बदलापुर एनकाउंटर: हाईकोर्ट ने पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाया, अब सीआईडी करेगी जांच

बॉम्बे हाईकोर्ट ने बदलापुर में दो बच्चियों के यौन उत्पीड़न मामले में आरोपी सफाईकर्मी की कथित एनकाउंटर में मौत पर कई सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने पुलिस के आरोपी के पिस्तौल छीनकर चलाने की कहानी पर संदेह जताते हुए पूछा कि एक व्यक्ति ने कैसे चार पुलिसकर्मियों को काबू कर ऐसा कर लिया.

बॉम्बे हाईकोर्ट. (फोटो साभार: विकिपीडिया A.Savin)

नई दिल्ली: बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार (25 सितंबर) को महाराष्ट्र में दो दिन पहले हुए एक विवादास्पद बदलापुर पुलिस एनकाउंटर मामले में गंभीर सवाल उठाते हुए पुलिस प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, बदलापुर यौन उत्पीड़न मामले के आरोपी अक्षय शिंदे के पिता की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस घटना की जांच निष्पक्ष होनी चाहिए. याचिका में पिता ने आरोप लगाया था कि उनके बेटे को फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया है.

मालूम हो कि पिछले महीने बदलापुर के एक प्रमुख नामी स्कूल में प्री-प्राइमरी कक्षाओं में पढ़ने वाली दो चार वर्षीय लड़कियों के साथ 12-13 अगस्त को 23 वर्षीय सफाईकर्मी अक्षय शिंदे ने कथित तौर पर यौन उत्पीड़न किया था. आरोपी सफाईकर्मी को सोमवार (23 सितंबर) को ठाणे में पुलिस मुठभेड़ में कथित तौर पर मार गिराया गया.

इस संबंध में पुलिस ने अदालत को बताया कि यह घटना तब हुई, जब 24 वर्षीय आरोपी अक्षय ने एक पुलिसकर्मी की बंदूक छीन ली और उन पर तीन बार गोली चलाई, जिससे उनके पैर में चोट लग गई. पुलिस ने बताया कि जवाबी कार्रवाई में अक्षय मारा गया.

हालांकि, बुधवार को जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने पुलिस की इस कहानी पर संदेह जताते हुए एनकाउंटर को लेकर कई सवाल उठाए हैं. इसमें पुलिस से पूछा गया कि क्या पुलिसकर्मी लापरवाही बरत रहे थे, कैसे एक व्यक्ति ने चार अधिकारियों को काबू कर लिया और कैसे उसने पुलिस की पिस्तौल छीन ली और उसे अनलॉक तक कर दिया.

इसके अलावा अदालत ने ये भी पूछा है कि आरोपी को पहले हाथ या पैर के बजाय सीधे सिर में गोली क्यों मारी गई?

सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि वो पुलिस की गतिविधियों पर संदेह नहीं कर रही है, लेकिन इस मामले में सभी पहलुओं पर स्पष्टता होनी चाहिए. अदालत ने ये भी कहा कि अगर मामले की जांच ठीक से नहीं की गई तो वह उचित आदेश पारित करने के लिए बाध्य होगी.

अदालत ने कहा, ‘इस मुठभेड़ पर विश्वास करना कठिन है. प्रथमदृष्टया, इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता.’

मालूम हो कि अदालत की सुनवाई वाले दिन ही मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने पुलिस का बचाव करते हुए कहा था कि अधिकारियों ने आत्मरक्षा में आरोपी शिंदे को गोली मारी, यहां तक ​​​​कि उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के चेहरे और ‘बदला पूरा’ लिखे पोस्टर पूरे मुंबई में दिखने को मिले थे.

अदालत ने कहा, ‘आरोपी बहुत बड़े कद काठी का या मजबूत आदमी नहीं था. इसे मुठभेड़ करना बहुत कठिन है क्योंकि जब किसी आरोपी को विशेष रूप से ऐसे गंभीर अपराध में हिरासत में लिया जाता है, तो एसओपी या दिशानिर्देश होते हैं. इस मामले में पुलिस ने इतनी लापरवाही क्यों बरती है? जिस अधिकारी ने आरोपी पर गोली चलाई वह एक इंस्पेक्टर थे, उनके पास इस बात का अनुभव था कि ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए,

अदालत में इस बात पर भी ज़ोर दिया कि पुलिसकर्मी अक्षय पर काबू पा सकते थे, इसलिए पुलिस का मुठभेड़ का दावा संदिग्ध लगता है. अदालत ने यह भी जोड़ा कि पुलिस को यह पता लगाना होगा कि क्या शिंदे ने पहले कभी बंदूक का इस्तेमाल किया था.

