नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल कॉलेजों में अप्रवासी भारतीयों (एनआरआई) के कोटा को लेकर पंजाब सरकार को फटकार लगाई है. शीर्ष अदालत ने इस कोटे को फर्जीवाड़ा बताते हुए इसे समाप्त करने का आदेश दिया है.
हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक, अदालत ने मंगलवार (24सितंबर) को पंजाब सरकार की उस याचिका को खारिज़ कर दिया, जिसमें एनआरआई कोटा का विस्तार करने के फैसले को चुनौती दी गई थी. अदालत ने कहा कि एनआरआई के दूर के रिश्तेदारों को दाखिले में लाभ नहीं दिया जा सकता.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज़ कर दिया, जिसमें राज्य सरकार द्वारा मेडिकल कॉलेजों में एनआरआई कोटा से एडमिशन की शर्तों में संशोधन किया गया था. इसमें दूर के रिश्तेदारों को शामिल करने के लिए एनआरआई उम्मीदवारों की परिभाषा को व्यापक बनाया गया था.
अदालत ने अपने फैसले में कहा, ‘हमें अब एनआरआई कोटा बंद कर देना चाहिए, यह पूरी तरह से धोखाधड़ी है. हम अपनी शिक्षा प्रणाली के साथ यही कर रहे हैं.’
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि योग्यता-आधारित प्रवेश को दरकिनार करने के लिए एनआरआई कोटा का फायदा उठाया जा रहा है. पीठ ने कहा, ‘यह पैसे कमाने की मशीन के अलावा कुछ नहीं है. यह एनआरआई कोटा धोखाधड़ी के अलावा कुछ नहीं है. हम इस सब को खत्म कर देंगे… अब तथाकथित मिसालों की जगह कानून को प्राथमिकता देनी होगी.’
अदालत ने सख्त शब्दों में कहा, ‘परिणाम देखिए. जिन लोगों को तीन गुना अधिक अंक मिले हैं, उन्हें प्रवेश नहीं मिलेगा.’
मालूम हो कि शीर्ष अदालत की ये सख्त टिप्पणियां पंजाब की भगवंत मान सरकार के 20 अगस्त को जारी एक अधिसूचना के खिलाफ सामने आई है, जिसमें सरकार द्वारा नीट के दाखिले में 15 प्रतिशत एनआरआई कोटा देने का ऐलान किया गया था. इसके बाद डॉक्टर बीआर आंबेडकर स्टेट इंस्टीटयूट मेडिकल साइंसेज मोहाली में एमबीबीएस की जनरल सीटें कम कर दी गई थी. इन कम की गई सीटों को एनआरआई कोटे में शामिल कर दिया गया था.
सरकार के इस आदेश के खिलाफ कुछ छात्र हाईकोर्ट पहुंचे थे, जिस पर 10 सितंबर को इस मामले पर सुनवाई करते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने इस कोटे को रद्द कर दिया था. हाईकोर्ट ने इस कदम को ‘अनुचित’ और एनआरआई कोटा के मूल उद्देश्य के विपरीत पाया था.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील शादान फरासत ने तर्क दिया कि एनआरआई कोटा की व्यापक व्याख्या पहले से ही हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में इस्तेमाल की जा रही है. हालांकि, अदालत ने इन तर्कों को दृढ़ता से खारिज करते हुए ये दोहरा कि इस व्यापक परिभाषा ने योग्यता को कमजोर कर दिया और कम योग्य उम्मीदवारों को शैक्षणिक प्रदर्शन के बजाय वित्तीय क्षमता और कनेक्शन के आधार पर प्रवेश प्राप्त करने की अनुमति दे दी है.
इस संबंध में पंजाब चिकित्सा शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अखबार से कहा कि सरकार को अभी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अध्ययन करना बाकी है और पूरे फैसले का अध्ययन करने के बाद ही कोई बयान दिया जा सकता है.