधिकृत' नहीं हैं.

मंडी से भाजपा सांसद कंगना रनौत. (फोटो साभार: फेसबुक/@KanganaRanaut)

नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश के मंडी से भारतीय जनता पार्टी की सांसद कंगना रनौत ने एक बार फिर विवाद खड़ा कर दिया है, उन्होंने सुझाव दिया कि लंबे समय तक चले किसान विरोध के बाद निरस्त किए गए विवादास्पद तीन कृषि कानूनों को वापस लाया जाना चाहिए.

अभिनेत्री से नेता बनीं कंगना रनौत की टिप्पणी ने विपक्ष को नाराज़ कर दिया. मंगलवार रात भाजपा ने उनकी टिप्पणियों से खुद को अलग कर लिया और कहा कि कंगना रनौत पार्टी की ओर से इस तरह के बयान देने के लिए ‘अधिकृत’ नहीं हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया ने एक वीडियो संदेश में कहा कि यह टिप्पणी कंगना रनौत का ‘निजी बयान’ है और यह कृषि कानूनों पर पार्टी के दृष्टिकोण को नहीं दर्शाता.

गौरव भाटिया ने कहा, ‘सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर केंद्र सरकार द्वारा वापस लिए गए कृषि कानूनों पर भाजपा सांसद कंगना रनौत का बयान वायरल हो रहा है. मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि यह बयान उनका निजी बयान है. कंगना रनौत भाजपा की ओर से ऐसा बयान देने के लिए अधिकृत नहीं हैं और यह कृषि कानूनों पर भाजपा के दृष्टिकोण को नहीं दर्शाता है. हम इस बयान को अस्वीकार करते हैं.’

वहीं, भाजपा प्रवक्ता के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कंगना रनौत ने स्वीकार किया कि यह उनका निजी विचार है.

कंगना रनौत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘बिल्कुल, किसान कानूनों पर मेरे विचार निजी हैं और वे उन विधेयकों पर पार्टी के रुख का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं. धन्यवाद.’

इससे पहले अभिनेता से नेता बनी कंगना ने मीडिया से कहा था, ‘मुझे पता है कि यह बयान विवादास्पद हो सकता है, लेकिन तीनों कृषि कानूनों को वापस लाया जाना चाहिए. किसानों को खुद इसकी मांग करनी चाहिए.’

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर 2021 को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करते हुए कहा था कि सरकार कृषि क्षेत्र के सुधार संबंधी लाभों के बारे में विरोध करने वाले किसानों को नहीं समझा सकी.

निरस्त किए गए तीन कृषि कानून – कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून और आवश्यक वस्तुएं (संशोधन) कानून थे. तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करना दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन करने वाले 40 किसान संगठनों की प्रमुख मांगों में से एक था.

विरोध प्रदर्शन नवंबर 2020 के अंत में शुरू हुआ और संसद द्वारा तीन कानूनों को निरस्त करने के बाद समाप्त हुआ. कानून जून 2020 में एक अध्यादेश के जरिये लागू हुए थे और बाद में उन्हें सितंबर 2020 में संसद द्वारा मंजूरी दे दी गई थी.

विपक्ष ने साधा निशाना

यह बयान विपक्ष को पसंद नहीं आया और पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा ने अभिनेत्री की आलोचना करते हुए उन्हें ‘आदतन विवादास्पद’ कहा. कांग्रेस नेता ने कहा, ‘मुझे लगता है कि वह मानसिक रूप से अस्थिर हैं. कुछ लोग विवाद पैदा करने के आदी हैं और भाजपा को उनके बयानों से फायदा होता है. वह किसानों, पंजाब, आपातकाल और राहुल गांधी के बारे में बात करती हैं. ऐसे अन्य सांसद भी हैं जो कभी ऐसी टिप्पणी नहीं करते.’

कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भी एक्स पर रनौत का वीडियो साझा किया और लिखा, ‘तीनों कृषि कानूनों को वापस लाया जाना चाहिए’: भाजपा सांसद कंगना रनौत. तीन काले किसान कानूनों का विरोध करते हुए 750 से अधिक किसान शहीद हो गए. उन्हें वापस लाने के प्रयास किए जा रहे हैं.’

उन्होंने हरियाणा में विधानसभा चुनावों का संदर्भ देते हुए कहा, ‘हम ऐसा कभी नहीं होने देंगे. हरियाणा पहले जवाब देगा.’

कांग्रेस के मीडिया एवं प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने भी एक्स पर वीडियो साझा किया और कहा कि यह भाजपा की ‘असली सोच’ है. पवन खेड़ा ने एक पोस्ट में लिखा, ‘किसानों को कितनी बार धोखा दोगे दोगले लोगों?’

गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है, जब भाजपा ने कंगना रनौत की टिप्पणियों से खुद को अलग कर कहा है कि वह पार्टी की ओर से इस तरह के बयान देने के लिए ‘अधिकृत’ नहीं हैं.

पिछले महीने भाजपा ने किसान आंदोलन को लेकर मंडी की सांसद के बयान से खुद को अलग कर लिया था और उनसे भविष्य में इस तरह के बयान देने से बचने को भी कहा था.

पार्टी का यह स्पष्टीकरण रनौत की उस टिप्पणी के बाद आया था जिसमें उन्होंने दावा किया था कि ‘किसान आंदोलन के नाम पर भारत में बांग्लादेश जैसी अराजकता’ हो सकती थी.