अदालत ने आगे कहा, ‘आम तौर पर, जवाबी कार्रवाई पैर या बांह पर होती है. सीधे सिर पर क्यों? क्या पुलिस अधिकारी को नहीं पता कि गोली कहां चलानी है? हो सकता है यह सब अचानक हुआ हो, लेकिन पहली प्रतिक्रिया आरोपी से हथियार लेने की होनी चाहिए.’

कोर्ट ने पुलिस के इस दावे पर भी सवाल उठाया कि शिंदे पिस्तौल जब्त करने में कामयाब रहा और उसने गोली चला दी. अदालत ने कहा रिवॉल्वर आसान है, कोई भी चला सकता है. लेकिन पिस्तौल से गोली चलाना बहुत कठिन है.

पीठ ने पूछा कि क्या शिंदे पर गोली दूर से या पॉइंट ब्लैक रेंज से चलाई गई थी, क्या यह सीधी चलाई गोली थी ऐसे ही अन्य कई सवालों के विस्तार से जवाब अदालत ने अगली तारीख पर जमा करने के कहा है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 3 अक्टूबर को होगी.

अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि मामले के सभी कागजात तुरंत महाराष्ट्र अपराध जांच विभाग (सीआईडी) को सौंप दिए जाएं, जो मामले की जांच करेगा. इसके साथ ही अदालत ने जांच सीआईडी को सौंपने में देरी के लिए पुलिस की भी खिंचाई की.

अदालत ने कहा कि घटना से जुड़े सभी पांच व्यक्तियों, यानि चार पुलिसकर्मियों और आरोपी शिंदे के कॉल डेटा रिकॉर्ड भी जुटाए जाने चाहिए. पीठ ने कहा कि वह निष्पक्ष जांच चाहती है, भले ही इसमें पुलिस शामिल हो.

आरोपी शिंदे के पिता अन्ना शिंदे का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता अमित कटारनवारे ने अदालत को बताया कि जिस दिन शिंदे की हत्या हुई थी, उनके माता-पिता उनसे मिले थे और उनकी जमानत को लेकर बात हुई थी. इससे ​​पता चलता है कि शिंदे ऐसा कोई कठोर कदम उठाने की मानसिक स्थिति में नहीं थे.

उन्होंने आगे कहा कि शिंदे के माता-पिता शव लेना चाहते हैं लेकिन अंतिम संस्कार की जगह नहीं ढूंढ पा रहे हैं. इस पर सरकारी वकील हितेन वेनेगांवकर ने कहा कि पुलिस स्थानीय अधिकारियों से संपर्क करेगी और आवश्यक व्यवस्था करेगी.

हमलावर विपक्ष

इस बीच, विपक्ष ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि ये एनकाउंटर संबंधित स्कूल प्रबंधन को बचाने की कोशिश है. मामले में शामिल अन्य आरोपियों को छुपाने के लिए यह एक ‘सुनियोजित हत्या’ थी. इस मामले के अन्य आरोपी, जो स्कूल के ट्रस्टी हैं, अभी भी फरार हैं.

विपक्ष ने आरोप लगाया है कि सरकार ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए ‘तत्काल न्याय’ के नाम पर इस घटना को होने दिया है.

इस संबंध में नेशनलिस्ट पार्टी (शरद पवार) के अध्यक्ष शरद पवार ने कहा, ‘बदलापुर में दो बच्चियों के साथ हुए अन्याय को कानून के उचित दायरे में रहकर अंजाम दिया जाना चाहिए था. लेकिन, इस घटना के मुख्य आरोपी को ट्रांसफर करने में गृह विभाग ने जो ढिलाई दिखाई है. संदेहास्पद है.’

इस मामले पर महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार ने घटना की ‘न्यायिक जांच’ की मांग करते हुए कहा, ‘क्या अक्षय शिंदे द्वारा गोली चलाना सबूत मिटाने की कोशिश है? आखिर अक्षय शिंदे ने गोली कैसे चलाई? क्या आरोपी अक्षय को तब हथकड़ी नहीं लगाई गई थी, जब वह पुलिस हिरासत में था? उसके पास बंदूक कैसे आई? पुलिस इतनी लापरवाह कैसे हो सकती है?’

उन्होंने कहा, ”बदलापुर मामले में एक ओर संस्था के संचालकों के भाजपा से जुड़े होने पर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती, वहीं दूसरी ओर आज आरोपी अक्षय शिंदे द्वारा खुद को गोली मार लेना, बेहद चौंकाने वाला और संदेहास्पद है. हमें शुरू से ही बदलापुर मामले में पुलिस की भूमिका पर कोई भरोसा नहीं है. हमारी मांग है कि अब इस मामले की न्यायिक जांच होनी चाहिए.’

शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के नेता आदित्य ठाकरे ने भी कहा, ‘बदलापुर के हत्यारे को उसके द्वारा किए गए अमानवीय हरकत के लिए कानून के दायरे में फांसी दी जानी चाहिए थी. लेकिन जो हुआ वह लापरवाही और संदेहास्पद है. इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए.’